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Supreme Court Approves Char Dham Project: 12 हजार करोड़ की लागत से बनेगी चारधाम परियोजना

India News Editor • LAST UPDATED : December 16, 2021, 12:54 pm IST
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Supreme Court Approves Char Dham Project: 12 हजार करोड़ की लागत से बनेगी चारधाम परियोजना

Supreme Court Approves Char Dham Project

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Supreme Court Approves Char Dham Project:
सुप्रीम कोर्ट की ओर से केंद्र सरकार को चार धाम सड़क प्रोजेक्ट को हरी झंडी मिल गई है। कोर्ट ने उत्तराखंड में परियोजना के लिए तीन डबल-लेन हाईवे बनाने की मंजूरी दे दी है साथ ही सड़क की चौड़ाई 10 मीटर करने की इजाजत दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोर्ट न्यायिक समीक्षा में सेना के सुरक्षा संसाधनों को तय नहीं कर सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र के 8 सितंबर 2020 के आदेश में संशोधन की मांग को मानते हुए निर्माण की अनुमति दी है। बताया जाता है कि रक्षा मंत्रालय की तरफ से इसको लेकर गुजारिश की गई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अब मुहर लगाई है। ये हाईवे रक्षा क्षेत्र से जुड़े हैं, इससे चीनी सीमा तक पहुंचने में भी सेना को आसानी होगी।

पीएम मोदी ने 2016 में रखी थी आधारशिला Supreme Court Approves Char Dham Project

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट को 2013 की केदारनाथ त्रासदी में मृतकों के लिए श्रद्धांजलि बताया था। उत्तराखंड में उस समय हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी। इसी दौरान साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी थी, जिसके तहत चार धाम को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों को चौड़ा, बेहतर और मजबूत किया जाना है।

Supreme Court Approves Char Dham Project

क्या है चारधाम प्रोजेक्ट ?

चारधाम परियोजना एक तरह से आल वेदर रोड परियोजना है, जो उत्तराखंड में केवल चार धामों को जोड़ने की परियोजना भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय महत्व की परियोजना है। इसके जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़कर पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही पड़ोसी चालबाज देश चीन को चुनौती देने के लिहाज से भी यह महत्वपूर्ण है। पहले इस प्रोजेक्ट का नाम आल वेदर रोड प्रोजेक्ट ही था, जिसे बाद में नाम बदलकर चारधाम प्रोजेक्ट किया गया।

बताया जा रहा है कि 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से 900 किमी लंबे चार धाम प्रोजेक्ट का निर्माण होना है। इस प्रोजेक्ट के जरिए ऋषिकेश से गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए तीन नेशनल हाईवे बनाए जाने हैं। इन चारों स्थलों के लिए आल-वेदर कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए, जिन हाईवे का निर्माण होना है उनमें-ऋषिकेश से माना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक तीन हाईवे का निर्माण शामिल है।

देश की सुरक्षा के लिए प्रोजेक्ट क्यों जरूरी है?

  • चार धाम सड़क प्रोजेक्ट में चौड़े सड़क बनाने के लिए रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के सामने तर्क दिया था कि पूरे लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आसपास चीन की गतिविधि बढ़ने की चिंता के बीच ब्रह्मोस मिसाइलों और अन्य मिलिट्री संसाधनों को चीन की सीमा तक ले जाने के लिए चार धाम प्रोजेक्ट में चौड़ी सड़कों का निर्माण होना जरूरी है।
  • रक्षा मंत्रालय ने शीर्ष अदालत से ये भी कहा था कि अगर युद्ध छिड़ता है और सेना अपने मिसाइल लॉन्चर्स और हैवी मशीनरी को उत्तरी भारत-चीन सीमा तक नहीं ले जा पाती है, तो हम देश की सुरक्षा कैसे करेंगे।

ब्रह्मोस को इस प्रोजेक्ट की चौड़ी सड़कों से क्यों जोड़ा ?

