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भारत का 'सेंगोल राजदंड' नए संसद भवन के उद्घाटन में आएगा सामने, जानें इसका इतिहास

Akanksha Gupta • LAST UPDATED : May 24, 2023, 1:53 pm IST

इंडिया न्यूज (India News), Amit Shah Press Conference, नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी 60 हजार श्रमयोगियों को भी सम्मानित करेंगे। जिन श्रमयोगियों ने संसद भवन के निर्माण में अपना योगदान दिया है।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, “नई संसद के उद्घाटन के मौके पर ऐतिहासिक परंपरा पुनर्जीवित होगी। नई संसद में सेंगोल (राजदंड) को स्थापित किया जाएगा। इसका अर्थ होता है संपदा से संपन्न। जिस दिन राष्ट्र को समर्पित होगी, उसी दिन तमिलनाडु से आए विद्वानों द्वारा सेंगोल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दी जाएगी। जिसके बाद इसे संसद में परमानेंट स्थापित कर दिया जाएगा। अमित शाह ने बताया कि इससे पहले सेंगोल इलाहाबाद के संग्रहालय में रखा हुआ था।

अमित शाह ने दी सेंगोल के इतिहास की जानकारी

अमित शाह ने सेंगोल के इतिहास को लेकर भी जानकारी दी। उन्होंने कहा, “जब पंडित नेहरू से आजादी के वक्त ये पूछा गया कि सत्ता हस्तांतरण के दौरान क्या आयोजन होना चाहिए? नेहरूजी ने अपने सहयोगियों से चर्चा की। सी गोपालाचारी से पूछा गया। जिसके बाद सेंगोल की प्रक्रिया को चिन्हित किया गया। पंडित नेहरू ने पवित्र सेंगोल को तमिलनाडु से मंगवा कर अंग्रेजों से सेंगोल को स्वीकार किया। इसका तात्पर्य था पारंपरिक तरीके से ये सत्ता हमारे पास आई है।”

जिसको सेंगोल प्राप्त होता उससे न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद

केंद्रीय गृह मंत्री ने आगे बताया, “सेंगोल के इतिहास और डीटेल में जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सेंगोल जिसको प्राप्त होता है उससे निष्पक्ष तथा न्यायपूर्ण शासन की उम्मीद की जाती है। यह चोला साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा इसमें धार्मिक अनुष्ठान किया गया। आजादी के वक्त जब सेंगोल नेहरू जी को सौंपा गया था, तब मीडिया ने इसे कवरेज दिया था।”

गृह मंत्री ने बताया, “साल 1947 के बाद सेंगोल को भुला दिया गया। जिसके बाद 1971 में तमिल विद्वान ने इसका जिक्र किया और किताब में इसका जिक्र किया। भारत सरकार ने साल 2021-22 में इसका जिक्र किया है। 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे वो भी उस दिन रहेंगे।”

संस्कृत के ‘संकु’ से लिया गया है सेंगोल शब्द

शाह ने बताया “सेंगोल संस्कृत शब्द ‘संकु’ से लिया गया है। इसका अर्थ है ‘शंख’। शंख हिंदू धर्म में एक बेहद ही पवित्र वस्तु थी। इसे अक्सर संप्रभुता के प्रतीक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक था। यह सोने-चांदी से बना था, और इसे अक्सर कीमती पत्थरों से सजाया जाता था। सेनगोल राजदंड औपचारिक अवसरों पर सम्राट द्वारा ले जाया जाता था। इसका उपयोग उनके अधिकार को दर्शाने के लिए किया जाता था।”

मौर्य साम्राज्य द्वारा किया गया था पहला उपयोग

“प्राचीन काल में भारत में सेंगोल राजदंड का इतिहास देखा जा सकता है। सेनगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) द्वारा किया गया था। अपने विशाल साम्राज्य पर मौर्य सम्राटों ने अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) तथा विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) द्वारा सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल किया गया था।”

बता दें कि आखिरी बार सेंगोल राजदंड को मुगल साम्राज्य (1526-1857) द्वारा उपयोग किया गया था। अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए मुगल बादशाहों ने सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल किया था। इसके अलावा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (1600-1858) द्वारा भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का भी इसेतमाल किया गया था।

1947 के बाद भारत सरकार द्वार नहीं हुआ उपयोग

भारत सरकार द्वारा साल 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के बाद सेंगोल राजदंड का इस्तेमाल नहीं किया गया था। हालांकि, अभी भी सेंगोल राजदंड भारतीय सम्राट की शक्ति और अधिकार का प्रतीक है। सेंगोल राजदंड भारत के समृद्ध इतिहास की याद दिलाता है। इसके साथ ही यह देश की आजादी का प्रतीक है। सेंगोल राजदंड को इलाहाबाद संग्रहालय में रखा गया था।

नेहरू की गोल्डन स्टिक के तौर पर देखा जाता था सेंगोल 

बता दें कि इलाहाबाद संग्रहालय में दुर्लभ कला संग्रह के रूप में रखी इस गोल्डन स्टिक को अभी तक नेहरू की सोने की छड़ी के तौर पर देखा जाता था। चेन्नई की एक गोल्डन कोटिंग कंपनी ने हाल ही में सेंगोल राजदंड को लेकर इलाहाबाद संग्रहालय प्रशासन को अहम जानकारी दी थी। कंपनी ने इस गोल्डन स्टिक को लेकर दावा किया कि ये कोई स्टिक नहीं बल्कि सत्ता हस्तांतरण का दंड है। गोल्डन ज्वेलरी कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) ने इस बात का दाना किया कि उनके वंशजों ने ही साल 1947 में इस राजदंड को आखिरी वायसराय के आग्रह पर बनाया था।

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