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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली। जैसा की आप जानते ही हैं कि इस समय देश के कई राज्यों में कोयले की कमी के कारण बिजली संकट गहरा गया है। जिसका कारण बढ़ती गर्मी के साथ बढ़ रही बिजली की मांग को माना जा रहा है। वहीं कोयले की कमी होना भी बिजली कटौती का मुख्य कारण बना है।
बिजली इंजीनियरों के संगठन आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने शुक्रवार को दावा किया कि रेलवे और विद्युत मंत्रालयों के बीच तालमेल के अभाव से कोयले की कमी हुई। एआईपीईएफ ने एक बयान में कहा कि कोयला की कमी के कारण देश भर में बिजली कटौती की वजह कोयला मंत्रालय, रेल मंत्रालय और विद्युत मंत्रालय के बीच तालमेल की कमी है। हर मंत्रालय दावा कर रहा है कि वे बिजली क्षेत्र में मौजूदा गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।
बता दें कि एआईपीईएफ के प्रवक्ता वी के गुप्ता ने कहा कि अब उन्होंने (केंद्र सरकार के मंत्रालयों ने) इस मुद्दे को दूसरा रुख दे दिया है और इसे राज्यों की कोयला कंपनियों को समय पर भुगतान करने में असमर्थता से जोड़ा है। बयान के अनुसार केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण देश भर में 173 तापीय बिजलीघरों पर नजर रखता है। सात अप्रैल की दैनिक कोयला रिपोर्ट के अनुसार इनमें से 106 बिजलीघरों में ईंधन का भंडार गंभीर स्तर पर पहुंच गया है।
संगठन ने कहा कि घरेलू कोयले का उपयोग करने वाले 150 तापीय बिजलीघरों में से 86 विद्युत संयंत्रों में कोयले की स्थिति गंभीर स्तर तक पहुंच चुकी है। जबकि एक सप्ताह पहले यह संख्या 81 थी। अखिल भारतीय स्तर पर बिजली की मांग या एक दिन में सबसे अधिक आपूर्ति बृहस्पतिवार को 204.65 गीगावाट के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थी। देश के ज्यादातर हिस्सों में पारा चढ़ने के साथ बिजली की मांग बढ़ी है।
इससे पहले मंगलवार को बिजली की मांग 201.06 गीगावाट के रिकार्ड स्तर पर पहुंची थी। इसने पिछले साल के 200.53 गीगावाट के रिकार्ड को तोड़ा था। देश में बिजली की कुल कमी 62.3 करोड़ यूनिट तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा मार्च में कुल बिजली की कमी से अधिक है। इस संकट के केंद्र में कोयले की कमी है। देश में कोयले से 70 प्रतिशत बिजली का उत्पादन होता है।
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