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India News (इंडिया न्यूज), Supreme Court On Dowry: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। दहेज निषेध अधिनियम की धारा 6 पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है। शादी के समय दहेज और पारंपरिक उपहार देने मात्र से दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 6 के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं होता है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जे. के. माहेश्वरी की पीठ ने एक मामले में ये फैसला सुनाया है। यह मामला एक पिता और उसकी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के बीच विवाद से उत्पन्न हुआ था। पिता ने आरोप लगाया कि उसकी बेटी की शादी के समय दिए गए सोने के आभूषणों को उसके पूर्व ससुराल वालों ने वापस नहीं किया। यह शादी 1999 में संपन्न हुई थी, लेकिन 2016 में अमेरिका में तलाक हो गया था। तलाक के समय दोनों पक्षों के बीच सभी वित्तीय और वैवाहिक मामलों का निपटारा कर लिया गया था, जिसमें सभी संपत्तियों का बंटवारा भी शामिल था।
तलाक के 5 वर्षों के बाद और बेटी की दूसरी शादी के 3 सालों के बाद जनवरी 2021 में पिता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 6 के तहत अपने पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। शिकायत में दावा किया गया कि उन्होंने बार-बार अनुरोध के बावजूद उसकी बेटी का ‘स्त्रीधन’ वापस नहीं किया।
न्यायमूर्ति संजय करोल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह शिकायत टिकाऊ नहीं है। अदालत ने जोड़ देते हुए कहा कि ‘स्त्रीधन’ का स्वामित्व केवल महिला के पास होता है और उसे इस पर पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि ‘स्त्रीधन’ पर महिला का अधिकार अटल और विशिष्ट होता है और उसके पति या पिता को इस पर कोई अधिकार नहीं है, जब तक कि महिला स्वयं उन्हें ऐसा करने के लिए अधिकृत नहीं करती। अदालत को इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला कि शिकायतकर्ता की बेटी ने कभी अपना ‘स्त्रीधन’ अपने ससुराल वालों को सौंपा था या उन्होंने इसे गबन किया था।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी देखा कि शादी के दो दशकों बाद और तलाक के कई साल बाद आरोप लगाए गए और इस देरी के लिए कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
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दहेज निषेध अधिनियम की धारा 6 के तहत दहेज के आरोपों के संदर्भ में, अदालत ने कहा कि शादी के समय दिए गए उपहारों का यह अर्थ नहीं है कि वे ससुराल वालों को इस तरह सौंपे गए थे। इससे इस धारा के तहत कानूनी दायित्व उत्पन्न हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ता के आरोप मुख्य रूप से निराधार थे और वे कानूनी रूप से सही नहीं थे।
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