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'देशी आतंक, विदेशी मरहम' : दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों के आरोपितों के लिए विदेशी लिबरलों का छलका दर्द, कहा- केवल मुस्लिमों को नहीं मिल रही बेल

BY: Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : December 12, 2022, 6:25 pm IST
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'देशी आतंक, विदेशी मरहम' : दिल्ली हिंदू विरोधी दंगों के आरोपितों के लिए विदेशी लिबरलों का छलका दर्द, कहा- केवल मुस्लिमों को नहीं मिल रही बेल

इंडिया न्यूज़ (दिल्ली) : दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के कट्टरपंथी आरोपितों की काली करतूतें धो-पोछने के लिए ‘द वर्ल्ड इज वॉचिंग इंडिया’ नाम के संगठन ने एक वीडियो डाली। ये वीडियो 6 दिसंबर को हुए वेबिनार की है, जिसका शीर्षक- ‘सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों की यूएपीए के तहत गिरफ्तारी पर ग्लोबल एक्टर्स’ है। इसमें तमाम लिबरलों के साथ एक हिंदूविरोधी इतिहासकार ऑद्रे ट्रुश्के की ‘विशेष टिप्पणियाँ’ भी जोड़ी गई हैं, जो उन्होंने भारत विरोधी व आतंकी संगठनों से संबंध रखने वाले IAMC द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कही थीं।

नए वेबिनार की वीडियो में बताया गया है कि कैसे 2 साल बीत चुके हैं जब भारत ने उन 18 ‘छात्र और कार्यकर्ताओं’ को आतंकवाद के आरोप में जेल में डाल दिया था। इन 18 छात्रों में शरजील इमाम, इशरत जहाँ, खालिद सैफी, ताहिर हुसैन, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम, मीरान हैरान, शादाब अहमद, तस्लीम अहमद, शिफा उर रहमान, गुलफिशा फातिमा, अतहर खान, सफूरा जरगर, उमर खालिद, नताशा नरवाल, आसिफ इकबाल तन्हा, फैजान खान और देवांगना कलिता का नाम था।

दंगों के आरोपित- छात्र और कार्यकर्ता: लिबरलों की चर्चा

वीडियो में बुद्धिजीवियों ने चर्चा की है कि कैसे 2020 में गिरफ्तार हुए 12 लोग अब भी कैद में हैं।

मैरी लॉलर (यूएन स्पेशल रैपोर्टेयर, ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स) ने पकड़े गए आरोपितों के लिए दुख जताया। वह बोलीं दिल्ली हाईकोर्ट लगातार केवल मुस्लिम आरोपितों की बेल ही मना कर रही है। डेलफाइन रेकूल्यू (वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन अगेंस्ट टॉर्चर) ने इन गिरफ्तारियों पर कहा कि आजकल तो देखा जा रहा है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को शांत कराने के लिए आतंक-विरोधी कानून का हथियार की तरह इस्तेमाल होता है।

बांग्लादेश के फोटो जर्नलिस्ट शाहिदुल आलम ने कहा, “ऐसे समय में जब साउथ एशिया में इतना दमन जारी है, मानवाधिकारों का अनादर हो रहा है उस समय में जिन लोगों ने निकलकर प्रदर्शन किया, उन्होंने बहुत हिम्मत दिखाई।”

प्रोफेसर लाइला मेहता बोलीं- “ये तो साफ है कि इस तरह छात्रों और मानवाधिकार का बचाव करने वाले जो देश के सेकुलरिज्म को बचाए रखना चाहते हैं वो अब भी जेल में हैं।”

आतंकी संगठन से कनेक्शन रखने वाले इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल का भी कोट लिया गया जिसका कहना था कि अगर गाँधी जिंदा होते तो वो इन हिरासत में लिए प्रदर्शनकारियों का समर्थन करते या फिर नरेंद्र मोदी सरकार का।

एक अन्य बुद्धिजीवी आनिया लूंबा ने दंगों के 18 आरोपितोंं को बहादुर बताया। साथ ही उस प्रदर्शन को शांतिपूर्ण कहा जिसकी वजह से दिल्ली में दंगे हुए। उन्होंने यहाँ तक बोला कि अच्छा हुआ वो लोग फिली में प्रदर्शन कर रहे थे अगर दिल्ली में करते तो शायद जेल चले जाते।

दिल्ली हिंदू विरोधी दंगे

जानकारी दें, दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगे फरवरी 2020 में हुए थे। तब यहाँ अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप आए थे। 23 फरवरी 2022 को इस्लामी भीड़ ने उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़काए थे जिसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। आज उन दंगों के आरोपितों पर ऐसी चर्चा केवल, उनके कृत्यों को छिपाना का प्रयास है बल्कि ये भी कहा जा सकता है “देसी आतंक पर विदशी मरहम।”

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Delhi riotsInternational

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