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India News(इंडिया न्यूज), Ram Mandir: आज यानि 22 जनवारी को अयोध्या में राम लला का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम हो रहा है। इसके लिए पूरा देश आज उत्सुक नगर आ रही है। देश के हर मंदिर को आज अद्भूत तरीके से सजाया और सवारा गया है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के उपलक्ष में केंद्र सरकार ने देश भर में अपने कर्मचारियों के लिए आधे दिन की घोषणा की है और कई राज्यों ने भी लोगों को अपने घरों में आराम से प्राण प्रतिष्ठा समारोह देखने की अनुमति दी है। वहीं, प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर कई लोगों के मन में जिज्ञासा पैदा होने लगी है कि आखिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम क्या है और मंदिर की किसी नई मूर्ति के लिए इसे क्यों आयोजित किया जाता है।
सनातन धर्म के अनुसार, प्राण प्रतिष्ठा एक अनुष्ठान होता है। इसे किसी मंदिर को खोलने या उसमें प्रार्थना की अनुमति देने से पहले किया जाता है। शाब्दिक अर्थ में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का अर्थ है ‘जीवन देना’। ‘प्राण’ का अर्थ है जीवन शक्ति और ‘प्रतिष्ठा’ का अर्थ है स्थापना, इसके अर्थ की माने तो अनुष्ठान के द्वारा देवता की मूर्ति को उसमें देवता को बुलाकर ‘जीवित’ बनाया जाता है। यह मूर्ति स्थापित करते समय किया जाता है और वेद-पुराणों के आधार पर किया जाता है।
मालूम हो कि अयोध्या में ये प्राण प्रतिष्ठा के लिए अनुष्ठान का आयोजन 16 जनवरी को शुरू हुआ। जिसके दौरान मंदिर ट्रस्ट के सदस्य को यजमान बनाए गया। इसके बाद सरयू नदी के तट पर दशविद स्नान, विष्णु पूजा और गोदान, और रामलला की मूर्ति के साथ शहर का भ्रमण किया गया। साथ ही गणेश अंबिका पूजा, वरुण पूजा, मातृका पूजा, ब्राह्मण वरण, वास्तु पूजा, अग्नि स्थापना, नवग्रह स्थापना और हवन हुआ।
वहीं, राम मंदिर के गर्भगृह को सरयू के पवित्र जल से धोया गया और भगवान राम की मूर्ति वहां स्थापित की गई। पूजा का एकमात्र उद्देश्य ‘देवता को जीवन में लाना’ है। मान्यता है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद मूर्ति के भीतर अनंत काल के लिए भगवान की दिव्य उपस्थिति रहती है। सनतन धर्म में मूर्ति की स्थापना से पहले प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान अनिवार्य है क्योंकि मूर्ति केवल एक वस्तु है और लोगों की पूजा के लिए पवित्र मानी जाती है।
भक्तों द्वारा पूजा करने के लिए मंदिर में मूर्ति स्थापित करने से पहले भगवान की मूर्ति को एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान से गुजरना पड़ता है। मूर्ति को गंगा जल और कम से कम पांच पवित्र नदियों के जल से स्नान कराया जाता है। साथ ही मूर्ति को पानी और अनाज के मिश्रण में विसर्जित किया जाता है। इसके साथ ही मूर्ति को दूध से भी नहलाया जाता है और बाद में साफ कपड़े से पोंछा जाता है। इसके बाद ही मूर्ति को नए कपड़े पहनाए जाते हैं। अनुष्ठान के हिस्से के रूप में ‘चंदन’ भी लगाया जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा होने तक मूर्ति का चेहरा ढका रहता है। यहां तक कि नवरात्रि के मामले में भी देवी दुर्गा का चेहरा तब तक ढका रहता है, जब तक कि सही समय या पूजा नहीं हो जाती। इसके पीछे का कारण मूर्ति की पवित्रता और दिव्यता सुनिश्चित करना है। प्राण प्रतिष्ठा से पहले मूर्ति महज एक भौतिक वस्तु होती है और इसलिए उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए उसका चेहरा ढक दिया जाता है।
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