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India News (इंडिया न्यूज), Hathras Case: लोकसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने हाथरस की पीड़िता का मुद्दा उठाया। इस दौरान उन्होंने कहा, “चार साल पहले हाथरस में एक दलित लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ था। तीन-चार लोग गैंगरेप करते हैं। मैं दो-तीन दिन पहले उस लड़की के परिवार से मिला था। लड़की का परिवार अपने घर में बंद हैं। जो अपराधी है वो बाहर घूमते हैं और परिवार को धमकाते हैं। परिवार ने मुझे बताया कि, बेटी का जो अंतिम संस्कार था। वो भी मुझे नहीं करने दिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मीडिया में खुलकर झूठ बोला है। यह संविधान में कहां लिखा है? यूपी में संविधान नहीं, मनु स्मृति लागू है। सरकार ने दूसरी जगह घर देने का वादा नहीं निभाया। हम इंडिया गठबंधन के लोग उस परिवार को दूसरी जगह घर दिलवाएंगे।”
उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस दुष्कर्म और हत्या मामले में विशेष अदालत ने मुख्य आरोपी संदीप सिंह को दोषी करार दिया है, जबकि तीन आरोपियों लव-कुश, रामू और रवि को बरी कर दिया है। अदालत ने मुख्य आरोपी संदीप सिंह को आईपीसी की धारा 3/110 और 304 के तहत गैर इरादतन हत्या का दोषी पाया है। अदालत ने संदीप सिंह को आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। हालांकि, अदालत ने इस मामले से दुष्कर्म के आरोप हटा दिए हैं। यानी अदालत ने माना है कि पीड़िता के साथ सामूहिक दुष्कर्म नहीं हुआ था।
हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, 14 सितंबर 2020 को हाथरस के बूलगढ़ी में दलित लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। लड़की को इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 29 सितंबर 2020 को उसी अस्पताल में इलाज के दौरान लड़की की मौत हो गई थी। पीड़िता के परिवार का आरोप है कि उनकी मर्जी के खिलाफ 29 सितंबर 2020 की रात को यूपी पुलिस और प्रशासन ने लड़की का अंतिम संस्कार कर दिया और शव को जला दिया।
इस मामले में पुलिस ने मुख्य आरोपी (अब दोषी करार) संदीप ठाकुर, लवकुश, रामू और रवि को हत्या, दुष्कर्म और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। भारी जनदबाव के चलते इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी। 29 दिसंबर 2020 को सीबीआई ने इस मामले में 4 आरोपियों के खिलाफ 2000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी। इस मामले में सीबीआई ने 104 गवाह पेश किए थे। अब कोर्ट ने मुख्य आरोपी संदीप सिंह को गैर इरादतन हत्या का दोषी पाया है। लेकिन कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप का आरोप हटा दिया है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि, जब पीड़िता को 14 सितंबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब न तो उसने और न ही उसकी मां ने यौन उत्पीड़न का जिक्र किया था। अस्पताल में भर्ती होने के एक हफ्ते बाद यानी 22 सितंबर को पहली बार यौन उत्पीड़न की बात सामने आई। मेडिकल साक्ष्यों से भी यौन उत्पीड़न साबित नहीं हो सका।इसके अलावा कोर्ट ने ये भी दलीलें दी कि, पीड़िता के शरीर पर मिले जख्म के निशान एक ही व्यक्ति द्वारा किये गए हैं। इसके अलावा कोर्ट के अनुसार पीड़िता के बयान में भी बदलाव दिखा है। पीड़िता ने जो बयान डॉक्टर को दिया है और जो स्टेटमेंट महिला कॉस्टेबल को दिया है उसमें भिन्नता है। इस सब साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी कर दिया।
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