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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा शायद ये संदेश देने की कोशिश में है कि राज्यों में नया नेतृत्व तैयार करने की उसकी प्रतिबद्धता से वह पीछे नहीं हटने वाली है।
गुजरात में नरेंद्र मोदी की शैली थी कि वो विधानसभा चुनाव में कई विधायकों का टिकट काट देते थे। सरकार में नियमित अंतराल पर बड़ा बदलाव करते थे। इससे वह लोकल एमएलए के खिलाफ या उनकी सरकार के खिलाफ उपजे एंटी इनकंबेंसी को पूरी तरह काउंटर कर देते थे। पीएम मोदी पार्टी संगठन और सरकार में सत्ता संतुलन को बनाए रखने में बेहद सिद्धहस्त हैं और उन्हें पता है कि कब किसकी डोर कसनी है और कब किसकी डोर को ढीला छोड़ना है। इसी साल मार्च में चुनाव के मुहाने पर खड़ी बीजेपी ने अपने मुख्यमंत्री को बदल दिया तभी यह बात तय मान ली गई थी कि आने वाले दिनों में बीजेपी शासित कई राज्यों में इस तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे। ऐसा इसलिए कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर पार्टी टॉप लीडरशिप ने अपने उस हिचक को ख्तम करने में कामयाबी पा ली थी कि हम अपने ही फैसले को कैसे गलत साबित होने दें। उत्तराखंड के बाद कर्नाटक की बारी आई। वहां भी येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी के रूप में वासवराज बोम्मई के जरिये जो सबसे बड़ा संदेश निकला वो ये कि बीजेपी काडर को लेकर लकीर की फकीर होने वाली पार्टी नहीं है। कौन कहां से आया है इसमें उलझने की बजाय उसकी नजर इस बात पर रहती है कि सियासी समीकरण क्या बनता है। अब भूपेंद्र पटेल की गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में ताजपोशी के जरिये बीजपे ये संदेश देने की कोशिश में है कि राज्यों में नया नेतृत्व तैयार करने की उसकी प्रतिबद्धता से वह पीछे नहीं हटने वाली है। विजय रुपाणी के हटने के बाद सियासी हलकों में सबसे जदा चर्चा इस बात की है कि अगला नंबर किसका होगा?
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिपल्ब देव का नंबर अगला हो सकता है। अपने बयानों के जरिये विवादों में रहने वाले बिप्लब देव के खिलाफ भी काफी समय से पार्टी में आवाजें उठ रही है। ऐसी भी खबर आई कि करीब दो दर्जन से अधिक विधायकों की तरफ से राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की मांग की जा रही है। कई बार वे सब दिल्ली आकर गुहार भी लगा चुके हैं। गौर करने वाली बात ये है कि जब तक विधायकों को इस बात की आशंका रहती है कि टॉप लीडरशिप (मोदी-शाह) को मुख्यमंत्री का समर्थन हासिल है, तब तक विरोध की आवाज कहीं से नहीं उठती है। लेकिन जहां भी केंद्रीय नेतृत्व का सीएम को लेकर आशंका की बात सामने आती ही वहां विरोध सार्वजनिक हो जाता है। ऐसा ही उत्तराखंड, कर्नाटक और गुजरात में देखने को मिला। ऐसा ही त्रिपुरा में भी देखने को मिल रहा है। ऐसे में आने वाले वक्त में वहां भी किसी तरह का परिवर्तन देखने को मिली तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
बीजेपी के मुख्यमंत्री बदलो अभियान में हरियाणा को लेकर अटकलबाजियों का दौर अभी भी जारी है। किसान आंदोलन को लेकर खट्टर सरकार पर लगातार संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दिल्ली से सटे हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सियासी भविष्य पर अभी भी सवाल उठ रहे हैं। किसान आंदोलन के दौरान कई बार हो चुके बवाल के कारण खट्टर की कुर्सी खतरे में मानी जा रही है। जानकारों का कहना है कि बदलाव की बयार अब हरियाणा राज्य में बहती दिख सकती है।
मध्य प्रदेश को लेकर भी कई तह की खबरें मीडिया में सामने आई। हालांकि फिलहाल तो वहां भी इन चचार्ओं पर पूरी तरह विराम लग चुका है। शिवराज सिंह चौहान इन दिनों पूरी मजबूती के साथ कांग्रेस को जवाब देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। लेकिन बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के मन में क्या चल रहा है इसकी खबर न तो मीडियो को होती है और न ही प्रदेश में बैठे नेताओं को इसका भान होता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2024 की रणनीति को लेकर आगे चल रहा है इसके साथ ही जहां जहां पर राज्यों में चुनाव होने हैं वहां पर भी सर्वे अभियान करा चुका है। जहां पर संगठन और सत्ता पक्ष में कमी नजर आई वहां के मुख्यमंत्री को बदल दिया गया। संघ की रणनीति है कि किसी भी तरह से 2024 में भी सत्ता होनी चाहिए लिहाजा इस तरह के निर्णय लिए जा रहे हैं। उत्तराखंड, कर्नाटक, गुजरात के मुख्यमंत्री बदल दिए गए हैं इससे साफ संदेश दिया जा रहा है जो एक्टिव नहीं होगा आने वाले वक्त में रिजल्ट नहीं दे सकता उसको बदल दिया जाएगा और नए चेहरे को स्थान दिया जाएगा। बीजेपी की तरफ से 2024 से पहले के राजयों के विधानसभा चुनाव में एक भी हार छवि को कमतर करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इसी के मद्देनजर पार्टी आक्रमक मूड में नजर आ रही है।
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