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India News (इंडिया न्यूज), Iran’s Nuclear Program : मीडिल ईस्ट में संघर्ष खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इजरायल लगातार गाजा और लेबनान पर हवाई हमले कर रहा है। अब इसी कड़ी में ईरान का परमाणु कार्यक्रम एक बाक फिर से चर्चा में आ गया है। इजरायल और अमेरिका के साथ कई पश्चिमी देशों ने एक बार फिर से ईरान पर परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाया है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने हाल ही में कहा था कि मध्य पूर्व में कमजोर पड़ा ईरान परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर सकता है। अमेरिका और पश्चिमी देश शुरूआत से ही ईरान के परमाणु हथियार के खिलाफ रहे हैं। वहीं इजरायल शुरू से ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपने अस्तित्व के लिए खतरे के तौर पर देखता आया है। परमाणु कार्यक्रम के चलते ही ईरान पर कई कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं।
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मीडिल ईस्ट में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को 50 साल से ज्यादा हो गया है। ईरान लंबे समय से अपने गैर-सैन्य उद्देश्यों को बनाकर रखे हुए है। 2024 के अप्रैल में ईरान के एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा, ईरान ने बार-बार कहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। परमाणु हथियारों का हमारे परमाणु सिद्धांत में कोई स्थान नहीं है। ईरान लंबे समय से परमाणु तकनीक को विकसित कर अपने आपको एक परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाना चाहता है। इस वक्त ईरान के पास अभी तक कोई परमाणु हथियार नहीं है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन करते हुए ईरान का परमाणु हथियार के लिए सीक्रेट रिसर्च करने का लंबा इतिहास रहा है।
परमाणु कार्यक्रम को लेकर ये सवाल भी उठते रहे हैं कि आखिर ईरान को परमाणु तकनीक कहा से मिली? ज्यादातर लोगों को ये लगता है कि, चीन और रूस ने ईरान को परमाणु कार्यक्रम दिया है, लेकिन ऐसा नहीं है। ईरान को संयुक्त राज्य अमेरिका ने परमाणु तकनीक दी थी। ईरान का परमाणु कार्यक्रम 1950 के दशक मे शुरू हुआ था, जो कि अमेरिका और ईरान के शाह के बीच शीत युद्ध गठबंधन का नतीजा था।
अमेरिका ने तब अपने एटम फॉर पीस कार्यक्रम के तहत ईरान को परमाणु तकनीक, ईंधन, उपकरण और प्रशिक्षण देने में सहायता की थी। 1967 में अमेरिका ने ईरान को 5 मेगावाट का रिसर्च रिएक्टर भी दिया। वहीं फ्रांस ने 1974 में एक फ्रांसीसी यूरेनियम संवर्धन संयंत्र में 1 बिलियन डॉलर का निवेश किया। इसके अलावा जबकि एक जर्मन कंपनी क्राफ्टवर्क ने फारस की खाड़ी के तट पर बुशहर परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण में मदद की। जानकारों के मुताबिक अगर ईऱान का नेता फैसला करते हैं तो उसके पास काफी कम समय में परमाणु हथियार बनाने के लिए बुनियादी ढांचा उपलब्ध है।
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