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Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर SC का बड़ा फैसला, जानें 10 बड़ी बातें

PUBLISHED BY: Mudit Goswami • LAST UPDATED : October 17, 2023, 12:14 pm IST
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Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर SC का बड़ा फैसला, जानें 10 बड़ी बातें

Same-Sex Marriage

India News (इंडिया न्यूज़), Same-Sex Marriage: सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। इस मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने कानून बनाने पर साफ कहा कि यह “हमारे अधिकार में नहीं है”। कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं। कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के। CJI ने कहा, “अदालत कानून नहीं बना सकता है, लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है।”

बता दें कि इस मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ में सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल,जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा शामिल रहे। इससे पहले पीठ ने 10 दिनों तक संबंधित दोनो पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 11 मई 2023 को फैसला सुरक्षित रखा था।

SC के फैसले की 10 बड़ी बातें (Same-Sex Marriage)

  • कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त कहा कि, “केंद्र सरकार समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों को तय करने के लिए एक समिति का गठन करेगी। यह समिति राशन कार्डों में समलैंगिक जोड़ों को ‘परिवार’ के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।”
  • कोर्ट ने कहा कि, “यौन अभिविन्यास के आधार पर संघ में प्रवेश करने का अधिकार प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है। समलैंगिक जोड़े सहित अविवाहित जोड़े संयुक्त रूप से एक बच्चे को गोद ले सकते हैं।
  • CJI ने कहा ने जानकारी देते हुए कहा कि मुझे जस्टिस रवींद्र भट्ट के फैसले से असहमति है। जस्टिस भट्ट के निर्णय के विपरीत मेरे फैसले में दिए। निर्देशों के परिणामस्वरूप किसी संस्था का निर्माण नहीं होता है, बल्कि वे संविधान के भाग-3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं।
  • उन्होंने कहा कि जस्टिस भट्ट भी स्वीकार करते हैं कि राज्य यानी शासन समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव कर रहा है। वो उनकी दुर्दशा को कम करने के लिए अनुच्छेद-32 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है।
  • जस्टिस रवीन्द्र भट्ट ने कहा, “विवाह करने का अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता जिसे मौलिक अधिकार माना जाए। हालांकि हम इस बात से सहमत हैं कि रिश्ते का अधिकार है, हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है। इसमें एक साथी चुनने और उनके साथ शारीरिक संबंध का आनंद लेने का अधिकार शामिल है जिसमें गोपनीयता, स्वायत्तता आदि का अधिकार शामिल है। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि जीवन साथी चुनने का विकल्प मौजूद है।”
  • CJI ने फैसला देते वक्त कहा कि “यह ध्यान दिया गया है कि विवाहित जोड़े से अलग होना प्रतिबंधात्मक है, क्योंकि यह कानून द्वारा विनियमित है लेकिन अविवाहित जोड़े के लिए ऐसा नहीं है।”
  • उन्होंने कहा कि “घर की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिससे स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनता है और स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है।”
  • CJI ने कहा कि, “CARA विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है। यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है।”
  • CJI ने कहा कि, “कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं। इस प्रकार विनियमन को समलैंगिक समुदाय के लिए उल्लंघनकारी माना जाता है।”
  • कोर्ट ने कहा कि इस तरह के विवाह का कोई अयोग्य अधिकार नहीं है, सिवाय इसके कि इसे कानून के तहत मान्यता प्राप्त है। नागरिक संघ को कानूनी दर्जा प्रदान करना केवल अधिनियमित कानून के माध्यम से ही हो सकता है। समलैंगिक संबंधों में ट्रांससेक्सुअल व्यक्तियों को शादी करने का अधिकार है।

 

 

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