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रात को मुगलों के साथ यमुना में नहाती थीं रखैलें, इतने अय्याश थे बादशाह; जानिए शाहजहां से लेकर जहांगीर तक की करतूतें

Yamuna River: एक समय में यमुना इतनी साफ थी कि मुगल बादशाह और उनके साथ रखैलें इस नदी में नहाती थीं, इतना ही नहीं इस नदी का इतिहास जान आप सब ही हैरान रह जाएंगे.

Written By: Heena Khan
Last Updated: September 12, 2025 07:30:31 IST

Mughal History: यमुना नदी से हर कोई वाकिफ है. जहां अब यमुना नदी पूरी तरह से कचरे से भरी रहती है. वहीं एक समय था जब यमुना नदी में मुगल बादशाह नहाया करते थे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मुगल बादशाहों के काल और यहां तक ​​कि ब्रिटिश शासन के दौरान भी यमुना काफी स्वत्छ थी यहां तक की इस नदी में मछलियों को साफ तैरता हुआ देखा जा सकता था.  खास बात ये है कि अकबर और जहांगीर ज्यादातर आगरा में रहते थे, लेकिन यमुना से उनका एक खास कनेक्शन था.

दिलचस्प बात ये है कि अकबर ने यमुना में नावें बंधवाईं ताकि वो असहनीय गर्मी की रातों में चैन से आराम कर सके. जहांगीर ने भी कुछ ऐसा ही किया.  वहीं जब शाहजहां ने अपनी राजधानी दिल्ली स्थानांतरित की, तो उन्हें नदी में नौका विहार का आनंद तो मिला ही, लेकिन रात में उनके हरम के कैदी, रखैलें, राजकुमारियां और दासियां ​​लाल किले के नदी द्वार से नौका विहार और स्नान के लिए जाती थीं. उनके साथ हिजड़े भी होते थे जो अंगरक्षक का काम करते थे.

जहांगीर से भी जुड़ा है इतिहास 

इतिहासकार डॉ. दानपाल सिंह का कहना है कि, जब राजकुमार सलीम, यानी जहांगीर, किशोरावस्था में पहुंचे, तो उन्हें मानसून के महीनों में आयोजित होने वाले वार्षिक तैराकी मेले के दौरान आगरा किले से सैय्यद का बाग तक नदी में तैराया गया. राजकुमार ने उफनती नदी की धाराओं का सामना करते हुए दूसरी ओर कदम बढ़ाया. जहां उन्होंने बाग में चिरागी चढ़ाए और मुगल दरबार के सर्वश्रेष्ठ तैराक मीर मछली से ‘उस्ताद-ए-तैराक’ (तैराकी में निपुण) की उपाधि प्राप्त की.

रात में तैरते थे राजकुमार- राजकुमारियां 

उर्दू लेखिका इस्मत चुगताई के दादा मास्टर कमरुद्दीन भी कुछ कम नहीं थे और जब भी उनका मन करता, वो दिल्ली से आगरा तक यमुना में तैरते थे. हालाँकि दिल्ली में तैराकी के मेले इतने लोकप्रिय नहीं थे, फिर भी राजकुमार और राजकुमारियां लोगों की नज़रों से बचने के लिए बरसात के दिनों में रात में नदी में तैरते थे. सबसे बदनाम मुगल बादशाह शाह आलम के सबसे बड़े बेटे, राजकुमार जहांदार बख्त, मराठों से बचने के लिए 1787 में किले के शाह बुर्ज से नदी में कूद गए. बाद में वो अवध के नवाब और अंग्रेजों से मदद लेने लखनऊ पहुंचे.

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