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India News (इंडिया न्यूज), Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (16 दिसंबर, 2024) को एक मामले की सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता से पूछा कि ‘जय श्री राम’ का नारा लगाना अपराध कैसे है। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका दायर की गई थी, जिसमें मस्जिद के अंदर कथित तौर पर ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वाले दो लोगों के खिलाफ कार्यवाही रद्द करने का आदेश दिया गया था। शिकायतकर्ता हैदर अली सी एम की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पंकज मिथल और संदीप मेहता की पीठ ने पूछा, “वे एक खास धार्मिक नारा या नाम चिल्ला रहे थे। यह अपराध कैसे है?”
सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता से यह भी पूछा कि, मस्जिद के अंदर कथित तौर पर नारा लगाने वाले लोगों की पहचान कैसे की गई। याचिका में कर्नाटक हाई कोर्ट के 13 सितंबर के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें मामले में दो लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत से पूछा, “आप इन प्रतिवादियों की पहचान कैसे करते हैं? आप कहते हैं कि वे सभी सीसीटीवी कैमरों में कैद हैं।” कोर्ट ने आगे पूछा कि अंदर आए लोगों की पहचान किसने की? वकील ने कहा कि मामले में जांच अधूरी होने के बावजूद हाईकोर्ट ने कार्यवाही रद्द कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने पाया कि आरोप आईपीसी की धारा 503 या धारा 447 के तत्वों को नहीं छूते। आईपीसी की धारा 503 जहां आपराधिक धमकी से संबंधित है, वहीं धारा 447 आपराधिक अतिचार के लिए दंड से संबंधित है। जब पीठ ने पूछा, “क्या आप मस्जिद में प्रवेश करने वाले वास्तविक व्यक्तियों की पहचान कर पाए हैं?” कामत ने कहा कि राज्य पुलिस को इस पर स्पष्टीकरण देना होगा। पीठ ने याचिकाकर्ता से याचिका की एक प्रति राज्य को देने को कहा और मामले को जनवरी 2025 के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “यह समझ से परे है कि अगर कोई जय श्री राम का नारा लगाता है, तो इससे किसी वर्ग की धार्मिक भावनाएं कैसे आहत होंगी।” इससे पहले, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि कथित घटना से सार्वजनिक उपद्रव या किसी तरह की दरार पैदा होने का कोई आरोप नहीं है, उच्च न्यायालय ने कहा, “शिकायतकर्ता ने यह भी नहीं देखा है कि वह व्यक्ति कौन है। जिस पर आईपीसी की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी का अपराध करने का आरोप है।” उच्च न्यायालय ने यह आदेश दो व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका पर पारित किया, जिन पर मस्जिद में घुसने और धार्मिक नारे लगाने का आरोप था।
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