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भारत से पंगा लेकर कहीं का नहीं रहेगा कनाडा, होगी ऐसी तबाही की 7 पुश्ते भी नहीं कर पाएंगी भरपाई

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : October 15, 2024, 7:12 pm IST
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भारत से पंगा लेकर कहीं का नहीं रहेगा कनाडा, होगी ऐसी तबाही की 7 पुश्ते भी नहीं कर पाएंगी भरपाई

,India Canada Relation

India News (इंडिया न्यूज),India Canada Relation:भारत और कनाडा के रिश्तों में एक बार फिर कड़वाहट देखने को मिल रही है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर अपने राजनयिकों और संगठित अपराध का इस्तेमाल कर उसके नागरिकों पर हमला करने का आरोप लगाया है। हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की जांच में भारतीय राजनयिकों को शामिल करने पर भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। कनाडा के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए भारत ने अपने छह राजनयिकों को निष्कासित कर दिया है। भारत पहले ही कनाडा के आरोपों को बेबुनियाद बता चुका है। निज्जर की हत्या के मामले में पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों के बाद से भारत और कनाडा के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हैं। इस बीच आइए देखते हैं कि भारत और कनाडा के बीच रिश्ते बिगड़ने पर किन क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है।

भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों का असर छात्र आव्रजन, व्यापार संबंधों और कनाडा की इंडो-पैसिफिक रणनीति पर पड़ेगा। सबसे पहले बात करते हैं भारतीय छात्रों और आव्रजन के मुद्दे की।

भारतीय छात्र

कनाडा भारतीय छात्रों और आव्रजन के मामले में काफी हद तक भारत पर निर्भर है। कनाडा जाने वाले सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारत की बड़ी भूमिका होती है। 2022 में 800,000 से ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से 40 प्रतिशत से ज़्यादा भारत से थे। इमिग्रेशन, रिफ्यूजीज़ एट सिटोयेनेटे कनाडा (IRCC) के अनुसार, 2022 में रिकॉर्ड 226,450 भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ने गए, जो 2023 में बढ़कर 2.78 लाख छात्र हो गए। ये भारतीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था और संस्कृति में बड़ा योगदान दे रहे हैं।

भारतीय छात्र, अन्य अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ मिलकर कनाडा की अर्थव्यवस्था में श्रम की कमी को पूरा करने में मदद करते हैं, खासकर कम वेतन वाली नौकरियों में। इससे देश की आर्थिक वृद्धि और विकास में योगदान मिलता है।

भारतीय छात्र कनाडा में विविध कौशल और विशेषज्ञता लाते हैं, जिससे देश की ज्ञान अर्थव्यवस्था समृद्ध होती है। कई छात्र विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) जैसे क्षेत्रों में उच्च शिक्षा और शोध करते हैं, जिससे कनाडा के नवाचार परिदृश्य को लाभ मिलता है।

भारतीय छात्र अपनी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को कनाडाई समाज से परिचित कराते हैं, जिससे अंतर-सांस्कृतिक समझ और आदान-प्रदान को बढ़ावा मिलता है। यह कनाडाई समुदायों को समृद्ध बनाता है और अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है। भारतीय छात्र, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, संभावित रूप से स्थायी निवासी या नागरिक बन सकते हैं, जो कनाडा के कार्यबल और सामाजिक ताने-बाने में योगदान देते हैं। इससे श्रम की कमी और जनसांख्यिकी चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिलती है।

कई भारतीय छात्र कनाडाई शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों के साथ सहयोग करते हैं, जिससे संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएं और प्रकाशन होते हैं। इससे कनाडा की शोध क्षमताएँ मजबूत होती हैं और विभिन्न क्षेत्रों में इसकी वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ती है।हालाँकि, अब जबकि भारत-कनाडा संबंधों में तनाव लगातार बढ़ रहा है, भारतीय छात्रों द्वारा दायर किए गए आवेदनों में कमी आ सकती है। भारतीय प्रवासियों की कमी के कारण व्यापार संबंधों में बड़ी गिरावट कनाडा के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है।

द्विपक्षीय व्यापार

CEPA पर हस्ताक्षर करने के लिए भारत और कनाडा के बीच बातचीत चल रही है। सीईपीए में वस्तुओं का व्यापार, सेवाओं का व्यापार, उत्पत्ति के नियम, स्वच्छता उपाय, व्यापार में तकनीकी बाधाएं और आर्थिक सहयोग के अन्य क्षेत्र शामिल होंगे। अनुमान है कि कनाडा और भारत के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए) द्विपक्षीय व्यापार को 4.4-6.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (6-8.8 बिलियन कनाडाई डॉलर) तक बढ़ा देगा और 2035 तक कनाडा के लिए 3.8-5.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (5.1-8 बिलियन कनाडाई डॉलर) का जीडीपी लाभ उत्पन्न करेगा।

अब कनाडा और भारत के बीच चल रहे तनाव के कारण बातचीत बंद हो गई है और इसका असर भारत से ज़्यादा कनाडा पर पड़ेगा। इस मामले में दालें सबसे बढ़िया उदाहरण हैं। कनाडा दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक है। भारत में दालों की खपत बड़े पैमाने पर होती है। ऐसे में दालों का आयात होता था और आयात के सबसे बड़े दावेदारों में से एक कनाडा था। भारत-कनाडा व्यापार करीब 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ करता था जिसमें आयात और निर्यात बराबर यानी करीब 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर होता था। पिछले कुछ सालों में दालों की खपत और आयात दोनों में बढ़ोतरी हुई है, जबकि उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन कनाडा से आयातित दालों की मात्रा कम हो गई है और इसकी जगह म्यांमार और नाइजीरिया जैसे दूसरे विकल्पों ने ले ली है। 2015 के आसपास भारत कनाडा से करीब 2.1 बिलियन डॉलर की दालें आयात करता था। कुछ सालों में यह घटकर करीब सैकड़ों मिलियन डॉलर (300-400 मिलियन डॉलर) रह गया है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के अनुसार भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था कनाडा को बेहतर व्यापार अवसर प्रदान करती है। हालांकि, अब विवाद के कारण कनाडा के साथ व्यापार प्रभावित होगा।

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