इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
The Reason For The Destruction Of Sri Lanka : जैसा की आप जानते ही है कि पिछले काफी समय से भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराया हुआ है। खाने पीने की वस्तुओं से लेकर लोगों को दवाइयां और अन्य जरूरत के सामान नहीं मिल पा रहे हैं। सड़कों पर उतरकर लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। मनमानी कीमतों पर भी जरूरी चीजें नहीं मिल रहीं है। वैसे तो श्रीलंका कई सालों से आर्थिक संकट से जूझ रहा था लेकिन जब से कोरोना आया है तब से यह और अधिक गहरा गया है।
बता दें कि श्रीलंका 1948 में अंग्रेजों से आजाद हुआ था। लेकिन पड़ोसी देशों की तरह वह अपना विकास नहीं कर सका। इसकी एक वजह लंबे समय तक चला तमिल संघर्ष भी रहा है। सिंहली बहुल श्रीलंका में 26 सालों तक सिविल वार चला, जो 2006 में समाप्त हुआ था।
इस युद्ध में देश को बड़ा नुकसान पहुंचा था, लेकिन इससे मुक्त के बाद श्रीलंका की सरकारों ने तेजी से ग्रोथ के प्रयास किए। इसके लिए उन्होंने विदेशी निवेश को आकर्षित किया और शार्ट टर्म में इसका असर भी दिखा।
अर्थव्यवस्था में तेजी दिखने लगी और प्रति-व्यक्ति जीडीपी तेजी से बढ़ते हुए 2014 में 3,819 डालर हो गई, जो 2006 में 1,436 डालर ही थी। इस मामले में श्रीलंका फिलीपींस, इंडोनेशिया और यूक्रेन जैसे देशों से आगे निकल गया।
श्रीलंका में 16 लाख लोग गरीबी से बाहर निकले, जो वहां की आबादी का 8.5 फीसदी हिस्सा थे। इससे देश में मिडिल क्लास की एक बड़ी आबादी तैयार हुई। 2019 में तो श्रीलंका वर्ल्ड बैंक की रैंकिंग में अपर मिडिल-इनकम वाले देशों की सूची में शामिल हो गया।
हालांकि उसके पास यह ताज सिर्फ एक साल ही रहा क्योंकि यह ग्रोथ कर्ज की कीमत पर हासिल की गई थी। 2006 से 2012 के दौरान श्रीलंका का कर्ज तीन गुना बढ़ते हुए जीडीपी के 119 फीसदी के बराबर हो गया। इन नीतियों पर 2015 में लगाम लगाई गई। इससे अर्थव्यवस्था में ऊपरी तौर पर स्थिरता भले ही नजर आई, लेकिन कर्ज बढ़ता ही रहा। इसकी वजह यह थी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए श्रीलंका ने बड़े पैमाने पर ऊंची ब्याज दर वाले कर्ज का सहारा लिया था।
श्रीलंका के लिए कोरोना का संकट कोढ़ में खाज जैसा साबित हुआ। धीमी ग्रोथ और तेजी से बढ़ते कर्ज का सामना कर रहे श्रीलंका को बड़ी मदद टूरिज्म के जरिए मिलती थी, जो कोरोना के आने के बाद से ठप हो गया। 2018 में श्रीलंका का व्यापारिक घाटा 10 अरब डालर का था, जबकि 5.6 बिलियन डालर की आय उसे पर्यटन से होती थी।
साफ था कि टूरिज्म के चलते वह अपने आधे से ज्यादा घाटे की भरपाई कर रहा था, जो कोरोना के चलते अचानक से गायब हो गया। इससे श्रीलंका सरकार को बड़ा झटका लगा। इसके अलावा दूसरी तरफ कर्ज पर ब्याज बढ़ता ही चला गया। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने संकट से निपटने के लिए ज्यादा नोटों की छपाई की और इसके चलते महंगाई तेजी से बढ़ गई। इस दौर में श्रीलंका पर सिर्फ एक ही सहारा 7 अरब डॉलर सालाना की वह रकम थी, जो उसके नागरिक विदेशों से भेजते थे।
इस संकट से निपटने के लिए श्रीलंका सरकार को अर्थशास्त्रियों ने सलाह दी थी कि वह अंतरराष्ट्रीय सहायता हासिल करे, लेकिन उसने ऐसा करने की बजाय चीन जैसे पड़ोसी देशों से कर्ज ले लिया। दूसरी तरफ केंद्रीय बैंक ने रुपये की कीमत को घटाया और आयात पर रोक लगा दी।
इससे श्रीलंका ऐसे दलदल में फंस गया, जिससे पैर निकालना उसके लिए मुश्किल हो चला। किसी तरह श्रीलंका में मुश्किल भरे दिन गुजर ही रहे थे कि फरवरी के आखिरी सप्ताह में रूस ने यूक्रेन पर अटैक कर दिया। इसके चलते श्रीलंका का पर्यटन भी प्रभावित हुआ। इसकी वजह यह थी कि यूक्रेन और रूस से बड़ी संख्या में यात्री आते थे। यही नहीं तेल, गेहूं और अन्य जरूरी चीजों के दामों में भी आग लग गई। The Reason For The Destruction Of Sri Lanka
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