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डॉ वैदेही दांडे, चाइल्ड स्पेशलिस्ट और नियोनेटोलॉजिस्ट
वर्तमान समय में माता-पिता के लिए बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी अपनी चुनौतियों के साथ आती है और महामारी ने इस चुनौती को और भी कठिन बना दिया है। माता-पिता के लिए उनकी कार्य प्रतिबद्धताओं और बच्चों को शैक्षणिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने में सक्षम बनाने के लिए ‘ऑनलाइन रहना’ एक जरूरत बन गई। हालांकि, बच्चों के लिए एक आवश्यकता के रूप में जो शुरू हुआ, उसे आदत में बदलने में समय नहीं लगा और उसकी अति तब हुई जब यह लत लग गई।
इससे कंप्यूटर के जानकार, सामाजिक रूप से अनाड़ी और इंटरनेट के आदी बच्चों की एक नई पीढ़ी को जन्म देते हुए उपयोग और दुरुपयोग के बीच की पतली रेखा जल्दी से धुंधली हो गई। इसका बच्चों पर जो प्रभाव पड़ रहा है, उसके दीर्घकालिक निहितार्थ हैं। यह बच्चों के सामाजिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ रहा है। हाल ही में एक बच्चे के वीडियो गेम के प्रति इतने दीवाने होने की खबर आई कि उसने अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी।
वहीं एक और मामला सामने आया है जिसमें एक बच्चे ने आत्महत्या कर ली क्योंकि उसका मोबाइल फोन उससे छीन लिया गया था। ऐसे चरम मामले बर्फ की चट्टान के मुहाने पर हैं! कई समस्याएं बहुत सूक्ष्म और गैर-मात्रात्मक हैं। दिन-ब-दिन स्क्रीन से चिपके रहने से समाज के साथ संपर्क के अवसर कम हो जाते हैं और जब ऐसे बच्चों का सामना लोगों से होता है तो वे अभिभूत हो जाते हैं और यह नहीं जानते कि कैसे जवाब दें। जब वे अपने गैजेट्स के साथ होते हैं, तो वे अपने कम्फर्ट जोन (सुविधाजनक स्थिति) में होते हैं और नए जमाने के पालन-पोषण के कारण बच्चे इस क्षेत्र से बाहर होने पर तनाव का सामना नहीं कर पाते हैं।
इसके अलावा, ये खेल आत्म-अवशोषित हैं और स्तरों (लेवल) और पदकों के रूप में बहुत अधिक संतुष्टि भी प्रदान करते हैं, इसलिए बच्चे बार-बार उन पर वापस जाते रहते हैं। इससे खेलों के प्रति जुनून पैदा होता है और आत्म-नियमन खो जाता है। बच्चे एनिमेटेड दुनिया से परे सोचने में असफल हो जाते हैं और कई बार यह उनके लिए वास्तविकता को बदल देता है जिसके परिणामस्वरूप पारिवारिक असामंजस्य होता है।
मस्तिष्क जीवन के पहले 5 वर्षों में सक्रिय रूप से नई जानकारी विकसित और संसाधित करता है। इस उम्र में बच्चों को बहुत अधिक प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर तब होता है जब वे दूसरों को बोलते हुए सुनते हैं, कहानियों और गीतों को सुनते हैं, स्वतंत्र रूप से खेलते हैं, कल्पनाशील खेलते हैं और बाहर खेलकर कई संवेदनात्मक अनुभव प्राप्त करते हैं।
यदि इन कीमती वर्षों को स्क्रीन से चिपके हुए बिताया जाता है, तो मस्तिष्क का विकास बाधित होता है, और बच्चे चिड़चिड़ापन और अति सक्रियता और कभी-कभी अपने ही विचारों में खोया हुआ (ऑटिस्टिक) व्यक्तित्व जैसे प्रतिकूल व्यवहार प्रदर्शित करने लगते हैं। लंबे समय तक स्क्रीन पर रहने से शारीरिक गतिविधि भी कम हो जाती हैं और अस्वास्थ्यकर खाने की आदतों को बढ़ावा मिलता है जिसके परिणामस्वरूप अधिक वजन जैसी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
वर्तमान पीढ़ी के लिए बचपन का मोटापा एक नई महामारी है, जिसका मुख्य कारण शारीरिक व्यायाम की कमी और स्क्रीन की लत है। बचपन का मोटापा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि रोग और डिस्लिपिडेमिया (खान-पान की आदत से रक्त के स्तर से जुड़ी बीमारी) जैसी जीवन शैली की बीमारियों का अग्रदूत है।
इसके अलावा, अत्यधिक स्क्रीन देखने से आंखों पर दबाव पड़ता है और आंखों की रोशनी कमजोर हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप कई पोषक तत्वों की कमी होती है जो आमतौर पर हाइपोवियामिनोसिस डी (शरीर में विटामिन डी की गीभीर स्थिति तक कमी) है।
बच्चों को अपनी सीमाएं जानने की जरूरत है और उन्हें आत्म-नियमन सीखना चाहिए। स्क्रीन टाइम हर दिन 2 घंटे तक सीमित होना चाहिए। वीडियो गेम खेलना या टीवी देखना मनोरंजन का एकमात्र स्रोत नहीं होना चाहिए। उन्हें प्रतिदिन संरचित और असंरचित शारीरिक गतिविधि में लगे रहना चाहिए। उन्हें दोस्त बनाने और उनके साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
सुनिश्चित करने का सबसे अच्छा तरीका एक अच्छी मिसाल कायम करना है। माता-पिता को अपने स्वयं के स्क्रीन समय को सीमित करना चाहिए और बच्चों को अपना खाली समय प्राप्त करने के लिए टीवी या वीडियो गेम की पेशकश नहीं करनी चाहिए। माता-पिता और बच्चों को सोने से कम से कम 1 घंटे पहले स्क्रीन से बचना चाहिए और बेडरूम में टेलीविजन के मनोरंजक उपयोग से बचना चाहिए।
व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए और स्क्रीन की लत के शुरुआती लक्षणों की पहचान करनी चाहिए जैसे अन्य गतिविधियों में रुचि की कमी, आभासी विषयों में पहले से व्यस्त विचार, स्क्रीन देखने के लिए झूठ बोलना और इसके कारण पारिवारिक कलह जैसे व्यवहार प्रदर्शित करना। बच्चे को स्क्रीन से दूर रखना वर्तमान समय और उम्र में निश्चित रूप से एक कठिन काम है और इसके लिए माता-पिता से बहुत दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है, लेकिन यह असंभव नहीं है और वास्तव में समय की आवश्यकता है।
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