Supreme Court
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले को रद्द किया है और कहा है कि पोक्सो एक्ट के तहत अपराध के लिए ‘स्किन टू स्किन’ टच का होना जरूरी नहीं। हाईकोर्ट ने कहा था कि स्किन टू स्किन के संपर्क के बिना नाबालिग के स्तन को छूना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। पोक्सो के तहत बच्ची के स्किन टू स्किन टच होने पर ही अपराध साबित होता है।
अब Supreme Court ने अपने फैसले में कहा कि गलत मंशा से किसी भी तरह से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श करना पोक्सो एक्ट का मामला माना जाएगा। यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है। ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए बने पोक्सो एक्ट के मकसद ही खत्म कर देगी। शारीरिक संपर्क को त्वचा से त्वचा के संपर्क तक सीमित रखने का संकीर्ण अर्थ देने से पोक्सो अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह था मामला
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि नाबालिग के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना छूना या टटोलना पॉक्सो एक्ट के तहत नहीं आता। बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच ने कहा था कि बिना स्किन टू स्किन टच के बच्ची के शरीर को टटोलना आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ तो है, लेकिन पोक्सो की धारा 8 के तहत ह्ययौन हमलाह्ण का गंभीर अपराध नहीं है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इस मुद्दे को Supreme Court में उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए दोषी को 3 साल जेल की सजा भी सुनाई है।
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