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शव को क्यों नहीं जलाते हैं पारसी धर्म के लोग? जानें क्या है टॉवर ऑफ साइलेंस में गिद्ध को सौंप दिया जाता है पार्थिव शरीर

PUBLISHED BY: Divyanshi Singh • LAST UPDATED : October 10, 2024, 3:57 pm IST
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शव को क्यों नहीं जलाते हैं पारसी धर्म के लोग? जानें क्या है टॉवर ऑफ साइलेंस में गिद्ध को सौंप दिया जाता है पार्थिव शरीर

Tower of Silence

India News (इंडिया न्यूज),Tower of Silence:रतन टाटा के निधन से पूरे देश में शोक की लहर है। कल रात 86 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। रतन टाटा पारसी थे, फिर भी उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति-रिवाजों के अनुसार नहीं किया जाएगा। बल्कि रतन टाटा का अंतिम संस्कार वर्ली के इलेक्ट्रिक फायर क्रिमेशन में किया जाएगा। आज उनका अंतिम संस्कार वर्ली के पारसी श्मशान घाट पर किया जाएगा। उन्हें राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी जाएगी।

टॉवर ऑफ साइलेंस 

जिस तरह हिंदुओं में शव का दाह संस्कार किया जाता है, उसी तरह इस्लाम और ईसाई धर्म में शव को दफनाया जाता है। लेकिन, पारसी लोगों में शव को आसमान के हवाले कर दिया जाता है और ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ के ऊपर रख दिया जाता है। टॉवर ऑफ साइलेंस को दखमा कहते हैं। टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार संरचना है, जिसके ऊपर शव को ले जाकर धूप में रख दिया जाता है। जिसके बाद गिद्ध आकर शव को खा जाते हैं। गिद्धों द्वारा शव को खाना भी पारसी समुदाय की प्रथा का हिस्सा है। इस अंतिम संस्कार प्रक्रिया को दोखमेनाशिनी कहते हैं।पारसियों में शव को सूरज की किरणों के सामने रखा जाता है, जिसके बाद गिद्ध, चील और कौवे शव को खा जाते हैं। पारसी धर्म में शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को प्रदूषित करने वाला माना जाता है।

शव को क्यों नहीं जलाते हैं पारसी धर्म के लोग

पारसी समाज में शव को खुले आसमान में छोड़ने के पीछे एक अहम वजह है। दरअसल, पारसी समुदाय में माना जाता है कि शव अपवित्र होता है। पारसी पर्यावरण प्रेमी होते हैं, इसलिए वे शव को जलाते नहीं हैं, क्योंकि इससे अग्नि तत्व प्रदूषित होता है। वहीं, पारसी शव को दफनाते भी नहीं हैं, क्योंकि इससे धरती प्रदूषित होती है और पारसी शव को नदी में प्रवाहित करके उसका अंतिम संस्कार नहीं कर सकते, क्योंकि इससे जल तत्व प्रदूषित होता है। पारसी धर्म में धरती, जल, अग्नि तत्व को बहुत पवित्र माना जाता है। पारसी लोगों का कहना है कि शव को जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक दृष्टि से सही नहीं है।

रतन टाटा के अंतिम संस्कार की विधि

रतन टाटा के पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक दाह संस्कार के लिए वर्ली ले जाया जाएगा। फिर, उनके पार्थिव शरीर को प्रार्थना कक्ष में रखा जाएगा। प्रार्थना कक्ष में करीब 200 लोग मौजूद रह सकते हैं। करीब 45 मिनट तक प्रार्थना होगी। फिर पारसी परंपरा के अनुसार प्रार्थना कक्ष में ‘गेह-सरनु’ का पाठ किया जाएगा। उसके बाद रतन टाटा के चेहरे पर कपड़े का एक टुकड़ा रखा जाएगा और ‘अहंवेति’ का पहला पूरा अध्याय पढ़ा जाएगा। यह शांति प्रार्थना की प्रक्रिया है। प्रार्थना प्रक्रिया पूरी होने के बाद शव को इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में रखा जाएगा और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

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