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न बाहुबली दिखे न चला दिग्गजों का डंडा, जानें इस बार क्यों अलग रहा यूपी का चुनाव

Rajesh kumar • LAST UPDATED : June 4, 2024, 3:47 pm IST

India News (इंडिया न्यूज),Uttar Pradesh Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे मंगलवार शाम तक आ जाएंगे, लेकिन सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हैं। देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें यूपी में हैं और पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी तक यहां से सांसद चुने गए हैं। पीएम मोदी भी यूपी की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस तरह देश की सत्ता तय करने वाले यूपी का राजनीतिक महत्व बखूबी समझा जा सकता है, लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव कई मायनों में यूपी में अब तक हुए चुनावों से अलग रहा है।

उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 75 सीटों पर और उसके सहयोगी दल पांच सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। अपना दल (एस) ने दो सीटों पर, रालोद ने दो सीटों पर और सुभासपा ने एक सीट पर चुनाव लड़ा है। इसी तरह भारत गठबंधन के तहत सपा ने 62 सीटों पर, कांग्रेस ने 17 और टीएमसी ने एक सीट पर चुनाव लड़ा है। बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा था और वह प्रदेश की 79 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। आजाद समाज पार्टी से चंद्रशेखर आजाद चुनाव लड़ रहे हैं, जिन पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

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1977 के बाद सबसे कम उम्मीदवार

आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश में आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। उसके बाद से 2024 के चुनाव में सबसे कम उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं। इस बार यूपी की 80 लोकसभा सीटों के लिए कुल 851 उम्मीदवार मैदान में हैं। 2019 के चुनाव में 979 और 2014 के चुनाव में 1288 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई थी।

1952 के बाद इस बार सबसे लंबा चुनाव

आजादी के बाद पहला लोकसभा चुनाव 1951-1952 में हुआ था, जो अब तक का सबसे लंबा चुनाव था। इस बार चुनाव आचार संहिता 16 मार्च को लागू हुई और एक जून तक सात चरणों में मतदान हुआ और चार जून को नतीजे आने वाले हैं। 1941-52 में चुनाव प्रक्रिया चार महीने से ज्यादा चली थी।

चुनाव आयोग ने नहीं की कोई कार्रवाई

2024 के लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान खूब बयानबाजी हुई और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा, लेकिन किसी भी नेता को प्रचार करने से नहीं रोका गया। इतने लंबे समय के बाद यह ऐसा लोकसभा चुनाव है, जिसमें किसी भी पार्टी के नेता को बयानों के आधार पर प्रचार करने से नहीं रोका गया। हालांकि, इस बार नेता खुलकर बोलते नजर आए हैं।

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मुलायम-कल्याण-चौधरी के बिना चुनाव

इस बार चुनाव उत्तर प्रदेश की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ियों के बिना हुआ है। यह पहला चुनाव था, जब मंडल-कमंडल की राजनीति से निकले बड़े नेताओं के बिना चुनाव हुआ। समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, भाजपा नेता कल्याण सिंह, आरएलजी नेता अजित सिंह का निधन हो चुका है। तीनों नेताओं की यूपी की राजनीति में अहम भूमिका थी। इसके अलावा यूपी में मुस्लिम राजनीति का चेहरा रहे आजम खान जेल में होने के कारण चुनाव में नजर नहीं आए। सपा और कांग्रेस ने पहली बार गठबंधन के तहत लोकसभा चुनाव लड़ा था।

इस बार बाहुबली चुनाव नहीं लड़े

उत्तर प्रदेश में बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार कोई बाहुबली चुनाव नहीं लड़ सका। मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे बाहुबली नेताओं का निधन हो चुका है, जबकि धनंजय सिंह से लेकर अक्षय प्रताप सिंह, बृजेश सिंह, डीपी यादव और गुड्डू पंडित ने चुनाव से दूरी बनाए रखी। इसके अलावा बृजभूषण सिंह अपना टिकट कटने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके, जबकि रमाकांत यादव जेल में होने के कारण चुनाव नहीं लड़ सके।

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