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India News (इंडिया न्यूज), Hydrogen Bomb: दुनिया में जब भी किसी खतरनाक बम की बात होती है तो सबसे पहले परमाणु बम का नाम आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा बम भी है जो परमाणु बम से 1000 गुना ज्यादा खतरनाक है। जिसे हाइड्रोजन बम कहते हैं। आज तक इस बम का इस्तेमाल कभी नहीं किया गया। लेकिन यह इतना घातक है कि यह एक देश को भी तबाह कर सकता है। आज हम आपको बताएंगे कि हाइड्रोजन बम को इतना खतरनाक क्यों कहा जाता है।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि, हाइड्रोजन बम का परीक्षण 1 मार्च 1954 को किया गया था। अमेरिका ने इस हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया था और यह मानव इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा विस्फोट था। इसकी ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि यह हिरोशिमा को तबाह करने वाले परमाणु बम से हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली था। इतना ही नहीं, प्रशांत क्षेत्र में स्थित मार्शल द्वीप समूह के बिकिनी द्वीपसमूह में हुए इस विस्फोट के प्रभाव का आकलन करने वाले उपकरण भी इसकी तीव्रता को मापने में विफल रहे। इसकी ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह हिरोशिमा को तबाह करने वाले परमाणु बम से हजार गुना ज्यादा शक्तिशाली था।
आपको बता दें कि हाइड्रोजन बम एक प्रकार का परमाणु बम है। जानकारी के अनुसार, हाइड्रोजन बम और परमाणु बम में मुख्य अंतर विस्फोट प्रक्रिया का है। पहला हाइड्रोजन बम 1 नवंबर 1952 को फटा था। हाइड्रोजन बम में संलयन की प्रक्रिया होती है। संलयन में जब दो हल्के परमाणु मिलकर एक भारी तत्व बनाते हैं तो ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसे बनाने के लिए हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटेरियम और ट्रिटियम का इस्तेमाल किया जाता है। परमाणुओं के संलयन से ही विस्फोट होता है।
जानकारी के अनुसार, हाइड्रोजन बम का अब तक इस्तेमाल नहीं हुआ है। क्योंकि यह भी एक प्रकार का परमाणु बम है। दुनिया में आज तक सिर्फ एक बार ही परमाणु बम का इस्तेमाल हुआ है। आपको बता दें कि करीब आठ दशक पहले अमेरिका ने हिरोशिमा-नागासाकी पर परमाणु बम का इस्तेमाल किया था। इस हमले को काफी समय बीत चुका है, लेकिन इसकी भयावह यादें आज भी ताजा हैं। इसके बाद दुनिया में किसी भी युद्ध में परमाणु बम का इस्तेमाल नहीं किया गया, लेकिन हर युद्ध में इसका जिक्र होता है। इतना ही नहीं दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरे से बचाने के लिए 190 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। परमाणु संधि को अप्रसार संधि (एनपीटी) के नाम से भी जाना जाता है। इस संधि को वर्ष 1968 में अपनाया गया था और यह 1970 में लागू हुई थी।
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