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Farmer Protest: बॉर्डर पर बवाल, साज़िश का सवाल; क्या है किसान आंदोलन का मकसद?

India News (इंडिया न्यूज़),Farmer Protest: फिर आंदोलन है, फिर ज़िद है, फिर बॉर्डर है, फिर बवाल है। ये ‘फिर’ भी बड़ा अजीब है। 2 साल पहले 378 दिन के आंदोलन का चेहरा राकेश टिकैत थे। आज सरवन सिंह पंधेर हैं। बॉर्डर तब भी वही था, अब भी वोही है। शंभू, टिकरी, सिंघु, चिल्ला, ग़ाज़ीपुर। तब तीन क़ानूनों का विरोध था, आज MSP पर गारंटी की ज़िद है। सरकार कहती है कि गारंटी दी तो 11 लाख करोड़ का बोझ आ जाएगा, आंदोलनकारी कह रहे हैं कि दिल्ली को घेर कर रहेंगे। शंभू बॉर्डर पर बवाल हुआ, जो तस्वीरें सामने आईं वो साज़िश का इशारा कर रही हैं।

आज न्यूज़ चैनल के टॉप बैंड्स हैं- बवाल@बॉर्डर, किसका ऑर्डर, साज़िश फ़ैक्टर ?

किसान के कंधे पर बंदूक कौन रख रहा है ?

आंदोलन में बैलेट पेपर, 2024 वाला चैप्टर ?

बॉर्डर पर किसान सेंटिमेंट या एंटी मोदी एलिमेंट ?

विपक्ष ने फ़ौज उतारी, साज़िश वाले आंदोलनकारी

‘साज़िश’ के ‘न्यूनतम समर्थन’ का रेट फ़िक्स ?

आंदोलन बहाना, विपक्ष का ’24’ वाला फ़साना

किसान भड़काओ मंत्र, साज़िश का एंटी मोदी तंत्र

बॉर्डर पर पतंगबाज़ी, बवालियों की चालबाज़ी

कील कांटे दीवार, बवालियों से आर पार

सरकार Vs किसान, सड़क पर घमासान

सील बॉर्डर, बवाल के पीछे किसका ऑर्डर ?

साज़िश का शक क्यों गहराया, अब ये समझिए। आंदोलन डंके की चोट पर किया जाता है, सार्थक विरोध में ठसक होती है, सच्चाई की ठसक। लेकिन शंभू बॉर्डर पर चेहरे को रुमाल या मास्क से ढंक कर उपद्रव करने वाले आंदोलनकारी नहीं हो सकते। भारत का इतिहास आंदोलनों से पटा पड़ा है- सेव साइलेंट वैली आंदोलन, चिपको आंदोलन, जेपी आंदोलन, जंगल बचाओ आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, अन्ना का लोकपाल आंदोलन, निर्भया आंदोलन। आंदोलन अराजक नहीं होते, आंदोलन हिंसक नहीं होते, आंदोलन में संकल्प होता है ज़िद नहीं। भारत का इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि आंदोलनों की इबारत उद्दंडता की क़लम से कभी नहीं लिखी गई। लोकतंत्र में विरोध जायज़ है, मांग करना भी लाज़मी है, अहिंसा के पथ पर असहयोग भी स्वीकार्य है। लेकिन ट्रैक्टर को टैंक बना कर बॉर्डर को हाईजैक कर लेना कहां से आंदोलन हुआ ? क्रांति का ककहरा पढ़ने की ज़रूरत है शंभू बॉर्डर वाले उपद्रवियों को। किसान अन्नदाता है, अन्नदाता अराजक नहीं होता। ‘अल्लामा इक़बाल’ की क़लम लिखती है-

“जिस खेत से दहक़ां (किसान) को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम (गेहूं की बाली) को जला दो”

‘धूमिल’ लिख गए-
“एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
यह तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है।”

भारत में किसान का सम्मान है, किसान देश का मान है, स्वाभिमान है। नाराज़ किसान C2+50% फॉर्मूला लागू करने पर अड़े हैं, कर्ज़ माफ़ी, बिजली बिल में इज़ाफ़े के ख़िलाफ़ धरने पर हैं। आंदोलन करने वाले किसान 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली, फ़सल बीमा, लखीमपुर कांड के ज़िम्मेदार लोगों को सज़ा की मांग भी कर रहे हैं। मांग जायज़ है, लेकिन टाइमिंग पर सवाल है। लोकसभा चुनाव सिर पर है, ऐसे में दबाव बनाने के लिए दिल्ली कूच का प्लान शक को और हवा देता है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा घायल किसानों के बीच पहुंचे, मोबाइल निकाला, किसान के कान पर स्पीकर ऑन करके सटा दिया। दूसरी तरफ़ राहुल गांधी की आवाज़ थी। शब्दों में संवेदना थी, लेकिन नीयत पर शक़ है। राहुल जी संवेदनशील होने के लिए ज़रूरी है कि आप टीवी कैमरे पर ‘मार्केटिंग गिमिक’ की बजाय किसान से अकेले में बात कर लेते। राहुल जी स्वामीनाथन कमीशन ने साल 2006 में किसानों पर रिपोर्ट सौंप दी थी, तब कहां थे आप और आपकी संवेदनशीलता ? स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि किसानों को फ़सल की कुल क़ीमत यानी C2 और उस पर 50% मुनाफ़े के हिसाब से MSP देना चाहिए। राहुल जी 2004 से 2014 के बीच ‘C2+50’ पर किसने कुंडली मारी, ये भी बताइए। मनमोहन सिंह यानी UPA सरकार में किसानों की हर महीने की कमाई लगभग 6500 रुपए थी। मोदी सरकार में किसानों की कमाई हर महीने बढ़ कर 9000 रुपए के आसपास आ गई। मोदी सरकार के संकल्प पर कोई शक़ नहीं, लेकिन किसान आंदोलन का मुखौटा पहन कर सरकार विरोधी साज़िश का सूत्रधार कौन है, ये पता लगाने की ज़रूरत है। किसान भोला है, सादा है, सच्चा है पर सियासत इतनी मासूम नहीं। ‘दुष्यंत कुमार’ कह गए हैं-

“मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम

तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है”

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Rashid Hashmi

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