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अब पिता ही नहीं, मां की जाति से भी होगी बच्चे की पहचान, Supreme Court के फैसले ने बदली सदियों पुरानी परंपरा

Supreme Court Historic Judgment on Caste: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया हैं, जिसमें नाबालिग बच्ची की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए, उसकी मां की जाति के आधार पर SC सर्टिफिकेट जारी करने की मंज़ूरी दे दी.

Written By: shristi S
Last Updated: December 9, 2025 22:06:23 IST

Supreme Court SC Certificate Verdict: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया हैं, जिसमें नाबालिग बच्ची की शिक्षा को ध्यान में रखते हुए, उसकी मां की जाति आदि द्रविड़’ के आधार पर अनुसूचित जाति (SC) सर्टिफिकेट जारी करने की मंज़ूरी दे दी. इस फैसले को दूरगामी असर वाला माना जा रहा है. यह फैसला ऐसे समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कई याचिकाएं पेंडिंग हैं, जो उस पारंपरिक नियम को चुनौती देती हैं जिसके तहत बच्चे की जाति पिता की जाति के आधार पर तय होती है.

क्या है पूरा मामला?

जानकारी के मुताबिक, मामला पुडुचेरी की एक महिला से जुड़ा है, जिसने अपने तहसीलदार को आवेदन देकर अपनी जाति के आधार पर अपने तीन बच्चों – दो बेटियों और एक बेटे – के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने का अनुरोध किया था. महिला ने अपने आवेदन में कहा था कि उसके माता-पिता और दादा-दादी सभी हिंदू आदि द्रविड़ समुदाय के थे. उसने यह भी बताया कि शादी के बाद उसका पति उसके साथ उसके मायके में रह रहा था. इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा जारी पुरानी अधिसूचनाओं का भी ज़िक्र किया गया. 5 मार्च, 1964 और 17 फरवरी, 2002 को जारी राष्ट्रपति अधिसूचनाओं और गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, किसी व्यक्ति की जाति मुख्य रूप से उसके पिता की जाति और निवास स्थान के आधार पर तय की जाती थी.

रिपोर्ट के अनुसार, चीफ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को पलटने से इनकार कर दिया, जिसमें पुडुचेरी की लड़की को SC सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि अगर लड़की को समय पर जाति प्रमाण पत्र नहीं मिला, तो उसका भविष्य प्रभावित हो सकता है.

CJI सूर्यकांत ने क्या कहा?

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट बेंच ने यह भी साफ किया कि वह इस मामले में बड़े कानूनी सवाल को अभी खुला रख रही है. सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस सूर्यकांत की एक टिप्पणी ने एक नई बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा कि जब समय के साथ हालात बदल रहे हैं, तो मां की जाति के आधार पर जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं जारी किया जा सकता?  इस टिप्पणी को सामाजिक और कानूनी नज़रिए से एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है. अगर भविष्य में यह सिद्धांत स्थापित हो जाता है, तो इसका मतलब होगा कि अनुसूचित जाति की महिला और उच्च जाति के पुरुष के बच्चे, भले ही वे उच्च जाति के सामाजिक माहौल में पले-बढ़े हों, फिर भी SC सर्टिफिकेट के हकदार हो सकते हैं.

बच्चे की जाति पिता की जाति से होती है तय

बच्चों की जाति उनके पिता की जाति से तय होती थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई मामलों में इस सिद्धांत को माना है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे की जाति आम तौर पर पिता की जाति से तय होती है. 2003 के ‘पुनीत राय बनाम दिनेश चौधरी’ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण से जुड़े मामलों में, जाति तय करने का निर्णायक आधार पिता की जाति होगी, और पारंपरिक हिंदू कानून के तहत, बच्चा अपनी जाति पिता से पाता है, मां से नहीं.

हालांकि, 2012 के ‘रमेशभाई डबाई नाइका बनाम गुजरात सरकार’ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने इस सिद्धांत को थोड़ा और लचीला बनाया. उस फैसले में, कोर्ट ने कहा कि अंतर-जातीय विवाह या आदिवासी और गैर-आदिवासी व्यक्ति के बीच शादी से पैदा हुए बच्चे की जाति सिर्फ़ पिता की जाति के आधार पर तय नहीं की जा सकती. फैसले में यह भी कहा गया कि ऐसे मामलों में यह माना जा सकता है कि बच्चा पिता की जाति का है, लेकिन यह अनुमान अंतिम और पक्का नहीं है.

जाति तय करने के पिछले नियम क्या थे?

उस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि अगर कोई बच्चा यह साबित कर सकता है कि उसे अपनी मां के सामाजिक माहौल में पाला-पोसा गया है, जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से है, और उसने उस समुदाय के अन्य सदस्यों की तरह ही सामाजिक भेदभाव, अपमान और वंचित होने का सामना किया है, तो उसे उस समुदाय का माना जा सकता है.
अब, नवीनतम फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने बच्चे के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता देते हुए, मां की जाति के आधार पर SC सर्टिफिकेट जारी करने की अनुमति दी है, लेकिन यह भी साफ किया है कि जाति निर्धारण से जुड़े बड़े कानूनी सवालों पर अंतिम फैसला बाद में लिया जाएगा. इस फैसले से पूरे देश में जाति प्रमाण पत्र, आरक्षण और अंतर-जातीय विवाह से जुड़े अधिकारों के बारे में एक नई बहस शुरू होने की संभावना है. कानूनी विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अगर भविष्य में अदालतें मां की जाति को एक निर्णायक कारक के रूप में मानने की दिशा में आगे बढ़ती हैं, तो यह सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है.

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