इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: पिछले कई सालों से देश के कुछ राज्यों में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) की एंट्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। बताया जाता है कि सीबीआई को जांच करने के लिए पहले स्थानीय राज्य सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है। अब सीबीआई की जगह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ही जांच पड़ताल की कार्रवाई करता आ रहा है। चाहे वो छापेमारी हो या कहीं की छानबीन हो। ऐसे में सवाल ये उठता है कि सीबीआई की जगह ईडी क्यों करती है कार्रवाई। किन राज्यों में लागू है यह नियम, क्यों और कब से।
संयुक्त प्रगतशील गठबंधन (यूपीए) ”उन्नति की तरफ बढ़ने वाले लोगों की संधि’ कहा जाता है। यूपीए कांग्रेस पार्टी को ही कहते हैं। क्योंकि कांग्रेस पार्टी को 2004 में नया नाम देकर यूपीए बना दिया गया था।” उसी समय से यूपीए देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी मानी जाती थी। केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार बनने के बाद जब इसी सीबीआई ने गैर भाजपा शासित राज्यों में कार्रवाई करनी चाही तो ये राज्य लामबंद हो गए।
बताते हैं कि देखते ही देखते राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब, मेघालय और मिजोरम की गैर भाजपा सरकारों ने एक के बाद एक प्रदेश में सीबीआई की एंट्री पर रोक लगा दी। इसी कारण इन 9 राज्यों में सीबीआई की एंट्री बैन होने से मजबूरन केंद्र सरकार को आर्थिक अपराध की छानबीन से जुड़ी दूसरी बड़ी जांच एजेंसी यानी ईडी को सक्रिय करना पड़ा। यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के तहत एक विशेष वित्तीय जांच एजेंसी है।
पिछले तीन से चार साल में ईडी का दायरा इतना बढ़ गया है कि हर बड़े घोटाले का खुलासा अब ईडी ही कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती से जुड़ी शक्तियों को कायम रखा है। इस मामले में कोर्ट का कहना है कि गिरफ्तारी के लिए ईडी को आधार बताना जरूरी नहीं है।
राजनीति मामलों में ईडी की कार्रवाई से हंगामा मचा है। राजनीतिक दल अपने जनाधार का फायदा उठाने की भरसक कोशिश करते हैं। इसके लिए दिग्गज नेता कार्यकतार्ओं, प्रवक्ताओं और अपनी मशीनरी के जरिये मीडिया में खुद को विक्टिम की तरह पेश करते हैं और सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ से लेकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के मंत्री तक की गिरफ्तारी एऊ कर रही है। कांग्रेस, टीएमसी समेत तमाम विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा सरकार राजनीतिक विरोधियों को निशाने पर लेने के लिए ईडी का दुरुपयोग कर रही है।
दरअसल प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) 2002 में बना था। यह कानून 2005 में अमल में आया। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची का दायरा बढ़ाया। इनमें धन छुपाने, अधिग्रहण और धन के आपराधिक कामों में इस्तेमाल को शामिल किया गया। इस संशोधन की बदौलत ईडी को विशेषाधिकार मिले।
वहीं मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब पैसों की हेराफेरी है। यह अवैध तरीके से कमाई गई ब्लैक मनी को वाइट मनी में बदलने की तरकीब है। ये ज्यादातर मामले वित्तीय घोटाले के होते हैं। एक्ट की अनुसूची के भाग ए में शामिल प्रिवेंशन आॅफ करप्शन एक्ट ईडी को राजनीतिक घोटालों पर कार्रवाई का अधिकार देता है।
यह एक्ट प्रवर्तन निदेशालय को जब्ती, मुकदमा शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच और तलाशी की शक्ति देता है। आरोपी व्यक्ति पर जिम्मेदारी होती है कि वह अपने को निर्दोष साबित करने के लिए सबूत दे। ईडी पर आरोप लगता है कि इस एक्ट के कड़े प्रावधानों, जैसे कि जमानत की कड़ी शर्तें, गिरफ्तारी के आधारों की सूचना न देना, एफआईआर जैसी कॉपी दिए बिना अरेस्टिंग, मनी लॉन्ड्रिंग की व्यापक परिभाषा, जांच के दौरान आरोपी की ओर से दिए गए बयान ट्रायल में बतौर सबूत मानने आदि का एजेंसी दुरुपयोग करती है। लेकिन पीएमएलए के सेक्शन 3, 5, 18, 19, 24 और 45 ईडी को सुपरपावर बनाते हैं।
ईडी के एक्शन से पहली बार एक साल के अंदर तीन राज्यों के चार प्रभावशाली मंत्रियों को जेल जाना पड़ा है। इनमें महाराष्ट्र के तत्कालीन दो कैबिनेट मंत्री अनिल देशमुख और नवाब मलिक शामिल हैं। नवाब मलिक दाऊद इब्राहिम से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में अरेस्ट हुए, जबकि देशमुख को ईडी ने एंटीलिया केस में गिरफ्तार बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वझे द्वारा वसूले 4.7 करोड़ के मामले में की है।
आरोप है कि ये रकम सचिन वझे ने मुंबई के कई रेस्तरां और बार ओनर्स से वसूले और देशमुख के निजी सचिव संजीव पलांडे और निजी सहायक कुंदन शिंदे को दिए थे। ये दोनों भी ईडी की गिरफ्त में हैं। वहीं दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने 30 मई को गिरफ्तार किया था। हाल में पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले में मंत्री पार्थ चटर्जी की चार दिन पहले ही गिरफ्तारी हुई है। ईडी के छापे में पार्थ की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर से 27 करोड़ रुपये से अधिक कैश और 5 किलो सोने के जेवरात जब्त किए गए।
पिछले 10 साल में ईडी ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के तहत 24,893 मामले दर्ज किए। इसमें मनी लॉन्ड्रिंग के 3,985 मामले हैं। 2014-15 में फेमा के तहत दर्ज 915 मामले 2021-22 में बढ़ कर 5,313 हो गए। फेमा के तहत 2014-15 में 178 मामले दर्ज थे, जो 2021-22 में बढ़ कर 1,180 हो गए। इस तरह 2014 से अब तक ईडी के दर्ज मामलों में पांच गुना का उछाल आया है। कुल मिलाकर 2014-15 में जहां 1,093 मामले दर्ज थे, वहीं 2021-22 में ये संख्या 5,493 हो गई है।
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