इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Bombay High Court Order: अभी तक आपने सुना होगा कि तलाक के बाद पति अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देता है, लेकिन हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक नया नियम बना दिया है कि तलाक के बाद पत्नी अपने पति को गुजारा भत्ता देगी। बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक पत्नी को आदेश दिया (bombay high court decision) कि वह अपने तलाकशुदा पति को हर माह गुजारा भत्ता दे। अब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्यों। क्या है मामला।
आपको बता दें कि हिंदू मैरिज एक्ट (Hindu Marriage Act) की धारा-25 के तहत तलाक के समय एक साथ या फिर महीने के हिसाब से गुजारा भत्ता तय किया जाता है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए अगर पति का वेतन 20 हजार है और पत्नी का 50 हजार। तो दोनों की इनकम 70 हजार मानी जाएगी। दोनों पार्टनर का अधिकार 35-35 हजार पर होगा। कोर्ट इस तरह से इनकम को ध्यान में रखकर फैसला सुनाता है। साथ ही ये भी देखता है कि बच्चे किसके साथ रहते हैं। उनके कितने खर्च हैं। उस आधार पर भी खर्चा तय होता है। पति के पास नौकरी न होने की स्थिति पर बच्चों की देखरेख का खर्च भी पत्नी के पास होता है अगर वह नौकरीपेशा है तब।
क्या था मामला? (Bombay High Court Order)
- 17 अप्रैल 1992 को एक महिला और पुरूष की शादी हुई। बाद में पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाते हुए अपने पति से तलाक मांगा। साल 2015 में नांदेड़ की अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी थी। पति ने निचली अदालत में एक याचिका लगाई और पत्नी से हर माह 15 हजार रुपए गुजारा भत्ता नियमित देने की मांग की। पति ने कहा कि उसके पास कोई सोर्स आॅफ इनकम नहीं है। वहीं, उसकी पत्नी ने एमए और बीईडी तक पढ़ाई की है और स्कूल में टीचर है।
- (husband demand to maintenance) पति ने याचिका में दावा किया कि उसने अपनी पत्नी को पढ़ाया है। पत्नी हर महीने 30 हजार रुपए कमाती है। पति की सेहत ठीक नहीं रहती है। वह कोई नौकरी नहीं कर सकता है। पत्नी के पास घर का सारा सामान और प्रॉपर्टी भी है।
- इस मामले में पत्नी ने कहा कि पति एक किराने की दुकान चला रहा है। वह एक आॅटो रिक्शा का मालिक भी है। रिक्शा किराए पर देकर पैसे कमाता है।
दोनों की एक बेटी है, जो मां पर निर्भर है।
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कोर्ट ने क्या आदेश दिया?
दोनों पक्षों की इनकम और प्रॉपर्टी को देखते हुए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को हर महीने तीन हजार रुपए गुजारा भत्ता दे।
मेंटेनेंस का मतलब क्या?
जब एक व्यक्ति दूसरे को खाना, कपड़ा, घर, एजुकेशन और मेडिकल जैसी बेसिक जरूरत की चीजों के लिए फाइनेंशियल सपोर्ट देता है तो उसे मेंटेनेंस यानी गुजारा भत्ता कहते हैं।
कोर्ट में कब लगाई जा सकती है अर्जी? (Bombay High Court Order)
अगर पति और पत्नी के रिश्ते खराब हो गए हैं और दोनों एक-दूसरे के साथ कानूनी तौर पर नहीं रहते हैं तो पति या पत्नी, दोनों में से कोई भी गुजारा भत्ता की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है।
इस मामले में कानून का क्या कहना?
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से गुजारा भत्ता की डिमांड कर सकते हैं।
- धारा 24- अगर कोर्ट में पति-पत्नी का कोई केस चल रहा है और कार्यवाही के दौरान कोर्ट को ये पता लग जाए कि पति खुद की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहा है। यहां तक की उसके पास इस कार्यवाही के लिए भी पैसे नहीं है तो कोर्ट पत्नी को आदेश दे सकता है कि वो अपने पति को गुजारा भत्ता और कोर्ट केस में आने वाले खर्च के लिए पैसे दे। हालांकि, इसमें पत्नी के पास सोर्स आफ इनकम होना जरूरी है। वहीं अगर पति के पास प्रॉपर्टी और कमाने की क्षमता है तो वो पत्नी से गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकता है। (Bombay High Court Order)
- धारा 25- पति को गुजारा भत्ता और भरण-पोषण मिलने का नियम शामिल है। इस परिस्थिति में कोर्ट पति और पत्नी दोनों की प्रॉपर्टी को ध्यान में रखकर विचार करता है। मान लीजिए कोर्ट ने पत्नी को आदेश दिया कि वो अपने पति को महीने में एक गुजारा भत्ता दे। फिर कुछ समय बाद अगर पति कमाने लायक हो जाता है और काम करने लगता है तो पत्नी के दावे पर कोर्ट अपने फैसले को कैंसिल या बदल भी सकती है।
किस आधार पर मिलता है गुजारा भत्ता?
शारीरिक या मानसिक तौर से कमजोर पति जो पैसे कमाने के लायक नहीं है। तलाकशुदा पत्नी। बुजुर्ग माता-पिता। अविवाहित या विधवा बहन। बता दें कि अगर पति ने अगर पत्नी से गुजारा भत्ता लेने का दावा किया है, तो पति को कोर्ट में साबित करना होगा कि वो शारीरिक या मानसिक तौर पर कमाने के लायक नहीं है और उसकी पत्नी कमाती है।
Bombay High Court Order
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