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India News (इंडिया न्यूज), Iran attack Israel: ईरान ने मंगलवार देर रात इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। पूरा इजरायल इमरजेंसी सायरन की आवाज से गूंज उठा। इस हमले के साथ ही ईरान ने कहा कि यह हमला हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह और हमास नेता इस्माइल हनीया की हत्या का जवाब है। यह हमला इजरायल के शनिवार को जारी उस बयान के बाद हुआ है जिसमें प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान को सीधे तौर पर चुनौती दी थी। ये कहानी दो दोस्तों की दोस्ती से दुश्मनी तक की है। 31 साल की दोस्ती और 45 साल की दुश्मनी और ये दुश्मनी आज भी जारी है।
कुछ समय पहले नेतन्याहू ने कहा था, ईरान या मध्य पूर्व में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां हम नहीं पहुंच सकते। ईरान को चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा था कि वह हम पर हमला करने के बारे में सोचे भी नहीं। अब ईरान के हमले ने हालात और खराब कर दिए हैं। आज दोनों देश एक दूसरे के सबसे बड़े दुश्मन हैं, लेकिन एक वक्त था जब दोनों के रिश्ते बेहद खुशनुमा थे। फिर सवाल उठता है कि दोस्ती में दरार कैसे आई कि दोनों एक दूसरे को खत्म करने पर उतारू हो गए।
यह कहानी 1948 से शुरू होती है, जब इजरायल एक देश बना। इजरायल के सामने सबसे बड़ा संकट मान्यता का था। मध्य पूर्व के मुस्लिम देशों समेत दुनिया के ज्यादातर देशों ने इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया था। उस वक्त तुर्की के बाद ईरान ही एकमात्र मुस्लिम देश था, जिसने इजरायल को मान्यता दी थी। इस तरह दोनों दोस्त बन गए।
इजराइल ईरान को हथियार और तकनीक देता था और बदले में ईरान उसे तेल देता था। रिश्ते इतने मधुर हो गए कि इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान की खुफिया एजेंसी SAVAK को खुफिया काम करने की ट्रेनिंग तक दे दी थी। ईरान पर पहलवी वंश के शाह का शासन था। लेकिन साल 1979 में ईरान में एक बड़ा बदलाव हुआ। ईरान में हुआ ये बदलाव इजराइल के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाला था।
1979 में अयातुल्ला खुमैनी की क्रांति ने पूरी तस्वीर बदल दी। खुमैनी ने शाह को उखाड़ फेंका और देश में इस्लामी गणतंत्र लागू किया। खुमैनी ने खुद को रक्षक के तौर पर पेश किया। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका और इजरायल, जो ईरान के सहयोगी थे, के साम्राज्यवाद को खारिज करने की योजना को लागू करना शुरू कर दिया।
स्थिति बिगड़ने लगी और इजरायल ने अयातुल्ला सरकार से संबंध खत्म कर लिए। ईरान ने इजरायली नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया। तेहरान में इजरायली दूतावास को फिलिस्तीन मुक्ति संगठन को सौंप दिया गया। ईरान आक्रामकता के साथ अपने एजेंडे को लागू करने में लगा हुआ था। इस देश के कई नेताओं ने लेबनान में फिलिस्तीनियों के साथ गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
ईरान खुद को एक शक्तिशाली इस्लामिक देश साबित करने में लगा हुआ था। ईरान ने फिलिस्तीनी मुद्दे को उठाकर इजरायल को सभी का दुश्मन बनाने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश का कोई खास नतीजा नहीं निकला। लेकिन खुमैनी ने फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपना दावा ठोकना बंद नहीं किया। हालांकि, तब भी दुश्मनी आज जैसी नहीं थी। इसकी वजह सद्दाम हुसैन थे। दोनों देश सद्दाम हुसैन के इराक को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे।
दोनों देशों के बीच हालात तब बिगड़ने लगे जब इजरायल को पता चला कि ईरान उन देशों को हथियार सप्लाई कर रहा है जो उसके खिलाफ हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि ईरान यमन, सीरिया और लेबनान को हथियार सप्लाई कर रहा है ताकि वहां के लड़ाके इजरायल को डरा सकें और धमका सकें।
80 के दशक में सबसे पहले आतंकी समूह इस्लामिक जिहाद ने फिलिस्तीन की मांग को लेकर इजरायल को परेशान करना शुरू किया। ईरान पीछे से उसका साथ दे रहा था। यही वो दौर था जब ईरान ने हिजबुल्लाह को तैयार किया, जिसने इजरायल को निशाना बनाना शुरू किया।
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