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यूपी चुनाव ने बघेल को दी राहत

PUBLISHED BY: Harpreet Singh • LAST UPDATED : September 5, 2021, 11:58 am IST
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यूपी चुनाव ने बघेल को दी राहत

राहुल के छत्तीसगढ़ दौरे से होगी स्थिति साफ
अजीत मेंदोला, नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश चुनाव ने छत्तीसगढ़ के बदलाव को फिलहाल अगले साल तक लिए टाल दिया दिखता है। हालांकि राहुल गांधी के छत्तीसगढ़ दौरे के बाद ही स्थिति साफ होगी। राहुल गांधी आने वाले हफ्ते में एक दिन के दौरे पर छतीसगढ़ जा सकते हैं। जो संकेत मिल रहे हैं उनसे यही माना जा रहा है कि बघेल अपनी कुर्सी हाल फिलहाल बचाने में कामयाब हो गए हैं। अब छतीसगढ़ में जो भी होगा यूपी चुनाव के बाद ही होने के ज्यादा आसार दिखाई दे रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि आलाकमान यूपी चुनाव से पहले कोई विवाद नहीं चाहता था। दूसरा बघेल की दबाव की राजनीति ने भी काम किया। छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के फार्मूले के चलते टीएससिह देव ने बीते सप्ताह मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी जताई थी। जिसके बाद राज्य की राजनीति में कांग्रेस सीधे सीधे दो गुटों में बंट गई। रायपुर से लेकर दिल्ली तक दोनों गुटों में जोर आजमाइश का दौर शुरू हो गया। दरअसल 2018 में जब राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मघ्यप्रदेश के चुनाव हुए हर राज्य में दो दो दावेदार पहले ही तैयार थे। राजस्थान में अशोक गहलोत ओर सचिन पायलट, मध्यप्रदेश में कमलनाथ ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा छतीसगढ़ में टीएससिह देव और भूपेश बघेल आमने सामने थे। चुनाव जीतने के बाद राहुल गांधी ने हर राज्य के लिए अपना फार्मूला बना दिया। सूत्रों का कहना है कि ढाई साल से पहले ही बदलाव का भरोसा राहुल ने दे दिया। जानकार मान रहे हैं राहुल गांधी ने बीच का यह फार्मूला बनाते समय शायद यह उम्मीद कर ली थी कि 6 माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की वापसी नहीं होगी। जैसे-तैसे कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए की सरकार बन जाएगी। सीधा समीकरण था। इन तीनों ंराज्यों समेत हिंदी भाषी राज्यों में बीजेपी 2014 का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाएगी। रणनीतिकारों ने 190 से 200 सीट का समीकरण राहुल को समझा दिया था। लेकिन परिणाम पूरी तरह से उलट आ गए। राहुल खुद यूपी से चुनाव हार गए। रणनीतिकार और दिग्गज भी सभी निपट गए। राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत सभी हिदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की करारी हार हुई। हार की जिम्मेदारी लेने के बजाए रणनीतिकारों ने राहुल गांधी से अध्य्क्ष पद इस्तीफा दिलवा दिया। जिससे खुद जिम्मेदारी लेने से बचा जा सके। राहुल ने कहने के लिए तो जुलाई 2019 में अध्यक्ष पद से तो इस्तीफा दे दिया, लेकिन पूरी तरह से पार्टी की कमान अपने ही हाथ मे रखी। इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी में गुटबाजी बढ़ गई। हर राज्य गुटबाजी का शिकार हो गया। उसका परिणाम यह रहा कि राहुल वादा पूरा करने की स्थिति में नही रहे। जिसके चलते मध्यप्रदेश की सरकार चली गई। राजस्थान में अनुभवी अशोक गहलोत सरकार बचाने में कामयाब रहे। अब छत्तीसगढ़ जहां पर कांग्रेस को भारी बहुमत मिला था वरिष्ठ मंत्री टीएससिह देव ने राहुल गांधी को वा दे की याद दिला दी। 2018 में टीएससिह देव के समर्थन में आधे से ज्यादा विधायक थे, लेकिन राहुल गांधी के आग्रह पर पहला मौका तब के प्रदेश अध्य्क्ष भूपेश बघेल को दिया गया। बघेल जानते थे कि एक दिन उनको हटाया जा सकता सो उन्होंने पहले दिन से ही रायपुर से दिल्ली तक अपनी मजबूत सेटिंग कर ली। जब बात बढ़ती दिखी तो 50 विधायक दिल्ली में ला अपनी ताकत भी दिखा दी। बघेल ने राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी के साथ अपने संबंध मजबूत किए। सूत्रों का कहना है असम चुनाव का खर्चा उन्होंने उठाया। भाई -बहन खासे दबाव में आ गए। वैसे भी चुनाव के लिए लगभग दो साल रह गए हैं। सूत्रों का कहना है बघेल ने असम की तरह यूपी चुनाव की भी जिम्मेदारी संभालने की बात कही। कांग्रेस जो इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही है। उसके लिए अगले साल सात राज्यों के चुनाव लड़ना बड़ी चुनोती है। ऐसे संकेत हैं चुनाव के चलते फिलहाल बदलाव के फैसले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। हालांकि टीएससिह देव के समर्थकों को भरोसा है कि राहुल गांधी अपने छत्तीसगढ़ दौरे के दौरान अपना वादा पूरा करेंगे। ऐसे में राहुल गांधी के लिए छत्तीसगढ़ का दौरा भी सरदर्द बढ़ाने वाला हो सकता है। सूत्रों का कहना है पार्टी सिंहदेव को यही समझा रही है यूपी चुनाव के बाद फैसला करेंगे। अगला चुनाव उनकी अगुवाई में ही लड़ा जाएगा। राहुल गांधी अब फाइनल फैसला जो भी करें, फिलहाल उनकी टीम ने छतीसगढ़ को भी परेशानी में फंसा दिया है।

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