  • सुप्रीम कोर्ट में चार धाम प्रोजेक्ट की सुनवाई के लिए केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था, ”ये दुर्गम इलाके हैं, जहां सेना को भारी वाहनों, मशीनरी, हथियार, मिसाइल, टैंक, टुकड़ियां और खाद्य सप्लाई ले जानी होती है। साथ ही हमारी ब्रह्मोस मिसाइल 42 फीट लंबी है और इसे ले जाने के लिए लंबे वाहनों की जरूरत पड़ती है।”
  • जनरल ने कहा था, आर्मी को ब्रह्मोस को ले जाना होता है एक बड़े इलाके की जरूरत होगी। अगर इससे भूस्खलन होता है, तो आर्मी इससे निपट लेगी। अगर सड़क ही पर्याप्त चौड़े नहीं होंगे तो हम जाएंगे कैसे?”
  • आगे भी तर्क दिया था, ”भगवान न करें कि अगर लड़ाई शुरू हो जाती है। ऐसे में अगर सेना के पास हथियार ही नहीं होंगे तो वह इससे कैसे निपटेगी। हमें सावधान और सतर्क रहना होगा। हमें तैयार रहना है।”

क्या है ब्रह्मोस मिसाइल? (Supreme Court Approves Char Dham Project)

  • ब्रह्मोस एक सुपरसॉनिक क्रूज मिसाइल है, जिसे पनडुब्बी, शिप, एयरक्राफ्ट या जमीन कहीं से छोड़ा जा सकता है। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मॉस्क्वा नदियों के नामों को मिलाकर बनाया गया है। ब्रह्मोस रूस की पी-800 ओकिंस क्रूज मिसाइल टेक्नोलॉजी पर आधारित है। इस मिसाइल को भारतीय सेना के तीनों अंगों, आर्मी, नेवी और एयरफोर्स को सौंपा जा चुका है।
  • दुनिया की सबसे तेज और घातक क्रूज मिसाइलों में शामिल ब्रह्मोस का निर्माण भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और रूसी के एनपीओ माशिनोस्ट्रोयेनिया के जॉइंट वेंचर के तहत बने ब्रह्मोस एयरोस्पेस की ओर से किया गया है। भारत और रूस ने फरवरी 1998 में ब्रह्मोस मिसाइलों के निर्माण के लिए करार किया था। ब्रह्मोस मिसाइलों का पहला परीक्षण जून 2001 में ओडिशा के चांदीपुर रेंज से किया गया था।

ब्रह्मोस मिसाइल की ताकत?

  • ब्रह्मोस मिसाइल के कई वर्जन मौजूद हैं। ब्रह्मोस के लैंड-लॉन्च, शिप-लॉन्च, सबमरीन-लॉन्च एयर-लॉन्च वर्जन की टेस्टिंग हो चुकी है। जमीन या समुद्र से दागे जाने पर ब्रह्मोस 290 किलोमीटर की रेंज में मैक 2 स्पीड से (2500किमी/घंटे) की स्पीड से अपने टारगेट को नेस्तनाबूद कर सकती है।
  • इस मारक रेंज को बढ़ाकर 800 किलोमीटर तक करने का काम जारी है। वहीं, हवा से छोड़ने पर ब्रह्मोस 400 किलोमीटर रेंज तक मार कर सकती है। इस रेंज को बढ़ाकर 1500 किलोमीटर किए जाने पर भी काम चल रहा है।
  • दिसंबर 2021 में ब्रह्मोस मिसाइल को सुखोई-30 फाइटर प्लेन से दागे जाने का सफल टेस्ट किया गया है। एयर लॉन्च्ड ब्रह्मोस का वजन करीब 2.5 टन, रेंज 300 किलोमीटर और स्पीड मैक 2.8 (3500 किमी/घंटे) है। पनडुब्बी से ब्रह्मोस मिसाइल को पानी के अंदर से 40-50 मीटर की गहराई से छोड़ा जा सकता है। पनडुब्बी से ब्रह्मोस मिसाइल दागने की टेस्टिंग 2013 में हुई थी।
  • इस मिसाइल के हाइपरसॉनिक वर्जन ब्रह्मोस-कक का विकास जारी है और इसकी टेस्टिंग 2024 तक होने की उम्मीद है। ब्रह्मोस-आईआई मिसाइल की रेंज 1500 किमी तक होगी और ये मैक 7-8 स्पीड (8500-9000 किमी/घंटे) से उड़ने में सक्षम होगी। ये दुनिया की सबसे तेज हाईपरसॉनिक मिसाइल होगी।

