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यूनुस सरकार के इस फैसले से बढ़ी Sheikh Hasina की मुश्किलें, जानें अब बांग्लादेश क्यों नहीं लौट पाएंगी?

Raunak Kumar • LAST UPDATED : August 24, 2024, 9:28 pm IST

Sheikh Hasina

India News (इंडिया न्यूज), Sheikh Hasina Passport: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। पहले उन्हें छात्रों के नेतृत्व में हुए विद्रोह की वजह से पद छोड़ना पड़ा था। जिसके बाद से ही वो भारत में रह रही हैं। वहीं ऐसे में उनके अगले कदम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द किए जाने से उनके भारत में रहने की संभावना कम हो गई है।

शेख हसीना के भारत में रहने पर क्यों खतरा?

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, देश के गृह मंत्रालय के सुरक्षा सेवा प्रभाग ने घोषणा की है कि शेख हसीना, उनके सलाहकारों, पूर्व कैबिनेट सदस्यों और हाल ही में भंग की गई 12वीं जातीय संसद के सभी सदस्यों और उनके जीवनसाथियों के राजनयिक पासपोर्ट तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए जाएंगे। इन पासपोर्ट को रद्द करने का प्रावधान उन राजनयिक अधिकारियों पर भी लागू होगा जिनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है। साथ ही कम से कम दो जांच एजेंसियों की मंजूरी के बाद ही साधारण पासपोर्ट जारी किए जाने की संभावना है।

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क्यों है शेख हसीना के प्रत्यर्पण का खतरा?

डेली स्टार अखबार ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया है कि शेख हसीना के पास अब रद्द किए गए राजनयिक पासपोर्ट के अलावा कोई दूसरा पासपोर्ट नहीं है। भारतीय वीज़ा नीति के तहत, राजनयिक या आधिकारिक पासपोर्ट रखने वाले बांग्लादेशी नागरिक वीज़ा-मुक्त प्रवेश के लिए पात्र हैं और देश में 45 दिनों तक रह सकते हैं। शनिवार तक, हसीना ने भारत में 20 दिन बिताए हैं और उनका कानूनी प्रवास समाप्त होने वाला है। शेख हसीना के राजनयिक पासपोर्ट और संबंधित वीज़ा विशेषाधिकारों को रद्द करने से उन्हें बांग्लादेश में प्रत्यर्पित किए जाने का खतरा हो सकता है। जहाँ उनके खिलाफ 51 मामले दर्ज हैं। इनमें से 42 मामले हत्या के हैं।

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क्या कहती है भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि?

बता दें कि, शेख हसीना का प्रत्यर्पण बांग्लादेश और भारत के बीच 2013 की प्रत्यर्पण संधि के कानूनी ढांचे के अंतर्गत आएगा। जिसे 2016 में संशोधित किया गया था। हालाँकि संधि राजनीतिक प्रकृति के आरोपों के मामले में प्रत्यर्पण को अस्वीकार करने की अनुमति देती है। लेकिन यह स्पष्ट रूप से हत्या जैसे अपराधों को राजनीतिक नहीं मानती है। हालांकि, राज्य समाचार एजेंसी बीएसएस की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्यर्पण से इनकार करने का एक आधार यह है कि आरोप सद्भावना से, न्याय के हित में नहीं लगाए गए हैं।

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