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इंडिया न्यूज, Washington News। China-Taiwan Dispute: अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन पहले ही ना खुश था और फिर इसके 12 दिन बाद यूएस सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल ताइवान पहुंचा गया था। अमेरिकी सांसदों के ताइवान पहुंचने की बात से चीन आगबबूला हो गया और उसने ताइवान के आसपास अपने सैन्य अभियान को और अधिक तेज कर दिया था।
बता दें कि चीन ने अगस्त में ताइवान की समुद्री सीमा में युद्ध अभ्यास किया था। इस दौरान उसने बैलेस्टिक मिसाइल भी टेस्ट किए थे। इनमें से 4 तो ताइवान के ऊपर से निकले थे।
वहीं अब अमेरिकी अधिकारियों से मिली जानकारी अनुसार चीन की इस हिमाकत को देखने के बाद ताइवान और अमेरिका ने भी चीन से निपटने की तैयारी तेज कर दी है। अमेरिकी रक्षा विभाग यानी पेंटागन के अफसर ताइवान में हथियारों का जखीरा जुटा रहे हैं और इसके लिए बड़े-बड़े डिपो तैयार किए जा रहे हैं।
जुलाई में ताइवान ने मिलिट्री एक्सरसाइज की थी। अमेरिका ने इसे बहुत बारीकी से मॉनिटर किया। इस दौरान उन बातों का खास तौर पर ध्यान रखा गया जो चीन के साथ जंग में भारी पड़ सकती हैं।
अमेरिकी सेना के अधिकारियों से मिली जानकारी अनुसार अगर चीन किसी वक्त ताइवान पर हमला करता है और उसे घेर लेता है तो इन हालात में ताइवान की फौज के पास हथियार तब तक नहीं पहुंच सकते, जब तक अमेरिका या कोई दूसरा देश रिस्क लेकर इन्हें नहीं पहुंचाता। दूसरे शब्दों में ताइवान चारों तरफ से न सिर्फ घिर जाएगा, बल्कि बाकी दुनिया से भी कट जाएगा।
बता दें कि ताइवान की इसी परेशानी से निपटने के लिए अमेरिका ने ताइवान में हथियारों के डिपो तैयार करने शुरू कर दिए हैं। कुछ तो तैयार हो भी गए हैं। इसके लिए अमेरिकी वेपन प्रोडक्शन कंपनियां बड़े पैमाने पर जरूरी हथियार बना रही हैं।
पेंटागन के अफसर अब तक यह अनुमान नहीं लगा पाए हैं कि अगर अमेरिका ने ताइवान की इसी तरह मदद जारी रखी तो चीन क्या एक्शन लेगा। प्रेसिडेंट जो बाइडेन ने पिछले महीने कहा था-अगर ताइवान पर हमला हुआ तो अमेरिका उसकी हिफाजत और मदद दोनों करेगा।
बाइडेन की बात का जवाब चीन के फॉरेन मिनिस्टर वांग यी ने दिया था। वांग ने कहा था-अमेरिका हालात को बहुत हल्के में ले रहा है। ताइवान को हर तरह के हथियार दिए जा रहे हैं और चीन की इस पर पैनी नजर है।
रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो इसके बाद चीन के हौसले भी बढ़ गए। उसे लगा कि अगर रूस कभी अपना हिस्सा रहे ताइवान पर हमला कर सकता है तो चीन अब ताइवान के साथ ऐसा क्यों नहीं कर सकता।
चीन के इरादे अमेरिका और ताइवान दोनों भांप गए। उसी वक्त चीन की तमाम धमकियों के बावजूद अमेरिकी पार्लियामेंट की स्पीकर नैंसी पेलोसी को ताइवान दौरे पर भेजा गया। इसके बाद दो और अमेरिकी डेलिगेशन यहां पहुंचे। चीन समझ गया कि अमेरिका और ताइवान अब किसी भी तरह के दबाव में आने वाले नहीं हैं। चंद दिन बाद ताइवान ने साफ कर दिया कि अगर चीन के फाइटर जेट्स उसकी सीमा में आए तो उनके खिलाफ एक्शन होगा।
यूक्रेन और ताइवान में बहुत अंतर है और यही अंतर अमेरिका के लिए चैलेंज है। ताइवान पहुंचने के लिए एयर या नेवल रूट ही इस्तेमाल करना होगा। यहां यूक्रेन की तरह रोड कनेक्टिविटी नहीं है। एक अमेरिकी जनरल कहते हैं-पहला चैलेंज ये है कि हम ताइवान को अभी से ही इतने हथियार पहुंचा दें कि वो हमले की सूरत में तब तक लड़ सके, जब तक अमेरिका उस तक मदद नहीं पहुंचा देता। इसमें हम कामयाब हो चुके हैं।
जनरल ने बताया कि-प्रेसिडेंट बाइडेन कह चुके हैं कि अगर ताइवान पर हमला हुआ तो अमेरिकी फौज उसकी हिफाजत करेंगी। कई मीडिया हाउस कह चुके हैं कि ताइवान में सैकड़ों की तादाद में अमेरिकी सैनिक महीनों से मौजूद हैं।
अमेरिका और ताइवान के बीच हाल ही में 6 आर्म्स डील हुई हैं। आखिरी डील के तहत अमेरिका बहुत जल्द ताइवान को 1.1 अरब डॉलर की 60 बेहद खतरनाक हारपून मिसाइलें देगा। यह किसी भी वॉरशिप को चंद सेकंड में मलबा बना सकती हैं। चीन की नेवी इस डील के बाद से डिफेंसिव मोड में नजर आ रही है। विदेश मंत्रालय इसके बाद से चुप है। इस वॉर माइंडगेम में फिलहाल अमेरिका एकतरफा जीत दर्ज करता दिख रहा है।
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