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कल्पना से सच्चाई का रूप बनी रामायण गाथा…अब चीन ने भी खोजे "प्रभु श्रीराम के पदचिह्न", जानें कैसे?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : November 4, 2024, 11:24 am IST
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कल्पना से सच्चाई का रूप बनी रामायण गाथा…अब चीन ने भी खोजे

Footprints of Lord Shri Ram: रामायण न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि यह आदर्श व्यक्तित्व और समाज की व्याख्या करता है। श्रीराम के कार्य और शब्द भारतीय संस्कृति में आदर्श की अवधारणा के विभिन्न आयाम प्रस्तुत करते हैं।

India News (इंडिया न्यूज), Footprints of Lord Shri Ram: प्रभु श्रीराम और उनकी महाकाव्य रामायण का अस्तित्व अब केवल भारतीय पौराणिक कथाओं तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि हाल ही में चीन के विद्वानों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि रामायण का प्रभाव चीन में गहरा है। बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा आयोजित “रामायण- एक कालातीत मार्गदर्शिका” संगोष्ठी में, चीनी विद्वानों ने इस महाकाव्य के तत्वों की खोज करने का प्रमाण प्रस्तुत किया, जो दर्शाता है कि रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक पुल है।

रामायण का चीन में प्रभाव

प्रोफेसर जियांग जिंगकुई, सिंघुआ विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड एरिया स्टडीज के डीन, ने बताया कि रामायण ने न केवल हिंदू संस्कृति पर, बल्कि चीनी संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा, “यह महाकाव्य धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दुनिया को जोड़ने का काम करता है।” चीनी संस्कृति में रामायण के तत्वों को आत्मसात किया गया है, जो इसकी लचीलेपन और व्यापकता को दर्शाता है।

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बौद्ध धर्मग्रंथों में रामायण का स्थान

चीन में रामायण से जुड़ी सबसे प्रारंभिक सामग्री बौद्ध धर्मग्रंथों के माध्यम से प्रस्तुत की गई। जियांग ने उल्लेख किया कि हान सांस्कृतिक क्षेत्र में इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया, लेकिन इसके कुछ अंश बौद्ध ग्रंथों में शामिल किए गए। हनुमान को बौद्ध नैतिक आख्यानों में वानरों के राजा के रूप में दर्शाया गया है, जो चीनी साहित्य में सन वुकोंग के रूप में प्रसिद्ध हो गया।

चीनी विद्वानों की खोज

सिचुआन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर किउ योंगहुई ने ‘चीन में राम के पदचिन्ह’ विषय पर चर्चा करते हुए भारत-चीन सांस्कृतिक संबंधों की गहराई पर प्रकाश डाला। उन्होंने विभिन्न हिंदू देवताओं की तस्वीरें प्रदर्शित की और बताया कि भारतीय संस्कृति, विशेष रूप से बौद्ध धर्म के माध्यम से, चीन में अपनी छाप छोड़ने में सफल रही है।

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जुआनज़ैंग का योगदान

सातवीं शताब्दी के चीनी विद्वान जुआनज़ैंग ने भारत की यात्रा की और रामायण की कहानियों का विस्तृत विवरण बौद्ध ग्रंथों में लाए। हालाँकि रामायण का हिंदू पृष्ठभूमि के कारण पूर्ण अनुवाद नहीं हुआ, लेकिन इसका प्रभाव चीन और तिब्बत की साहित्यिक कृतियों में दिखाई देता है।

सांस्कृतिक आदान-प्रदान का महत्व

जियांग ने यह भी बताया कि रामायण का चीनी अनुवाद 1980 में किया गया, जो चीनी शिक्षा जगत के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। यह अनुवाद चीनी पाठकों को भारतीय साहित्यिक क्लासिक से जोड़ने का एक माध्यम बना।

निष्कर्ष

रामायण न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि यह आदर्श व्यक्तित्व और समाज की व्याख्या करता है। श्रीराम के कार्य और शब्द भारतीय संस्कृति में आदर्श की अवधारणा के विभिन्न आयाम प्रस्तुत करते हैं। यह स्पष्ट है कि रामायण का प्रभाव न केवल भारत में, बल्कि विश्व स्तर पर भी गहरा है, और यह सांस्कृतिक संबंधों के एक अद्वितीय पुल का कार्य करता है। इस महाकाव्य की गाथा अब एक अंतर-सांस्कृतिक संवाद का प्रतीक बन चुकी है।

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