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India News (इंडिया न्यूज), General Hussain Muhammad Ershad: इस शख्स का जन्म कूच बिहार में हुआ था, जो पश्चिम बंगाल में है। वहीं पर उनका लालन-पालन हुआ। जब अंग्रेज देश का बंटवारा करके जा रहे थे, तब वे 17 साल के युवा थे। उनका परिवार पूर्वी पाकिस्तान चला गया। इसके बाद वे सेना में भर्ती हो गए। जब बांग्लादेश एक नए देश के रूप में जन्म ले रहा था, तब इस शख्स ने सेना प्रमुख का पद संभाला था। इसके पीछे एक सपना था। बाद में इस शख्स ने इस देश को उस रास्ते पर आगे बढ़ाया, जहां से इसमें कट्टरपंथी मुस्लिम ताकतों का उदय शुरू हुआ, जिसे हम अब साफ तौर पर देख सकते हैं। इस शख्स का नाम जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद है। इनका जन्म 1 फरवरी 1930 को एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। वे 1983 से 1990 तक बांग्लादेश के राष्ट्रपति रहे। उनके नेतृत्व में देश में तख्तापलट हुआ और सैन्य तानाशाही का गठन हुआ।
सैन्य शासन के दौर में तख्तापलट
जनरल इरशाद ने 24 मार्च 1982 को राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार के खिलाफ़ रक्तहीन तख्तापलट के दौरान सेना प्रमुख के रूप में सत्ता हथिया ली थी। इसके बाद उन्होंने 1983 में मार्शल लॉ लागू करके और संविधान को निलंबित करके खुद को राष्ट्रपति घोषित कर दिया। बाद में उन्होंने 1986 में विवादास्पद बांग्लादेशी राष्ट्रपति चुनाव जीता। उनके शासन को सैन्य तानाशाही का दौर माना जाता है।
इरशाद 1990 तक राष्ट्रपति रहे, जब खालिदा जिया और शेख हसीना के नेतृत्व में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन सड़कों पर उतर आए तो उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।
फिर संसद ने धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश को मुस्लिम राष्ट्र बना दिया
यह इरशाद ही थे जिन्होंने 1989 में संसद पर दबाव बनाया कि इस्लाम को राज्य धर्म बनाया जाए। जबकि मुजीबुर रहमान के प्रधानमंत्री रहते जब नए बांग्लादेश का संविधान लिखा गया तो इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया गया। यहीं से बांग्लादेश कट्टरपंथी इस्लाम की ओर बढ़ने लगा।
छुट्टी रविवार से बदलकर शुक्रवार कर दी गई
इरशाद ने साप्ताहिक छुट्टी भी रविवार से बदलकर शुक्रवार कर दी। उनके शासन में ही धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश में मुस्लिम ताकतों को मजबूत करने के लिए जमात-ए-इस्लामी को पुनर्जीवित किया गया। जमात ही वह पार्टी थी जिसने 1971 में बंगाली राष्ट्रवादियों के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया था। जब बांग्लादेश बना तो जमात के ज्यादातर नेता पाकिस्तान भाग गए। सैन्य शासन के साथ ही वे वापस आने लगे। इरशाद ने भी इसे खूब समर्थन दिया।
इस्लामिक ताकतें मजबूत हुईं
इसके बाद बांग्लादेश में इस्लामिक ताकतें मजबूत हुईं। यह बात अब साफ तौर पर दिखाई दे रही है। जमात को ISI का पूरा समर्थन मिलता है, देश में शेख हसीना के खिलाफ माहौल बनाने के लिए ISI ने जमात-ए-इस्लामी की पूरी मदद ली है।
पिता कूच बिहार राजा के मंत्री थे
इरशाद के पिता मोकबुल हुसैन वकील थे। वे कूच बिहार के तत्कालीन महाराजा के मंत्री के रूप में काम करते थे। विभाजन के समय वे 1948 में पूर्वी बंगाल चले गए। 1952 में हुसैन को कोहाट के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से पाकिस्तानी सेना में कमीशन मिला था।
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उन्हें पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया
जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ, तो इरशाद को अन्य बंगाली सैन्य अधिकारियों के साथ पाकिस्तानी सेना ने नजरबंद कर दिया। जब बांग्लादेश बना, तो बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान ने इरशाद को बांग्लादेश सेना का एडजुटेंट जनरल नियुक्त किया। 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई। मेजर जनरल जियाउर रहमान ने तख्तापलट किया। फिर रहमान ने 1975 में इरशाद को उप सेना प्रमुख नियुक्त किया। बंगाली भाषण लेखन में निपुण इरशाद जल्द ही जियाउर रहमान के सबसे करीबी राजनीतिक-सैन्य सलाहकार बन गए।
कैसे सत्ता में आए और कैसे सत्ता छोड़ी
30 मई 1981 को जियाउर रहमान की हत्या के बाद इरशाद नई सरकार के प्रति काफी वफदार हो गए। उन्होंने नए राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार के प्रति अपनी वफादारी बनाए रखी। जिसके बाद में वे खुद 1982 में सैन्य तख्तापलट करके सत्ता में आ गए। उन्होंने बांग्लादेश में एक नई जातीय पार्टी बनाई। हालांकि उन्हें 1990 में अपना पद छोड़ना पड़ा। उन्हें जेल में भी डाल दिया गया। उन्हें भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराया गया था। भ्रष्टाचार के मामले में उन्हें 20 नवंबर 2000 को सज़ा सुनाई गई थी। ढाका में चार महीने जेल में बिताने के बाद, उन्हें 9 अप्रैल 2001 को ज़मानत पर रिहा किया गया।
उनकी मृत्यु हो गई
इरशाद ने 1956 में रोशन इरशाद से शादी की। फिर उन्होंने दूसरी शादी की, जो तलाक में समाप्त हुई। इसके अलावा, जीनत नाम की महिला के साथ उनके संबंध का मामला सामने आया। 14 जुलाई 2019 को अस्पताल में इरशाद की मृत्यु हो गई।
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