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India News (इंडिया न्यूज), Writter Shrinath Khandelwal Passed Away: वाराणसी के विख्यात साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन किसी करुण उपन्यास की सजीव दास्तान बन गया। 400 से अधिक पुस्तकों के लेखक और 80 करोड़ की संपत्ति के स्वामी खंडेलवाल ने शनिवार, 28 दिसंबर 2024, को वृद्धाश्रम में अंतिम सांस ली। यह विडंबना ही है कि जिनकी लेखनी ने हजारों दिलों को छुआ, उनकी अपनी संतान ने उन्हें त्याग दिया, और उनका अंतिम समय अकेलेपन और तिरस्कार में बीता।
श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन कभी वैभव और प्रतिष्ठा से परिपूर्ण था। उनकी साहित्यिक यात्रा ने भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया। शिव पुराण और मत्स्य पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथों का हिंदी अनुवाद करने वाले खंडेलवाल की 3000 पन्नों की “मत्स्य पुराण” रचना विद्वानों के बीच आज भी चर्चित है। उन्होंने न केवल धार्मिक, बल्कि आधुनिक साहित्य और इतिहास पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी कृतियाँ हिंदी, संस्कृत, असमिया, और बांग्ला जैसी कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।
जीवन के अंतिम चरण में उनका सपना नरसिंह पुराण का अनुवाद पूरा करना था, लेकिन यह इच्छा अधूरी रह गई। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि जिन बेटे-बेटी के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित किया, उन्होंने ही उन्हें घर से निकाल दिया। 17 मार्च 2024 को उनके बेटे और बेटी ने उन्हें घर से बाहर कर दिया, जिसके बाद वह काशी कुष्ठ सेवा संघ के वृद्धाश्रम में रहने लगे।
कुछ महीने पहले उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने अपनी वेदना व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था, “मैंने अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के लिए समर्पित कर दी, लेकिन आज वे मेरे लिए अजनबी बन गए हैं। मेरे पास सब कुछ था, पर अब मैं अकेला हूँ।” यह दर्दनाक कहानी उन माता-पिताओं की त्रासदी है, जो अपने बच्चों की बेवफाई के शिकार होते हैं।
शनिवार को उनकी तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल से परिजनों को सूचित किया गया, लेकिन उनका बेटा ‘बाहर’ होने का बहाना बनाकर नहीं आया, और बेटी ने फोन तक नहीं उठाया। आखिरकार, सामाजिक कार्यकर्ता अमन कबीर और उनके साथी रमेश श्रीवास्तव, आलोक और शैलेंद्र दुबे ने उनकी अंतिम यात्रा की जिम्मेदारी ली। अमन कबीर ने उनके शव को मणिकर्णिका घाट तक पहुँचाया और विधि-विधान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया। अमन ने कहा, “काश, उनकी संतान ने देखा होता कि जो व्यक्ति कभी उनके लिए पहाड़ जैसा खड़ा था, उसे हमने कंधों पर उठाया।”
श्रीनाथ खंडेलवाल का जीवन उनकी रचनाओं के माध्यम से हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। लेकिन उनकी कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर क्यों समाज में माता-पिता को उनकी संतानों द्वारा इस तरह त्याग दिया जाता है। काशी ने एक महान साहित्यकार को खो दिया, और उनकी दर्दभरी गाथा हर दिल को झकझोरने के लिए काफी है। क्या ऐसी संतानों को केवल संपत्ति के लिए अपने माता-पिता को त्यागने का अधिकार है? यह सवाल हर संवेदनशील मन को कचोट रहा है।
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