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‘नौकर की कमीज’ से लेकर ‘गमले में जंगल तक’, विनोद कुमार शुक्ल के साथ चली गई ‘एक कहानी’

विनोद कुमार शुक्ल का 89 साल की उम्र में देहांत हो गया लेकिन वे अपनी रचनाओं, कविताओं और लेखनी से लोगों के दिलों में रहेंगे. उनकी रचनाएं लोग काफी पसंद करते हैं.

Written By: Deepika Pandey
Last Updated: December 23, 2025 21:48:32 IST

Vinod Kumar Shukla: उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल हमारे बीच नहीं रहे.  उन्होंने 23 दिसंबर 2025, मंगलवार को 89 साल की उम्र में अंतिम सांलस लीं. हमारे बीच रह गईं, तो केवल उनकी रचनाएं. ‘एक कहानी’ भी उनके बिना अधूरी रह गई. उन्होंने ‘नौकर की कमीज’ से लेकर ‘गमले में जंगल तक’ कई रचनाएं लिखीं. उनकी रचना नौकर की कमीज पर तो 1999 में एक फिल्म भी बन चुकी है. इतना ही नहीं इसी साल नवंबर में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा गया था. उन्होंने ‘नौकर की कमीज’ में संतु बाबू की दासता लोगों तक पहुंचाई, तो वहीं ऐसी कई रचनाओं ने लोगों के मन में उसकी छाप छोड़ दी. बता दें कि शुक्ल अपनी गहरी बातों को सरल भाषा में लिखने के लिए जाने जाते हैं.

उन्होंने ‘वो आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह’, सब कुछ होना बचा रहेगा, धीवार में एक खिड़की रहती थी जैसी तमाम रचनाएं लिखीं. उन्होंने अपनी जादुई लेखन शैली से लोगों के दिलों पर दशकों तक राज किया. उनकी सबसे मशहूर रचनाओं में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल थी. वहीं कविता संग्रह में ‘लगभग जयहिंद’, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा’ और ‘वो आदमी चला गया, नया गरम दरबार पहन कर’ भी बेहद लोकप्रिय हैं.

‘नौकर की कमीज’ 

नौकर की कमीज ऐतिहासिक कृति माना जाता है. इसे 1979 में प्रस्तुत किया गया था. इस पर एक फिल्म भी बनी है.यह उपन्यास एक नौकर (संतु बाबू) और उसके मालिक के बीच के रिश्ते को दिखाता है. ये शोषण और दासता की कहानी है, जो भारत के लोकतंत्र में समाज और संवेदनहीनता पर एक व्यंग्य है.

‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’

उपन्यासकार की ये रचना काफी पसंद की जाती है. ये उपन्यास का केंद्रीय बिंब एक खिड़की है, जो एक साधारण घर से एक जादुई, प्राकृतिक और प्रतीकात्मक दुनिया को खोलती है. यहां पर नदी, तालाब, बूढ़ी अम्मा और हाथी दिखते हैं. ये उपन्या, सादगी और गहरी संवेदना को दिखाता है. इसमें वास्तविकता और कल्पना का मिश्रण है. इसकी लेखनी इतनी सरल है कि वो पाठकों के मन में गहराई से उतरती है. ये रचना जीवन, रिश्तों, प्रेम और प्रकृति के साथ मनुष्य के गहरे जुड़ाव को दर्शाती है, जिसमें काफी अभाव हैं लेकिन इसके बावजूद जीवन का उत्सव मनाया जाता है.

विनोद कुमार शुक्ल की कविता संग्रह

  • लगभग जयहिंद (1971)
  • वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह (1981)
  • सब कुछ होना बचा रहेगा (1992)
  • अतिरिक्त नहीं (2000)
  • कविता से लंबी कविता (2001)
  • आकाश धरती को खटखटाता है (2006)
  • पचास कविताएं (2011)
  • कभी के बाद अभी (2012)
  • कवि ने कहा-चुनी हुई कविताएं (2012)
  • प्रतिनिधि कविताएं (2013)

विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास

  • नौकर की कमीज़ (1979)
  • खिलेगा तो देखेंगे (1996)
  • दीवार में एक खिड़की रहती थी (1997)
  • हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ (2011)
  • यासि रासा त (2016)
  • एक चुप्पी जगह (2018)

कहानी संग्रह

  • पेड़ पर कमरा (1988)
  • महाविद्यालय (1996)
  • एक कहानी (2021
  • घोड़ा और अन्य कहानियां (2021)

कहानी-कविता पर पुस्तक

  • गोदाम (2020)
  • गमले में जंगल (2021)

विनोद कुमार शुक्ला को मिले सम्मान एवं पुरस्कार

  • गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप (म.प्र. शासन)
  • रज़ा पुरस्कार (मध्यप्रदेश कला परिषद)
  • शिखर सम्मान (म.प्र. शासन)
  • राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (म.प्र. शासन)
  • दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (मोदी फाउंडेशन)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (भारत सरकार)
  • हिन्दी गौरव सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उ.प्र. शासन)
  • ‘मातृभूमि’ पुरस्कार, वर्ष 2020 (अंग्रेजी कहानी संग्रह ‘Blue Is Like Blue’ के लिए)
  • साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान “महत्तर सदस्य” चुने गये, वर्ष 2021.   
  • 2024 का 59वां ज्ञान पीठ पुरस्कार समग्र साहित्य पर दिया गया.

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