ADVERTISEMENT
होम / देश / उप्र चुनाव: किसका होगा राज, जातीय समीकरण से जानेंगे आज

उप्र चुनाव: किसका होगा राज, जातीय समीकरण से जानेंगे आज

BY: Prachi • LAST UPDATED : September 2, 2021, 11:14 am IST
ADVERTISEMENT

संबंधित खबरें

उप्र चुनाव: किसका होगा राज, जातीय समीकरण से जानेंगे आज

UP vidhan sabha

इंडिया न्यूज, लखनऊ:
सन 2022 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। हर राजनेता की नजर इन चुनावों पर है। यहां जातीय समीकरण खासे मायने रखते हैं। ऐसे में सभी दल इन समीकरणों पर काम करने लग गए हैं। इसके लिए किसी भी नेता से संपर्क करने से पहले जातीय समीकरणों को ध्यान में रखना शुरू हो गया है। एक तरफ भाजपा अपने जातीय वोटरों को लुभाने में लगी है, वहीं दूसरी पार्टियां भी समीकरणों पर काम कर रही हैं।
यह है जातीय समीकरण
प्रदेश में सबसे अधिक 18 फीसद के आसपास मुस्लिम, 12 फीसद जाटव और 10 फीसद यादव हैं। इसके अलावा अन्य 18 फीसद सवर्ण दलित और दूसरे हैं। ऐसे में इन वोटरों में से मुस्लिम को छोड़कर भाजपा 10 फीसद यादव पर दावा मान रही है। यानी उनके पास ऐसी रणनीति है, जिसके आधार पर वह यादव वोट में भी सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं। अगर पिछले चुनावों में वोटों के फीसद पर नजर डालें तो उन चुनाव में समाजवादी पार्टी को 22 फीसद बहुजन समाज पार्टी को 18 फीसद वोट पर कब्जा था।
यूपी का सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग
अनुमान के मुताबिक यूपी में सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ा वर्ग का है। लगभग 51 फीसद पिछड़ा वोट बैंक में 44 फीसद वोट बैंक गैर-यादव बिरादरी का है, जो कभी किसी पार्टी के साथ नहीं खड़ा रहता है। यही नहीं पिछड़ा वर्ग के वोटर कभी सामूहिक तौर पर किसी पार्टी के पक्ष में भी वोटिंग नहीं करते हैं। इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत यूपी में यादव समुदाय से तीन जगहों पर जिला पंचायत अध्यक्ष बनाया है। सरकार ने भी यादव मंत्री हैं। सरकार आने वाले दिनों में यादवों की बड़ी रैली करने जा रही है। जिसका सीधा मतलब है कि बीजेपी यादवों के वोट में पैठ करने की बड़े स्तर पर तैयारी कर रही है।
सत्ता में होना है काबिज तो ओबीसी महत्वपूर्ण
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं। देश की सत्ता में काबिज होने का रास्ता यूपी से जाता है। यहां विधानसभा की 403 सीटें हैं। उसी तरह यूपी की सत्ता में काबिज होने का रास्ता ओबीसी वोट बैंक से जाता है।
इस ओर भी देना होगा ध्यान
जातिगत आधार पर देखें तो ओबीसी में सबसे बड़ी कुर्मी समुदाय की है। सूबे के सोलह जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक छह से 12 फीसदी तक है। इनमें मिजार्पुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं।
ये भी अहम
ओबीसी की मौर्या-शाक्य-सैनी और कुशवाहा जाति की आबादी वोट बैंक 7 से 10 फीसदी है। इन जिलों में फिरोजाबाद, एटा, मिजार्पुर, प्रयागराज, मैनपुरी, हरदोई, फरुर्खाबाद, इटावा, औरैया, बदायूं, कन्नौज, कानपुर देहात, जालौन, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर हैं। इसके अलावा सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद में सैनी समाज निर्णायक है।
इन्हें नजरअंदाज करना होगा महंगा
मल्लाह समुदाय 6 फीसदी है, जो सूबे में निषाद, बिंद, कश्यप और केवल जैसी उपजातियों से नाम से जानी जाती है। यह फतेहपुर, चंदौली, मिजार्पुर, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, गोरखपुर, भदोही, प्रयागराज, अयोध्या, जौनपुर, औरैया सहित जिले में है। मछली मारने और नाव चलाने में इनका जीवन बीत जाता है। ओबीसी में एक और बड़ा वोट बैंक लोध जाति का है, जो बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। यूपी के कई जिलों में लोध वोटरों का दबदबा है, जिनमें रामपुर, ज्योतिबा फुले नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़, महामायानगर, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, पीलीभीत, लखीमपुर, उन्नाव, शाहजहांपुर, हरदोई, फरुर्खाबाद, इटावा, औरैया, कानपुर, जालौन, झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा ऐसे जिले हैं, जहां लोध वोट बैंक पांच से 10 फीसदी तक है। पूर्वांचल के कई जिलों में इन्हें स्थानीय भाषा में नोनिया के नाम से जाना जाता है। विशेषकर मऊ, गाजीपुर बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली, बहराइच और जौनपुर के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या अच्छी खासी है। पूर्वांचल की सियासत में सपा और बीजेपी दोनों ही इन समुदाय को साधकर अपने राजनीतिक हित साधना चाहते हैं। पूर्वांचल के गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, चंदौली, भदोही, वाराणसी व मिजार्पुर में इस बिरादरी अच्छी खासी है। इस बिरादरी के नेता के तौर पर ओम प्रकाश राजभर ने पहचान बनाई है। राजभर वोटों के लिए सपा और बीजेपी ही नहीं बल्कि बसपा की नजर है।
पाल-गडरिया-बघेल
उत्तर प्रदेश की ओबीसी समुदाय में पाल समाज अतिपिछड़ी जातियों में आता है, जिसे गड़रिया और बघेल जातियों के नाम से जाना जाता है। बृज और रुहेलखंड के जिलों में पाल समुदाय काफी अहम माने जाते हैं। यह वोट बैंक बदायूं से लेकर बरेली, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, हाथरस जैसे जिलों में काफी महत्व रखते हैं। इसके अलावा अवध के फतेहपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़ और बुंदेलखड के तमाम जिलों में 5 से 10 हजार की संख्या में रहते हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश के 2017 विधानसभा चुनाव के बाद 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने 2018 में करीब 1 से डेढ़ महीने तक पिछड़ी जनजाति, पिछड़ी जातियों के सम्मेलन किए थे, जिनमें मौर्य, कुशवाहा ,कुर्मी ,यादव ,निषाद समेत कई पिछड़ी जातियों को शामिल कर यह सम्मेलन लगभग डेढ़ महीने तक लगातार कराए गए थे। बीजेपी को इसका सियासी फायदा भी चुनाव में मिला था। इसी फॉमूर्ले को एक बार फिर से 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रयोग करने के मूड में हैं।

Tags:

Caste

Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

ADVERTISEMENT