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India News(इंडिया न्यूज),CAA: देश में सोमवार के बाद लगातार रूप नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सियासत में गर्माहट है। जिसके बाद देश की राजनीतिक पार्टियां लगातार रूप से इस पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे है। इसी मामले में अब हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है जिसमें उन्होने कहा है कि, धार्मिक आधार पर कानून नहीं बनाया जा सकता। यह केवल राजनीतिक दलों तक ही सीमित मामला नहीं है। यह देश का मामला है। क्या आप 17 करोड़ मुसलमानों को राज्यविहीन बनाना चाहते हैं। यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
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इसके साथ ही आगे ओवैसी ने कहा कि, लोगों को सीएए को अलग से नहीं देखना चाहिए। यह केंद्र सरकार द्वारा एनआरसी और एनपीआर को लागू करने की एक पहल है। यह सभी चीजें लागू होने से मुसलमानों, दलित, जनजातियों और गरीब लोगों को नुकसान होगा। हैदराबाद की जनता सीएए के खिलाफ मतदान करेंगे। मैं ध्रुवीकरण नहीं कर रहा हूं। केंद्र सरकार धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है। इसके आगे उन्होंने कहा कि, असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एनआरसी लागू किया गया। असम में प्रशासन ने 19 लाख लोगों को संदिग्ध घोषित कर दिया। इनमें 10 से 12 लाख हिंदू हैं। अब सीएए के कार्यान्वयन से उन्हें नागरिकता मिलेगी लेकिन मुसलमानों को नागरिकता नहीं मिलेगी। यह अन्याय है।
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देश में CAA को लेकर लगातार कई सारे अफवाहे फैली हुई है। चलिए आपको बतातें है कि नागरिकता संशोधन विधेयक क्या है? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, इस कानून के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता के लिए पात्र बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया है। नागरिकता अधिनियम में देशीयकरण द्वारा नागरिकता का प्रावधान किया गया है। आवेदक को पिछले 12 महीनों के दौरान और पिछले 14 वर्षों में से आखिरी साल 11 महीने भारत में रहना चाहिए। कानून में छह धर्मों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) और तीन देशों (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान) से संबंधित व्यक्तियों के लिए 11 वर्ष की जगह छह वर्ष तक का समय है।
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