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धरती से इतने सालों में पानी हो जाएगा खत्म! अंटार्कटिका ग्लेशियर को लेकर वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

BY: Raunak Pandey • LAST UPDATED : September 29, 2024, 12:59 pm IST
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धरती से इतने सालों में पानी हो जाएगा खत्म! अंटार्कटिका ग्लेशियर को लेकर वैज्ञानिकों ने किया चौंकाने वाला खुलासा

Antarctica Glacier: धरती से इतने सालों में पानी हो जाएगा खत्म!

India News (इंडिया न्यूज), Antarctica Glacier: इंसानों को सूरज की गर्मी से कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो बचाती हैं। इन्हीं में से एक अंटार्कटिका का ग्लेशियर है। इसे धरती के लिए काफी अहम माना जाता है, लेकिन हाल ही में वैज्ञानिक अध्ययनों में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बता दें कि अंटार्कटिका का एक विशाल ग्लेशियर जिसे डूम्सडे ग्लेशियर के नाम से जाना जाता है। अगले 200 से 900 सालों में पूरी तरह पिघल जाएगा। इस ग्लेशियर को थ्वाइट ग्लेशियर के नाम से भी जाना जाता है और इसका आकार फ्लोरिडा राज्य के बराबर है। दरअसल, इसका सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग है। वहीं बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके अलावा समुद्र का गर्म पानी ग्लेशियर को नीचे से पिघला रहा है। साथ ही ग्लेशियर की संरचना में बदलाव के कारण यह तेजी से टूट रहा है।

क्यों है इतना खतरनाक?

बता दें कि, अंटार्कटिका के ग्लेशियर का पिघलना बेहद खतरनाक है। अगर यह ग्लेशियर पूरी तरह पिघल गया तो वैश्विक समुद्र का स्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है। जिसका मतलब है कि दुनिया के तटीय इलाके डूब जाएंगे और लाखों लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ेगा। साथ ही ग्लेशियर के पिघलने से धरती की जलवायु और समुद्री धाराओं में बड़े बदलाव आएंगे। इससे दुनिया भर में मौसम में अनिश्चितता बढ़ सकती है। इसके साथ ही समुद्र का जलस्तर बढ़ने से कई द्वीप और तटीय इलाके जलमग्न हो जाएंगे। जिससे कई प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। साथ ही इससे धरती पर तापमान भी बढ़ सकता है।

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कैसे बचा सकते हैं अंटार्कटिका का ग्लेशियर?

गौरतलब है कि हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने इस संकट को और भी गंभीरता से लिया है। अध्ययन में कहा गया है कि अगर वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो अंटार्कटिका का बर्फीला पिंड अजीबोगरीब तरीके से बहुत तेजी से पिघलने लगेगा। ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि हम ग्लोबल वार्मिंग को रोकें। इसके लिए हमें जीवाश्म ईंधन का कम से कम इस्तेमाल करना होगा और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को अपनाना होगा। वैज्ञानिकों को इस ग्लेशियर के बारे में और अधिक अध्ययन करने की जरूरत है, ताकि हम इसके पिघलने की गति को धीमा कर सकें। इस समस्या से निपटने के लिए सभी देशों को मिलकर काम करना होगा।

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