क्या है पूरा मामला?
जानकारी के मुताबिक, मामला पुडुचेरी की एक महिला से जुड़ा है, जिसने अपने तहसीलदार को आवेदन देकर अपनी जाति के आधार पर अपने तीन बच्चों – दो बेटियों और एक बेटे – के लिए अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने का अनुरोध किया था. महिला ने अपने आवेदन में कहा था कि उसके माता-पिता और दादा-दादी सभी हिंदू आदि द्रविड़ समुदाय के थे. उसने यह भी बताया कि शादी के बाद उसका पति उसके साथ उसके मायके में रह रहा था. इस मामले में केंद्र सरकार द्वारा जारी पुरानी अधिसूचनाओं का भी ज़िक्र किया गया. 5 मार्च, 1964 और 17 फरवरी, 2002 को जारी राष्ट्रपति अधिसूचनाओं और गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, किसी व्यक्ति की जाति मुख्य रूप से उसके पिता की जाति और निवास स्थान के आधार पर तय की जाती थी.
CJI सूर्यकांत ने क्या कहा?
बच्चे की जाति पिता की जाति से होती है तय
बच्चों की जाति उनके पिता की जाति से तय होती थी। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कई मामलों में इस सिद्धांत को माना है, जिसमें कहा गया है कि बच्चे की जाति आम तौर पर पिता की जाति से तय होती है. 2003 के ‘पुनीत राय बनाम दिनेश चौधरी’ मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण से जुड़े मामलों में, जाति तय करने का निर्णायक आधार पिता की जाति होगी, और पारंपरिक हिंदू कानून के तहत, बच्चा अपनी जाति पिता से पाता है, मां से नहीं.