Sand Bath At Pachnad | Chambal Foundation will start Ayurveda tourism
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पचनद पर चंबल के ठंडे-गर्म रेत से स्नान व दुर्लभ जड़ी बूटियों से कल से शुरू होगा इलाज

Vir Singh • LAST UPDATED : July 16, 2022, 2:30 pm IST
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पचनद पर चंबल के ठंडे-गर्म रेत से स्नान व दुर्लभ जड़ी बूटियों से कल से शुरू होगा इलाज

पचनद पर चंबल के ठंडे-गर्म रेत से स्नान व दुर्लभ जड़ी बूटियों से कल से शुरू होगा इलाज

  • पांच नदियों के संगम पचनद में दूर-दूर तक फैला है रेत

इंडिया न्यूज, लखनऊ:
चंबल फाउंडेशन आयुर्वेद पर्यटन की शुरुआत के मकसद से अरसे से बीहड़ में बदलाव के लिए चला रहे अपने अभियान को 17 जुलाई से मूर्त रूप देगा। पर्यटन के साथ ही चंबल इलाके में मौजूद प्राकृतिक चीजों का फाउंडेशन लोगों के उपचार के लिए भी इस्तेमाल करेगा। आयुर्वेद के विशेषज्ञों की टीम चंबल में ठंडे और गर्म रेत से लोगों को स्नान करवाएगी।

तैयार की गई है विशेषज्ञों की टीम, योगाभ्यास कराएंगी योगाचार्य

Sand Bath At Pachnad

तैयार की गई है विशेषज्ञों की टीम, योगाभ्यास कराएंगी योगाचार्य

मलेशिया और मिस्र में भी ऐसा करवाया जाता है। इसी के साथ टीम चंबल के बीहड़ों में बड़ी मात्रा में मौजूद दुर्लभ जड़ी बूटियों से लोगों का उपचार भी करेगी। सेंड बाथ के साथ चंबल नदी के किनारे योग क्रियाएं व आयुर्वेद से इलाज होगा। इसके लिए डॉक्टरों के विशेषज्ञों की एक टीम तैयार की गई है। इन डॉक्टरों में आयुर्वेद के लिए डॉ. कमल कुमार कुशवाहा,डॉ. मनोज दीक्षित, डॉ. जय प्रकाश सिंह, डॉ. श्रीकांत, योगाचार्य स्वेच्छा दीक्षित, डॉ. नीलेन्द्र सिंह और डॉ. राजीव कुशवाहा शामिल हैं। योगाचार्य स्वेच्छा से यहां योगाभ्यास कराएंगी।

पहुज, चंबल, क्वारी, यमुना और सिंध नदी का संगम है पचनद

उत्तर प्रदेश के जालौन, इटावा और औरैया जिले की सीमा पर मौजूद पांच नदियों के संगम ‘पचनद’ पर फैले विशाल रेत के मैदान में आयुर्वेद पर्यटन व बीहड़ों में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी बूटियों से लोगों का इलाज करने की शुरुआत की जाएगी। तीनों जिलों की सीमा पर पहुज, चंबल, क्वारी, यमुना और सिंध नदी का संगम है और इसे पचनद कहते हैं। यहां साफ-सुथरी रेत दूर-दूर तक फैली है और रेत को देखकर ऐसा लगता है जैसे चांदी चमक रहा हो।

सैंड बाथ के लिए मरुस्थल और मलेशिया जाते हैं लोग, चंंबल में दोनों मौजूद

बता दें कि चंबल फाउंडेशन यहां के बीहड़ों को बेहतर पर्यटन क्षेत्र की छवि में तब्दील करने व बीहड़ों की सकारात्मक पहचान के लिए काफी समय से जुटा है। फाउंडेशन ने जैव विविधता से धनी इस क्षेत्र में बाकायदा अभियान चला रखा है। इस इलाके में कई तरह के कछुए, बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों के अलावा घड़ियाल प्रवास करते हैं। लोग कोल्ड सैंड बाथ के लिए मलेशिया तो हॉट सैंड बाथ के लिए सहारा मरुस्थल जाते हैं, जबकि चंबल के किनारे ये दोनों बाथ उपलब्ध हैं।

सैंडबाथ से डिप्रेशन व तनाव से मिलती है राहत, जोड़ों का दर्द भी ठीक होता है

विशेषज्ञों के अनुसार हॉट और कोल्ड दोनों तरह का सैंड बाथ सुबह लिया जाता है। कोल्ड सैंड बाथ में लगभग 13 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की रेत में व्यक्ति का शरीर गले से नीचे तक रेत में दबा दिया जाता है। इसी के साथ उसकी एक अंगुली बाहर रखी जाती है और उसमें पल्स मीटर लगा दिया जाता है, ताकि व्यक्ति की पल्स पर नजर रखी जा सके। देखा जाता है कि कहीं उसे घबराहट तो नहीं हो रही है। 15 से 30 मिनट तक व्यक्ति को रखा जाता है। इससे डिप्रेशन व तनाव में राहत मिलती है। वहीं हॉट बाथ में रेत का तापमान 47 डिग्री तक भी रखा जाता है। इससे मासपेशियों व जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।

पूरी दुनिया में औषधियों की हब चंबल घाटी को मिलेगी नई पहचान

बता दें कि चंबल घाटी औषधियों का हब है। यहां प्रचुर मात्रा में कई तरह की दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जाती हैं। चंबल के दस्तावेजी लेखक व चंबल परिवार प्रमुख डॉ. शाह आलम राना यह जानकारी दी है। इसी के साथ गुरूकुल विश्वविद्यालय के कुलपति रहे प्रोफेसर रत्नाकर शास्त्री ने अपनी किताब ‘भारत के प्रणाचार्य’ में भी चंबल में मौजूद जड़ी-बूटियों का जिक्र किया है। डिविजनल आयुर्वेदिक व यूनानी अधिकारी डॉ मनोज दीक्षित का कहना है कि आयुर्वेद पर्यटन से चंबल से विलुप्त हो रही आयुर्विधा के साथ रोजगार के नए आयाम पैदा होंगे। यह शुरुआत पूरी दुनिया में चंबल को एक नई पहचान दिलाएगी। इससे चंबल के उपेक्षित बीहड़ों में खुशहाली की बयार चलेगी।

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