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तीन गुना बढ़ गया धरती पर 'नरक का द्वार', जानकर छोड़ देंगे खाना पीना!

Babli • LAST UPDATED : September 6, 2024, 7:10 am IST

Siberia Giant Gateway

India News (इंडिया न्यूज), Siberia Giant Gateway: साइबेरिया के बेहद ठंडे और कठोर वातावरण में जमीन में एक विशालकाय गड्ढा है। इसे बाटागाइका के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘नरक का द्वार’ भी कहते हैं। यह गड्ढा पर्माफ्रॉस्ट इलाके में मौजूद है। पर्माफ्रॉस्ट स्थायी रूप से जमी हुई जमीन का इलाका होता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से यहां बर्फ पिघलने लगी है। जिसके बाद पहली बार इस गड्ढे की तस्वीर सामने आई है। लेकिन यह गड्ढा हमेशा से इतना विशाल नहीं था। वैज्ञानिकों के मुताबिक 30 साल में यह गड्ढा तीन गुना बढ़ गया है।

  • अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है ये द्वार
  • आसपास की बहुत सी जमीन को निगल सकता है

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अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है ये द्वार

एक रिपोर्ट के मुताबिक बाटागाइका असल में गड्ढा नहीं है बल्कि यह पर्माफ्रॉस्ट का हिस्सा है, जो तेजी से पिघल रहा है। इसे रेट्रोग्रेसिव थॉ स्लंप कहते हैं। हालांकि इसके बढ़ते आकार ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है। अब यह 200 एकड़ में फैल चुका है और 300 फीट गहरा हो गया है। बर्फ पिघलने के बाद पानी के बहाव की वजह से इसका आकार बढ़ रहा है। यह इतना बड़ा हो गया है कि अब यह अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है। जबकि, शुरुआत में यह केवल एक टुकड़े के रूप में दिखाई देता था। जो 1960 के दशक की सैटेलाइट इमेजरी में बमुश्किल दिखाई देता था। इसके बढ़ने से आसपास के इलाके की जमीन भी कम होती जा रही है। साथ ही भूस्खलन का खतरा भी बढ़ रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, बातेज क्रेटर धरती का दूसरा सबसे पुराना पर्माफ्रॉस्ट है। लगातार विस्तार के कारण आसपास की जमीन डूब रही है। जिसके कारण इस क्रेटर के अंदर पहाड़ियां और घाटियां बन रही हैं। वैज्ञानिक इसके बारे में सब कुछ जानने के लिए इसका अध्ययन कर रहे हैं।

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आसपास की बहुत सी जमीन को निगल सकता है

एक रिपोर्ट में कहा, “हम बाटागाइका से बहुत कुछ सीख सकते हैं, न केवल इस बारे में कि बाटागाइका समय के साथ कैसे विकसित होगा, बल्कि इस बारे में भी कि आर्कटिक में अन्य समान भौगोलिक संरचनाएं कैसे विकसित हो सकती हैं।” इस साल की शुरुआत में प्रकाशित एक रिसर्च में पाया गया कि गड्ढा गहरा होता जा रहा है क्योंकि पिघलता हुआ पर्माफ्रॉस्ट लगभग नीचे की चट्टान तक पहुंच गया है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पिघलने वाले पर्माफ्रॉस्ट से हर साल 4,000 से 5,000 टन कार्बनिक कार्बन वायुमंडल में निकल रहा है। यह दर बढ़ने की संभावना है। अब, जबकि पर्माफ्रॉस्ट अभी भी पिघल रहा है, वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यह आसपास की बहुत सी जमीन को निगल सकता है और इस क्षेत्र में स्थित गांवों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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