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अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बढ़ाई विशेषज्ञों की चिंता, खतरे में दिल्ली-NCR; अन्य पहाड़ों पर भी पड़ेगा बुरा असर?

Aravali Hills: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अरावली की 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची पहाड़ियों के रूप में की गई परिभाषा को स्वीकार कर लिया गया है. जिसके कारण यह चिंता पैदा हो गई है कि इसका उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है.

Written By: Preeti Rajput
Last Updated: 2025-11-28 09:27:32

Supreme Court On Aravali Hills: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अरावली के लिए प्रस्तावित परिभाषा में, हरियाणा सरकार ने न्यूनतम आयु और ऊंचाई के मानदंड का इस्तेमाल किया है. खनन विभाग द्वारा प्रस्तावित परिभाषा में केवल उन पहाड़ियों को मान्यता दी गई है जिनकी चट्टानें कम से कम एक अरब वर्ष पुरानी हों और जो आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हों. यदि इस प्रकार की ऊंचाई का निर्धारण किया जाता है, तो अधिकांश पहाड़ियां इस परिभाषा के दायरे से बाहर हो जाएंगी. जो विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा रही है. 

अरावली पर पड़ने वाला असर

अरावली की पहाड़ियां उत्तर भारत के लिए हरित दीवार की तरह काम करती है. यह थार रेगिस्तान को फैलने से रोकती है. साथ ही जलवायु, जैव विविधता और नदियों को बनाए रखती है. कोर्ट के आदेश में नई लीज पर रोक लगा दी गई है. जिसके कारण अब अवैध खनन और वन कटाई पर रोक लगेगी. सात ही अरावली ग्रीन वॉल प्रोजेक्ट‘ को भी बल मिलेगी. हरियाणा-राजस्थान में पहले ही 25% अरावली खनन से नष्ट हो चुकी है.

विशेषज्ञों ने बढ़ाई चिंता 

विशेषज्ञों का कहना है कि यह संभव है कि एनसीआर के सदस्य राज्य सुप्रीम कोर्ट द्वारा 100 मीटर की परिभाषा को स्वीकार किए जाने का हवाला देंगे, भले ही यह केवल खनन के संदर्भ में ही क्यों न हो. वन संरक्षक आर पी बलवान ने कहा, “यह आपदा का कारण बन सकता है. गुड़गांव और फरीदाबाद में अरावली के संरक्षण के खिलाफ काम करने वाली ताकतें इस परिभाषा का इस्तेमाल और अधिक रियल एस्टेट गतिविधियों को अनुमति देने के लिए करेंगी. जिसका सीधे तौर पर असर दिल्ली-एनसीआर पर पड़ता नजर आएगा. साथ ही प्रयावरण को भी खतरा हो सकता है. 

उन्होंने आगे कहा कि गुड़गांव में 95% और फरीदाबाद में 90% अरावली नई परिभाषा में फिट नहीं होगी और निचली पहाड़ियों को बाहर करने का मतलब होगा कि झाड़ीदार पहाड़ियों, घास के मैदानों और रिज क्षेत्रों का विशाल विस्तार पारिस्थितिक संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा.



प्रयावरण के साथ हो रहा खिलवाड़

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, क्षेत्रीय योजना 2041 में एनसीजेड को प्रस्तावित रूप से कमज़ोर करना विवाद का मुख्य कारण रहा है क्योंकि मसौदा योजना को हितधारकों के साथ साझा किया गया था और चार साल से भी पहले सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए रखा गया था. 4,000 से अधिक प्रतिक्रियाओं में से अधिकांश ने एनसीजेड में गैर-वन गतिविधियों को प्रतिबंधित करने वाले खंडों को बहाल करने का समर्थन किया. यहां तक ​​कि जब यह मुद्दा गृह मंत्री और पीएमओ की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के एक समूह के समक्ष रखा गया, तब भी उन्होंने एनसीजेड में बदलाव न करने का समर्थन किया.

अन्य पहाड़ों पर भी पड़ेगा असर

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की कमजोरी को सरांडा झारखंड से भी जोड़ा है. जो सकेंत देता है कि MPSM मॉडल को वेस्टर्न घाट्स जैसे छोटे पहाड़ और क्षेत्रों में भी लागू किया जाएगा. जहां पर माइनिंग के कारण जलवायु और जैव विवधता संकट से गुजर रही है. अरावली की पहाड़ियों का सीधा असर दिल्ली-एनसीआर की हवा और पानी पर पड़ता है. बता दें कि, खनन माफिया हर क्षेत्र में सक्रिय हैं. जिसके तहतचाहते हुए भी गैर कानूनी तौर पर माइनिंग की जा रही है. कोर्ट के इस फैसले से बाकी पहाड़ों पर भी बुरा असर पड़ता नजर आएगा. कोर्ट का ये फैसला केवल माइनिंग और सरकार के हित में लिया गया है.

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