इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Russia’s Attack On Ukraine: आज पूरी दुनिया में सिर्फ रूस और यूक्रेन तनाव को लेकर चर्चा हो रही। क्योंकि रूस ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया है। क्रमातोस्क में दो धमाके हुए हैं। आज रूस के राष्टÑपति व्लादिमिर पुतिन ने रूसी टेलिविजन पर एक बयान के जरिए कहा कि हम यूक्रेन में स्पेशल मिलिट्री आपरेशन शुरू कर रहे हैं।
इसका मकसद डिमिलिटराइजेशन है। हमारा मकसद पूरे यूक्रेन को हथियाना नहीं है। पुतिन ने अमेरिका और नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन को धमकी देते हुए कहा कि हमारे आपरेशन में जो भी दखल देगा उसको अंजाम भुगतना पड़ेगा। तो आइए जानते हैं रूस और यूक्रेन की युद्ध की वजह क्या है। यूक्रेन पर हमला करके रूसी पुतिन क्या हासिल करना चाहते हैं। (russia forces at ukraine border)
यूक्रेन में हमला कर रूस क्या चाहता है? (What does Russia want by attacking Ukraine)
- रूस यूरोपीय देशों को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहता है। क्योंकि यूरोप को अपनी तेल और गैस की जरूरतों का 30 फीसदी से 40 फीसदी हिस्सा रूस से मिलता है। यूक्रेन में हमला कर रूस यूक्रेन पर सख्ती करके उसे नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (एनएटीआ) में जाने से रोकना चाहता है।
- रूस यह कभी नहीं चाहता है कि यूक्रेन के बहाने एनएटीओ सेनाएं उसकी सीमा तक पहुंचे। पुतिन रूस का सोवियत संघ जैसा प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं। आपको बता दें कि 2008 में जॉर्जिया पर हमला, 2013 में क्रीमिया पर कब्जा और अब यूक्रेन पर हमला इसी कड़ी का हिस्सा है।
- पुतिन रूस की सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहते हैं। क्योंकि 2021 में पुतिन की लोकप्रियता पिछले एक दशक में सबसे कम हो गई थी। यूक्रेन मामले से इसमें सुधार का लक्ष्य है। रूस नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन के यूरोप और उसके आसपास विस्तार को रोकना चाहता है। रूस की नजरें एनएटीओ के जरिए अमेरिका प्रभुत्व को बढने से रोकना है।
क्या पुतिन रूस का पुराना प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं? (Russia’s Attack On Ukraine)
- आपको बता दें कि 1991 में रूसी प्रभुत्व वाले सोवियत संघ के विघटन से 15 नए देश बने थे, जिनमें यूक्रेन भी शामिल था। पुतिन रूस का विस्तार करके उसका पुराना प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं। कहा जाता है कि रूस का राष्ट्रपति बनने के बाद से व्लादिमिर पुतिन कह चुके हैं कि सोवियत संघ का विघटन ऐतिहासिक भूल थी। पुतिन रूस के सोवियत संघ वाले दिन लौटाना चाहते हैं। पुतिन की इस योजना के लिए यूक्रेन महत्वपूर्ण है।
- 2015 के भाषण में पुतिन ने यूक्रेन को ”रूस का मुकुट” कहा था। सत्ता संभालते ही पुतिन ने सोवियत संघ का हिस्सा रहे जॉर्जिया के खिलाफ 2008 में युद्ध छेड़ दिया और उसके दो इलाकों साउथ ओसेशिया और अबखाज को स्वतंत्र घोषित करते हुए वहां रूसी सेनाएं तैनात कर दीं। पुतिन ने कुछ ऐसा ही 2014 में यूक्रेन में किया। तब रूस ने 1950 के दशक से ही यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर हमला करते हुए कब्जा कर लिया था।
- पुतिन ने साथ ही यूक्रेन के दो पूर्वी इलाकों डोनेट्स्क और लुहान्स्क के एक बड़े इलाके पर रूस समर्थित अलगाववादियों की सरकारें बनवा दीं। अब रूस ने इन विद्रोही इलाकों को नए देश के रूप में मान्यता देते हुए वहां भी रूसी सैन्य बेस बनाने का रास्ता साफ कर दिया है। कुल मिलाकर पुतिन धीरे-धीरे रूस के विस्तार करने की अपनी रणनीति में आगे बढ़ते और कुछ हद तक कामयाब होते भी दिख रहे हैं।
क्या पुतिन सत्ता में पकड़ मजबूत कर रहे हैं?
