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कौन होते हैं पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान? जान बचाने के लिए क्यों पहुंचे नेपाल

Sohail Rahman • LAST UPDATED : September 3, 2024, 12:35 pm IST

India News (इंडिया न्यूज), Pakistan Ahmadiyya Community: आप कभी सपने में भी सोच सकते है कि एक मुसलमान ही दूसरे मुसलमान का दुश्मन बन सकता है। लेकिन ये सच है। दरअसल पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को मुसलमान समझा ही नहीं जाता है। पाकिस्तान से नेपाल भागकर आए एक पाकिस्तानी शख्स कहता है कि पाकिस्तान के कराची स्थित एक कॉलोनी में 14 से 15 लोगों की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई। क्योंकि ये अहमदिया समुदाय से ताल्लुक रखते थे। इसलिए अहमदिया समुदाय के लोग नेपाल के काठमांडू में शरण लिए हुए हैं। यहां भी इन्हें डर-डर कर अपना जीवन जीना पड़ता है। इसलिए अहमदिया समुदाय के लोग पलायन कर नेपाल में रह रहे हैं। लगभग 188 पाकिस्तानी शरणार्थी काठमांडू में रह रहे हैं और इनमें से  ज्यादातर अहमदिया मुसलमान हैं। 

नेपाल में क्यों शरण ले रहे हैं पाकिस्तानी?

इस मामले में पाकिस्तानी शरणार्थियों का कहना है कि नेपाल उनके लिए आसान चुनाव इसलिए है, क्योंकि उन्हें यहां ‘वीज़ा ऑन अराइवल’ यानी आने के बाद वीजा मिल जाता है। इससे पहले पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान अक्सर श्रीलंका जाते थे। लेकिन वहां की सरकार ने ‘वीज़ा ऑन अराइवल’ जारी करना बंद कर दिया। जिसके बाद से ये लोग नेपाल आने लगे। नेपाल में अहमदिया समुदाय के नेता कहते हैं कि काठमांडू में कोई ऐसी जगह नहीं है, जहां उनकी बिरादरी के लोगों का अंतिम संस्कार किया जा सके।

स्थानीय नेता सलीम अहमद कहते हैं कि नेपाल में कुल मिलाकर 10 से 12 हजार अहमदिया मुसलमान रह रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कोई अहमदिया मुसलमान की काठमांडू में मौत हो जाती है, तो अंतिम संस्कार करने के लिए उन्हें 130 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वो आगे बताते हुए कहते है कि, “ 7 साल पहले एक पाकिस्तानी अहमदिया शरणार्थी की मौत हुई थी, तो उनका अंतिम संस्कार करने के लिए परसा जिला जाना पड़ा था।”

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आखिर क्यों नहीं समझा जाता है इन्हें मुस्लिम 

अहमदिया मुस्लिम समुदाय की शुरुआत 1889 में भारत के पंजाब में हुई थी। बहुत हद तक अहमदिया मुसलमानों का जीवन इस्लाम के अनुरूप ही है। लेकिन इस समुदाय के अनुसार मिर्जा गुलाम अहमद ने बीसवीं सदी की शुरुआत में इस्लाम के पुनरुत्थान का एक आंदोलन चलाया था। उनके अनुयायी खुद को अहमदिया मुस्लिम कहते हैं। ये लोग गुलाम अहमद को मोहम्मद के बाद एक और पैगम्बर मानते हैं। जबकि इस्लाम में हजरत मोहम्मद साहब अल्लाह के भेजे हुए आखिरी पैगम्बर माने जाते हैं। इसकी वजह से अहमदिया मुसलमानों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।

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