Supreme Court on Acid Attack: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक मामलों पर कड़े रुख और नए संकेत दिए हैं. ये आपराधिक न्याय प्रणाली, विकलांगता कानून और लैंगिक न्याय – तीनों पर गहरा असर डाल सकते हैं.
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने लंबी देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की और कहा कि न्यायालय चाहता है कि सभी राज्य ऐसे ही मामलों पर रिपोर्ट करें जहां मुकदमे अटके हुए हैं या पुलिस कार्रवाई करने में विफल रही है. नीचे दिए गए बिंदुओं में इन टिप्पणियों और निर्देशों का विश्लेषण समेकित रूप से किया गया है.
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें CJI सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्या बागची शामिल हैं, ने 2009 के एक एसिड अटैक मामले में 16 साल की देरी को “सिस्टम पर शर्म” जैसा बताया और इसे न्याय प्रणाली की विफलता के रूप में देखा. कोर्ट ने साफ किया कि ऐसे मामलों में विलंब न सिर्फ पीड़िता के अधिकारों का हनन है, बल्कि अभियुक्तों को अप्रत्यक्ष संरक्षण देने जैसा है, इसलिए ट्रायल को दिन‑प्रतिदिन आधार पर चलाने की बात कही गई.
एसिड अटैक मामलों पर हाई कोर्ट को निर्देश
हालिया कार्यवाही में कोर्ट ने सभी हाई कोर्टों से अपने-अपने क्षेत्राधिकार में लंबित एसिड अटैक ट्रायल्स का ब्योरा माँगा है और इन मामलों की शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है. अलग-अलग रिपोर्टों में जम्मू‑कश्मीर हाई कोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों को लंबित मामलों की स्थिति बताने और तेजी से निपटान के लिए कदम उठाने को कहा गया, जिससे संकेत मिलता है कि कोर्ट इन मामलों को “फ़ास्ट‑ट्रैक” मोड में देखना चाहता है.
आरोपियों पर कड़ा रुख
CJI सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि ऐसे अपराधों के आरोपी समाज और कानून दोनों के लिए गंभीर खतरा हैं और उनके खिलाफ जमानत, शर्तें और सजा – तीनों स्तर पर कड़ा रुख होना चाहिए. अदालत ने कहा कि ऐसे अपराधियों के प्रति कोई “सहानुभूति” नहीं दिखाई जानी चाहिए और अगर राजधानी तक में ट्रायल इतने लंबित रहें तो यह पूरे देश के लिए खराब संकेत है.
शहीन मलिक की याचिका और ज़बरन तेज़ाब पिलाने का मुद्दा
सुप्रीम कोर्ट एसिड अटैक सर्वाइवर शहीन मलिक के केस की सुनवाई कर रही थी. एसिड अटैक सर्वाइवर शहीन मलिक ने जनहित याचिका के ज़रिए यह मुद्दा उठाया कि कई मामलों में महिलाओं को ज़बरन तेज़ाब पिलाया जाता है, जिससे वे आजीवन गंभीर विकलांगता और मेडिकल निर्भरता झेलती हैं. उन्होंने बताया कि ऐसे पीड़ितों को अक्सर फीडिंग ट्यूब, लगातार इलाज और व्यापक देखभाल की ज़रूरत पड़ती है, पर कानून उन्हें समुचित तरीके से नहीं पहचानता.
“पशु प्रवृत्ति” वाले अपराध और SG की दलील
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि एसिड अटैक जैसे अपराध “पशु प्रवृत्ति” को दर्शाते हैं और अपराधियों से वैसी ही कठोरता के साथ निपटना होगा. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी और आवश्यक विधायी या नीतिगत उपायों पर विचार करेगी, खासकर विकलांगता से जुड़े अधिकारों के संदर्भ में.
परिभाषा की कमी: ज़बरन तेज़ाब पिलाना और RPwD Act
याचिका में यह महत्वपूर्ण कानूनी शून्य उजागर हुआ कि Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 में “acid attack victims” की परिभाषा मुख्यतः उन लोगों तक सीमित है जिनके साथ तेज़ाब फेंककर बाहरी विकृति की गई है. जस्टिस जॉयमल्या बागची ने टिप्पणी की कि कानून ने केवल “बाहरी विकृति” को आधार बनाया है, जबकि ज़बरन तेज़ाब पिलाने से होने वाली आंतरिक विकृति और गंभीर विकलांगता भी उतनी ही विनाशकारी है, इसलिए परिभाषा का विस्तार जरूरी है.
परिभाषा विस्तार की ज़रूरत
CJI सूर्यकांत और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दोनों इस बात पर सहमत दिखे कि एसिड अटैक की परिभाषा में ज़बरन तेज़ाब पिलाने को स्पष्ट रूप से शामिल किया जाना चाहिए. अदालत ने संकेत दिया कि RPwD Act की अनुसूची में “acid attack victims” की परिभाषा को purposive interpretation के ज़रिए या विधायी संशोधन/ऑर्डिनेंस के माध्यम से विस्तृत किया जा सकता है ताकि ऐसे पीड़ित भी सभी कल्याणकारी योजनाओं और आरक्षण जैसे लाभों के दायरे में आएँ.
NALSA और संस्थागत समन्वय पर टिप्पणी
कोर्ट ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) तथा अन्य संस्थाओं की भूमिका पर चर्चा करते हुए बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि सर्वाइवर्स को मुआवज़ा, कानूनी सहायता और पुनर्वास योजनाओं तक व्यावहारिक पहुँच मिल सके. डिजिटल एक्सेस, KYC और दस्तावेज़ीकरण जैसे क्षेत्रों में पहले दिए गए निर्देशों का हवाला देते हुए अदालत ने संकेत किया कि एसिड अटैक पीड़ितों के लिए “राइट टू डिजिटल एक्सेस” भी जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है.
आगे की सुनवाई और संभावित असर
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई कुछ हफ्तों बाद निर्धारित की है और तब तक हाई कोर्टों से लंबित मामलों का डेटा, केंद्र से विधायी कदमों पर रुख और याचिकाकर्ता से अपने 2009 वाले केस की देरी पर विस्तृत आवेदन देने को कहा है. यदि कोर्ट RPwD Act की परिभाषा का व्यापक न्यायिक व्याख्या के माध्यम से विस्तार करती है या केंद्र संशोधन लाता है, तो ज़बरन तेज़ाब पिलाने के मामलों सहित सभी एसिड अटैक सर्वाइवर्स को विकलांगता अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा और त्वरित न्याय तक मजबूत कानूनी आधार मिलेगा.