ब्रह्मोस मिसाइल की खासियत? (Supreme Court Approves Char Dham Project)

  • इसे जमीन, हवा, पनडुब्बी और युद्धपोत कहीं से भी दागा जा सकता है। क्रूज मिसाइल होने की वजह से यह जमीन से काफी कम, महज 10 मीटर की, ऊंचाई पर ही उड़ान भरती है। कम ऊंचाई पर उड़ने की वजह से ही यह रडार की पकड़ में नहीं आती है। ब्रह्मोस को ट्रैडीशनल लॉन्चर के अलावा वर्टिकल लॉन्चर से भी दागा जा सकता है।
  • ब्रह्मोस का मॉडर्न वर्जन मेनुवरेबल तकनीक से भी लैस है। यानी, इसमें दागे जाने के बाद लक्ष्य तक पहुंचने के लिए रास्ता बदलने की भी क्षमता है। आमतौर पर मिसाइलें या लेजर गाइडेड बम पहले से तय लक्ष्य को ही निशाना बना पाते हैं, जबकि ब्रह्मोस मिसाइल दागे जाने के बाद भी, अगर उसका लक्ष्य अपना स्थान बदल रहा है, तब भी उसे निशाना बना लेती है। ब्रह्मोस मिसाइल सतह से 10 मीटर से लेकर 14,000 मीटर की ऊंचाई तक के लक्ष्यों को भेद सकती है।
  • ब्रह्मोस मिसाइल की लंबाई आमतौर पर 8 से 9 मीटर, यानी 26 से 30 फीट तक होती है। ब्रह्मोस के कई वैरिएंट की लंबाई 42 फीट तक है। शिप और लैंड बेस्ड ब्रह्मोस मिसाइल 200 किलोग्राम वॉरहेड ले जा सकती है। इसका एरियल वैरिएंट 300 किलोग्राम वॉरहेड कैरी कर सकता है। ब्रह्मोस मिसाइलों का वजन 2200 किलोग्राम से लेकर 3000 किलोग्राम तक होता है।

ब्रह्मोस मिसाइल और चीन का क्या कनेक्शन?

केंद्र सरकार ने चार धाम रोड प्रोजेक्ट की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए उत्तरी चीन सेना तक ब्रह्मोस मिसाइल ले जाने का हवाला देते हुए सड़कों को चौड़ा करने की इजाजत मांगी थी। चीन के साथ सीमा पर तनाव के दौर में एलएसी पर भारत की ब्रह्मोस मिसाइलों की तैनाती ड्रैगन के लिए चिंता बढ़ाने वाली बात होगी। ब्रह्मोस मिसाइलों की एलएसी पर तैनाती से निश्चित तौर पर चीन के कई शहर इस घातक क्रूज मिसाइल की जद में होंगे।

भारत ने जून 2021 में 290 किलोमीटर रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइल का लाइव टेस्ट किया गया था। हाल ही में सुखोई-30 के साथ ब्रह्मोस का टेस्ट किया गया है। भारत के ये सुपरसॉनिक मिसाइल ब्रह्मोस टेस्ट चीन को भारत की मिसाइल क्षमता का अंदाजा कराते रहते हैं।

भारत के हाल ही में चीन के साथ लगने वाली सीमा पर अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने के फैसले की चीनी ने कड़ी आलोचना की थी और इसे दोनों देशों के संबंधों में तनाव लाने की कोशिश करार दिया था। ब्रह्मोस की तैनाती को लेकर चीनी मीडिया के इस हंगामे को ही इस मिसाइल को लेकर चीन का डर माना जा रहा है।

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