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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संघर्ष, युद्ध, आतंकवाद और उससे उत्पन्न होने वाली विभिन्न वैश्विक चुनौतियों का जिक्र करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि दुनिया संकट की स्थिति में है और यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी।
प्रधानमंत्री ने बृहस्पतिवार को ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए खाद्य, ईंधन और उर्वरकों की बढ़ती कीमतों, कोविड-19 वैश्विक महामारी के आर्थिक प्रभावों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं पर भी चिंता व्यक्त की।
मोदी ने विभिन्न विकासशील देशों के कई नेताओं की उपस्थिति में सम्मेलन की शुरूआत करते हुए कहा, ‘‘ हम नववर्ष की बेला में मिल रहे हैं और यह वर्ष नयी उम्मीदें और नयी ऊर्जा लेकर आया है। हमने पिछले वर्ष के पन्ने को पलटा है जिसमें हमने युद्ध, संघर्ष, आतंकवाद और भू राजनीतिक तनाव को देखा। खाद्य, उर्वरक, ईंधन की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न आपदाएं और कोविड महामारी के दूरगामी आर्थिक प्रभाव इनमें शामिल हैं।’’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ यह स्पष्ट है कि दुनिया संकट की स्थिति में है। यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि अस्थिरता की यह स्थिति कब तक रहेगी।’’ उन्होंने कहा कि वक्त की जरूरत है कि हम सरल, पूरा करने योग्य और टिकाऊ समाधान ढूंढें जो समाज और अर्थव्यवस्थाओं में बदलाव ला सके।मोदी ने कहा, ‘‘ ऐसे दृष्टिकोण के साथ हम कठिन चुनौतियों से पार पा सकेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे विश्वास है कि साथ मिलकर वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) नये और रचनात्मक विचार ला सकता है। ये विचार जी20 एवं अन्य मंचों पर हमारी आवाज का आधार बन सकते हैं। हमारी प्रार्थना है… इसका अर्थ है कि नेक विचार दुनिया के हर कोने से आने चाहिए। वॉयस आफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन हमारे समग्र भविष्य के लिये नेक विचार प्राप्त करने का सामूहिक प्रयास है।’’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘ हमारा (ग्लोबल साउथ) भविष्य सबसे अधिक दांव पर लगा है। अधिकतर वैश्विक चुनौतियों के लिए ‘ग्लोबल साउथ’ जिम्मेदार नहीं है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव हम पर ही पड़ता है।’’ उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा उसके विकास संबंधी अनुभव को ‘‘ ‘ग्लोबल साउथ’ के अपने भाइयों’’ के साथ साझा किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत इस वर्ष जी20 की अध्यक्षता कर रहा है और स्वाभाविक है कि हमारा उद्देश्य ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज बुलंद करना होगा। भारत 12-13 जनवरी को दो दिवसीय ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ’ शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है, जो यूक्रेन संघर्ष के कारण उत्पन्न खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर विकासशील देशों को अपनी चिंताएं साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
‘ग्लोबल साउथ’ व्यापक रूप से एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों को कहा जाता है। इस सम्मेलन का विषय, ‘मानव केंद्रित विश्व के लिए विकासशील देशों की आवाज’ है। सम्मेलन के मंत्री-स्तरीय समापन सत्र का विषय ‘यूनिटी ऑफ वॉइस-यूनिटी ऑफ पर्पज़’ होगा। शिखर सम्मेलन में दस सत्रों का आयोजन होगा, जिनमें से चार सत्र बृहस्पतिवार को, जबकि छह सत्र शुक्रवार को होंगे। प्रत्येक सत्र में 10 से 20 देशों के नेताओं और मंत्रियों के शामिल होने की उम्मीद है।
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