- 1999 में रूस के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही व्लादिमिर पुतिन ने सत्ता में बने रहने की हर संभव कोशिश की है। 16 साल रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी में काम करने के बाद पुतिन 1991 में राजनेता बने थे। 1999 में वह बोरिस येल्तसिन के पद छोड़ने के बाद रूस के राष्ट्रपति बने।
- 2004 में पुतिन दोबारा राष्ट्रपति बने, लेकिन रूसी संविधान के अनुसार लगातार दो बार से ज्यादा राष्ट्रपति नहीं बनने के नियम के बाद वह 2008 से 2012 तक रूस के प्रधानमंत्री रहे। 2012 में पुतिन फिर से रूस के राष्ट्रपति बने और तब से पद पर कायम हैं। 2020 में रूसी संविधान में बदलाव से उनके 2036 तक रूस का राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ हो गया था।
क्या रूस के लिए यूक्रेन जरूरी है? (Russia’s Attack On Ukraine)
- 1991 में सोवियत संघ के बिखरने के बाद बने यूक्रेन को शुरू से ही रूस अपने पाले में करने की कोशिशें करता आया है। हालांकि, यूक्रेन रूसी प्रभुत्व से खुद को बचाए रखने के लिए पश्चिमी देशों की ओर झुका रहा।
- दिसंबर 2021 में यूक्रेन ने अमेरिकी दबदबे वाले दुनिया के सबसे ताकतवर सैन्य गठबंधन नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (नाटो) से जुड़ने की इच्छा जाहिर की थी। यूक्रेन की ये कोशिश रूस को नागवार गुजरी और उसने यूक्रेन को रोकने के लिए उसकी सीमा पर लाखों की फौज तैनात कर दी।
- दरअसल, यूक्रेन की रूस के साथ 2200 किमी से ज्यादा लंबी सीमा है। रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो से जुड़ता है तो नाटो सेनाएं यूक्रेन के बहाने रूसी सीमा तक पहुंच जाएंगी। ऐसे में रूस की राजधानी मॉस्को की पश्चिमी देशों से दूरी केवल 640 किलोमीटर रह जाएगी। अभी ये दूरी करीब 1600 किलोमीटर है।
- उधर, अमेरिका भी अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा है। सोवियत संघ के टूटने के बाद 15 से ज्यादा यूरोपीय देश नाटो में शामिल हो चुके हैं। अब वह यूक्रेन को भी नाटो में शामिल करना चाहता है। इसीलिए रूस चाहता है कि यूक्रेन ये गांरटी दे कि वह कभी भी नाटो से नहीं जुड़ेगा।
क्यों रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो से जुड़े?
- रूस ने स्पष्ट किया है कि उसकी सेनाएं तब तक पीछे नहीं हटेंगी जब तक कि यूक्रेन गारंटी नहीं दे देता कि वह नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन से कभी नहीं जुड़ेगा। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन में भले ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कई यूरोपीय देशों समेत 30 देश शामिल हों, लेकिन रूस का नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन को रोकने से असली मतलब रूस के आसपास या यूरोप में अमेरिकी प्रभुत्व को बढ़ने से रोकना है।
- रूस की मांग है कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन 1997 से पहले वाली स्थिति में लौट जाए, यानी उसने यूरोप में जो सैन्य ठिकाने बनाए हैं, उन्हें हटा ले। रूस चाहता है कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन गारंटी दे कि वह रूस की सीमा के पास घातक हथियारों की तैनाती नहीं करेगा। अगर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन ऐसा करता है तो उसे केंद्रीय यूरोप, पूर्व यूरोप और बाल्टिक क्षेत्र से अपनी सेनाओं को हटाना होगा।
- रूस के विरोध के बावजूद 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन ने यूरोप में तेजी से विस्तार किया है और अब कई ऐसे देश भी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशनका हिस्सा हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके हैं-इनमें एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया शामिल हैं। एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया में हजारों की संख्या में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन और अमेरिका सैनिक तैनात हैं, इन तीनों ही देशों की सीमाएं रूस से लगती हैं।
- अगर यूक्रेन भी नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन से जुड़ता है तो अमेरिकी सैन्य गठबंधन की रूस के आसपास के इलाके में प्रभुत्व और बढ़ेगा, जो रूस के हितों के लिए कतई अच्छा नहीं होगा। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन सेनाएं रूस की मांग मानकर रूस के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं। क्योंकि ऐसा होने का मतलब होगा रूस को वो जीत मिलना जो उसे अमेरिका के साथ 1945 से 1990 तक 45 साल चले कोल्ड वॉर में भी नहीं मिली थी।
क्या रूस का मकसद यूरोपीय देशों को ताकत का अहसास कराना है?
- यूरोप अपनी तेल और गैस की जरूरतों के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है। यही वजह है कि नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन के कई यूरोपीय सदस्य देश जैसे- फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी, यूक्रेन को लेकर रूस के खिलाफ जुबानी ताकत तो दिखा रहे हैं, लेकिन उस पर कड़े प्रतिबंध नहीं लगा पा रहे हैं। रूस इस विवाद से ज्यादातर अमेरिकी खेमे में खड़े रहने वाले यूरोपीय देशों को अपनी ताकत का अहसास कराना चाहता है।
- दुनिया के कच्चे तेल के उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी 13फीसदी है। दुनिया के तेल और गैस का करीब 30 फीसदी हिस्सा रूस से आता है। यूरोप की जरूरतों का 30फीसदी कच्चा तेल और 40फीसदी गैस रूस से आती है। 2021 के अंत में यूक्रेन संकट बढ़ने पर रूस ने यूरोप को गैस सप्लाई में कटौती की थी, जिससे यूरोपीय देशों में बिजली की कीमत पांच गुना तक बढ़ गई थी।
- अगर यूरोपीय देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाते हैं तो बदले में रूस यूरोपीय देशों को गैस की सप्लाई बंद कर सकता है। ऐसा करने पर यूरोप में ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है, जिससे वहां तेल और गैस की कीमतें आसमान को छू सकती हैं। यूक्रेन मामले को देखते हुए जर्मनी रूस को समुद्र के अंदर बिछाई गई 1222 किलोमीटर लंबी नवनिर्मित नॉर्ड स्ट्रीम दो गैस पाइपलाइन को बंद करने का धमकी दे रहा है, लेकिन ऐसा करने पर जर्मनी समेत यूरोप को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा।
- नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन के कई यूरोपीय सदस्य देश अपनी गैस की जरूरतों के लिए रूस पर बुरी तरह निर्भर हैं। जर्मनी को अपनी जरूरत की गैस का 65 फीसदी, इटली को 43फीसदी, फ्रांस को 16 फीसदी रूस से मिलती है। नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन के कुछ अन्य देशों जैसे- चेक रिपब्लिक, हंगरी और स्लोवाकिया अपनी गैस की कुल जरूरतों और पोलैंड 50 फीसदी गैस की जरूरतों के लिए रूस पर ही निर्भर है।
Russia’s Attack On Ukraine
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