Supreme Court: राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को अहम फैसला सुनाया. अदालत ने विधानसभा से पारित बिलों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल की भूमिका तथा मंजूरी की समयसीमा को लेकर महत्वपूर्ण स्पष्टता दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल किसी भी बिल को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते. ऐसा करना न केवल संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करता है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया और राज्यपाल के संवैधानिक दायित्वों के भी खिलाफ है.
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए.एस. चंदुरकर की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 11 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखा था.
1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवर्नर को बिलों की मंजूरी के लिए किसी तय टाइमलाइन में बाध्य नहीं किया जा सकता.
2. “डीम्ड असेंट” का सिद्धांत संविधान की मूल भावना और शक्तियों के बंटवारे के सिद्धांत के खिलाफ बताया गया.
3. कोर्ट ने कहा कि चुनी हुई सरकार और कैबिनेट को ही ‘ड्राइवर की सीट’ में होना चाहिए; दो लोग ड्राइव नहीं कर सकते. हालांकि, गवर्नर की भूमिका केवल औपचारिक भी नहीं है.
4. आर्टिकल 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट स्वयं किसी विधेयक को मंजूरी नहीं दे सकता. यह अधिकार राष्ट्रपति और राज्यपाल के क्षेत्राधिकार में आता है.
5. अगर विधानसभा से पारित बिल को राज्यपाल अनिश्चित समय तक अपने पास रोक लें, तो यह संघवाद के खिलाफ माना जाएगा. कोर्ट की राय है कि ऐसे मामलों में राज्यपाल को बिल वापस भेजकर पुनर्विचार हेतु कहना चाहिए.
6. सामान्य स्थिति में गवर्नर को मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करना होता है, लेकिन विवेकाधिकार से जुड़े मामलों में वे स्वतंत्र निर्णय ले सकते हैं.
7. कोर्ट ने कहा कि गवर्नर और राष्ट्रपति, दोनों के पास विशेष भूमिकाएं और प्रभाव होते हैं.
8. गवर्नर के पास बिल को अनिश्चितकाल तक रोकने या प्रक्रिया ठप करने का अधिकार नहीं है. वे केवल बिल को मंजूरी दे सकते हैं, असेंबली में वापस भेज सकते हैं या राष्ट्रपति के पास रेफर कर सकते हैं.
9. यदि गवर्नर कार्य नहीं करते, तो संवैधानिक कोर्ट सीमित दायरे में ज्यूडिशियल रिव्यू कर सकते हैं और बिना मेरिट में जाए गवर्नर को कार्रवाई करने का निर्देश दे सकते हैं.
10. Article 200 में Governor को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है. वे विधेयक लौटाने या राष्ट्रपति को भेजने का निर्णय कर सकते हैं.