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India News (इंडिया न्यूज), India Kuwait Relations During Gulf War : पीएम मोदी इस वक्त अपने दो दिवसीय दौरे पर कुवैत में हैं। करीब चार दशक बाद कोई भारतीय प्रधानमंत्री कुवैत की यात्रा कर रहा है। इतिहास में भारत-कुवैत के रिश्तों की इस वक्त खुब चर्चा हो रही है। सबसे ज्यादा चर्चा 1991 में हुए खाड़ी युद्ध की हो ही है। उस वक्त इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया था। इस हमले से अरब देशों की राजनीति पूरी तरह बदल कर रख दी। भारत पर भी इसका इसर देखने को मिला था। असल में जनवरी 1991 में पड़ोसी देश इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया और सिर्फ दो दिनों के अंदर पूरे मुल्क पर कब्जा भी कर लिया। जानकारों के मुताबिक उस समय इराक बाकी देशों से काफी मजबुत था। इसके अलावा इराक और ईरान लंबे समय से युद्ध लड़ रहे थे।
इस युद्ध में इराक की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। फिर उसी समय एक तेल कुएं को लेकर इराक और कुवैत में विवाद हुआ फिर तत्कालीन सद्दाम हुसैन की इराकी सरकार ने कुवैत पर हमला कर उसे अपने देश का हिस्सा बना लिया।
कुवैत पर हमला करने की वजह से विश्व के सभी देश इराक को गलत मान रहे थे। लेकिन वहीं भारत के लिए स्थिती अलग थी। मुस्लिम देश होने के बावजूद इराक भारत के एक मित्र देश की तरह था। उसके भारत के साथ रिश्ते बहुत अच्छे थे। आपको जानकर हैरानी होगी की वह एक ऐसा मुल्क था जो भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के मसले पर विवाद में भारत का साथ देता था। इसी वजह से वो इराक के खिलाफ नहीं जाना चाहता था।
भारत में उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह की गठबंधन सरकार थी। लेकिन जब पश्चिम देशों ने इराक पर हमले शुरू किए तब भारत में सरकार बदल गई और उस वक्त चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन चुके थे। इराक-कुवैत विवाद के वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कुवैत से भारतीयों को सुरक्षित निकालने का बड़ा अभियान चलाया जो काफी सफल भी रहा।
इराक-कुवैत विवाद पर नई दिल्ली ने खुद को दूर रखने का फैसला किया। सीधे तौर पर किसी पक्ष के साथ नहीं था। लेकिन, इससे कुवैत की सरकार और जनता थोड़ी नाराज हुई लेकिन बा में जैसे-जैसे समय निकला भारत-कुवैत के रिश्ते भी बहुत अच्छे होते गए। कोविड के समय भारत ने कुवैत की भरपूर मदद की। आज कुवैत में करीब 10 लाख भारतीय रहते हैं। ये उस मुल्क के विकास में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
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