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इस मुस्लिम देश में क्रब से लाश निकालकर पहनाते हैं कपड़ें, इसके पीछे की कहानी जान उड़ जाएंगे होश

India News (इंडिया न्यूज), Dead Body Cloths Ceremony: दुनिया के अलग-अलग देशों में तरह-तरह धर्मों के लोग रहते हैं। सभी धर्मों के लोगों के अपने रीति-रिवाज होते हैं, जिसका वो पालन करते हैं। इन धर्मों में घर में बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी रीति-रिवाज होता है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी रीति-रिवाज के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे दफना दिया जाता है। खास बात यह है कि हर कुछ सालों में उसके कंकाल को निकालकर साफ किया जाता है। जी हां, कंकाल को निकालकर साफ किया जाता है और उसे नए कपड़े पहनाए जाते हैं। साथ ही क्या आपने कभी ऐसे त्योहार के बारे में सुना है, जो शवों के बीच मनाया जाता है? जी हां, आज हम आपको ऐसे ही त्योहार के बारे में बताने जा रहे हैं।

इस मुस्लिम देश का खास रीति-रिवाज

बता दें कि, इंडोनेशिया में होने वाला मा’नेने फेस्टिवल एक ऐसा ही त्योहार है। इस त्योहार को एक खास जनजाति के लोग मनाते हैं। जिसका मकसद शवों को साफ करना होता है। इस जनजाति के लोगों का मानना ​​है कि मृत्यु भी एक पड़ाव है। जिसके बाद मृतक की दूसरी यात्रा शुरू होती है। इस यात्रा की तैयारी के लिए वे शवों को सजाते हैं। जानकारी के अनुसार, मानेने फेस्टिवल की शुरुआत करीब 100 साल पुरानी मानी जाती है। इसके पीछे बरप्पू गांव की एक कहानी है, जिसे गांव के बुजुर्ग बताते हैं। दरअसल, सौ साल पहले गांव में टोराजन जनजाति का एक शिकारी शिकार के लिए जंगल में गया था। पोंग रुमासेक नाम के इस शिकारी ने जंगल के अंदर एक लाश देखी। रुमासेक ने सड़ती हुई लाश देखी और रुक गया। उसने लाश को अपने कपड़े पहनाए और उसका अंतिम संस्कार किया।

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क्यों मनाते है यह त्यौहार?

दरअसल, रुमासेक के जीवन में कई अच्छे बदलाव आए और उसका दुख भी खत्म हो गया। तब से इस जनजाति में अपने पूर्वजों को सजाने की यह प्रथा शुरू हो गई है। ऐसा माना जाता है कि जब शव का ध्यान रखा जाता है तो आत्माएं उसे आशीर्वाद देती हैं। साथ ही इस त्योहार की शुरुआत किसी की मृत्यु से होती है। परिवार के किसी सदस्य की मौत पर उसे एक दिन में नहीं दफनाया जाता, बल्कि कई दिनों तक जश्न मनाया जाता है। कई बार तो ये हफ्तों तक चलता है।दरअसल, माना जाता है कि ये मृतक की खुशी के लिए होता है, जिसमें उसे अगली यात्रा के लिए तैयार किया जाता है। इस यात्रा को पूया कहते हैं। इसकी शुरुआत बड़े जानवरों, जैसे बैल और भैंसों को मारने से होती है। इसके बाद मृतक के घर को मृत जानवरों के सींगों से सजाया जाता है।

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Raunak Pandey

रौनक पांडे बिहार की माटी से निकलकर दिल्ली में पत्रकारिता को सीख और समझ रहे हैं. पिछले 1.5 साल से डिजिटल मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर सक्रिय हैं। अंतराष्ट्रीय और राष्ट्रीय राजनीति पर लिखना पसंद है.

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