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कौन था दिल्ली में नरसंहार करने वाला तैमूर लंग? जिस पर मल्लिकार्जुन खड़गे के विवादित बयान ने मचा दिया बवाल

Nishika Shrivastava • LAST UPDATED : November 7, 2024, 3:54 pm IST
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कौन था दिल्ली में नरसंहार करने वाला तैमूर लंग? जिस पर मल्लिकार्जुन खड़गे के विवादित बयान ने मचा दिया बवाल

Congress President Mallikarjun Kharge on Timur Lang

India News (इंडिया न्यूज), Who Was Timur Lang Who Carried Out The Massacre in Delhi: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बीजेपी की तुलना क्रूर शासक तैमूर लंग (Timur Lang) से की है। उन्होंने कहा, “वो कहते थे कि मोदी है तो सब कुछ है। अब मोदी की गारंटी खत्म हो गई है और 400 भी पार हो गया है। और तैमूर लंग दूसरों की दो टांगों का इस्तेमाल करके राज कर रहा है।” बता दें कि तैमूर दिल्ली को जीतने का दीवाना था। जब उसने दिल्ली पर हमला किया तो हर तरफ कत्लेआम था। सड़कों पर लाशों के ढेर लगे थे। अब खड़गे के इस बयान के बाद सियासी जंग शुरू हो गई है। ऐसे में सवाल यह है कि तैमूर लंग कौन था? जिसकी तुलना बीजेपी से करके खड़गे चर्चा में आ गए हैं।

कौन था तैमूर लंग?

जानकारी के अनुसार, तैमूर दिल्ली को जीतने के लिए पागल था। उसकी दीवानगी की हद इसी बात से समझी जा सकती है कि जब उसने दिल्ली पर हमला किया तो हर तरफ कत्लेआम मच गया था। सड़कों पर लाशों के ढेर लगे थे। इतिहासकार कहते हैं कि हमला ऐसा था कि दिल्ली अगले 100 सालों तक उस खौफ से उबर नहीं पाई।

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तैमूर कहां से आया था?

बहुत छोटी उम्र से ही पूरी दुनिया को जीतने का सपना देखने वाला तैमूर 1369 में समरकंद का राजा बना था। भारत की खुशहाली की कहानियां उसके कानों तक पहुंच चुकी थीं, लेकिन उसके रास्ते में सबसे बड़ी मुश्किल दिल्ली पहुंचने का रास्ता था। दिल्ली और समरकंद के बीच 1 हजार मील की दूरी थी। इस पूरी यात्रा में तैमूर की सेना को जमा देने वाली ठंड और बर्फीली चट्टानों से गुजरना पड़ा। इस रास्ते में तपता रेगिस्तान भी था। लेकिन तैमूर का लक्ष्य दिल्ली था और वह वही रहा। नतीजतन, तैमूर 90,000 सैनिकों की सेना के साथ बर्फ, रेगिस्तान और बंजर जमीन से गुजरते हुए निकल पड़ा।

सामूहिक नरसंहार के बाद दिल्ली पहुंचा तैमूर लंग

रिपोर्ट के मुताबिक, सामूहिक नरसंहार के बाद तैमूर समरकंद से दिल्ली पहुंचा था। उसने रास्ते में पड़ने वाली जगहों को लूटा और सेना के लिए जरूरी सारा सामान इकट्ठा करके यहां आया। दिसंबर का महीना था। तैमूर को लगा कि यह महीना दिल्ली पर हमला करने के लिए उपयुक्त है। जस्टिन मरोजी ने अपनी किताब ‘तैमूर लंग’ में उस समय की परिस्थितियों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है, उस समय दिल्ली पर सुल्तान मोहम्मद शाह का शासन था लेकिन असल में प्रशासन मल्लू खान के नियंत्रण में था।

तैमूर को किस बात का डर था?

तैमूर को दिल्ली फतह करने का जुनून था लेकिन उसे सबसे ज्यादा डर भारतीय हाथियों से था। उसने अपनी आत्मकथा ‘मुल्फिज़ात तैमूरी’ में इसका ज़िक्र किया और लिखा कि मेरी चिंता का सबसे बड़ा कारण शक्तिशाली भारतीय हाथी थे। मैंने समरकंद से उनके बारे में कहानियाँ सुनी थीं। कहा जाता था कि हाथी के दाँतों पर ज़हर लगाया जाता है और उसे लोगों के पेट में डाल दिया जाता है। वे इतने शक्तिशाली होते हैं कि उन पर तीर और भाले भी असर नहीं करते।

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दिल्ली पहुंचकर उसने लोनी में डेरा डाला और रणनीति बनाई। 17 दिसंबर, 1398 को सुल्तान महमूद और मल्लू खान की सेना तैमूर से लड़ने के लिए दिल्ली गेट से निकली। दोनों के बीच युद्ध हुआ, लेकिन जिसका तैमूर को डर था, वही हुआ। भारतीय हाथी तैमूर की सेना तक पहुँच गए और तबाही मचा दी।

तैमूर ने अपने डर का ढूंढ़ा इलाज और दिल्ली में मचाया कत्लेआम

तैमूर ने आते ही अपने डर का इलाज ढूंढ़ लिया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वो अपने ऊंटों की पीठ पर सूखी घास और लकड़ियां जलाएं और उन्हें हाथियों की ओर भेजें। आग को पास आता देख हाथी डर गए, पीछे मुड़े और अपने ही सैनिकों को कुचलना शुरू कर दिया। तैमूर ने अपनी आत्मकथा में उल्लेख किया है कि उसने एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुल्हाड़ी लेकर हमला किया। उसने सबसे पहले हाथियों पर हमला किया। उसके कपड़े पूरी तरह खून से लथपथ थे। उसकी कलाइयां जख्मी थीं। उसके दोनों पैरों पर घाव थे।

तैमूर ने दिल्ली में प्रवेश किया। स्थिति ऐसी थी कि दिल्ली के सुल्तान महमूद और मल्लू खान को युद्ध का मैदान छोड़कर भागना पड़ा। तैमूर ने दिल्ली में कत्लेआम मचाया। उसने सड़कों पर लाशें बिछा दीं। खुद को बचाने के लिए दिल्ली के लोगों ने पुरानी दिल्ली की मस्जिद में शरण ली। तैमूर के 500 सैनिकों ने उस मस्जिद पर हमला किया और हर व्यक्ति को मार डाला। कहा जाता है कि उसने कटे हुए सिरों की एक मीनार बनवाई। यह कत्लेआम तीन दिनों तक चलता रहा।

तैमूर दिल्ली में करीब 15 दिन तक रहा और उसके सैनिकों ने दिल्ली को खूब लूटा। तबाही इतनी थी कि जो बच गए वो भूख से मर रहे थे। दिल्ली को इससे उबरने में 100 साल लग गए।

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