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India News(इंडिया न्यूज),Caspian Sea: दुनिया में भले ही हर तरफ जंग का माहौल हो लेकिन अभी भी मानव जिवन पर सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन से है और धरती कई हिस्सों पर हम इसका प्रभाव भी देख सकते हैं। जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा उदाहरण कैस्पियन साग है। जो लगातार सिकुड़ रहा है। कैस्पियन सागर को दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील माना जाता है। 4 लाख वर्ग मील यानी 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली इस झील को लेकर पूरी दुनिया में चर्चा होती है। इस झील का आकार यूरोपीय देश जर्मनी से भी बड़ा है। कजाकिस्तान, ईरान, अजरबैजान, रूस और तुर्कमेनिस्तान जैसे देश इस झील पर निर्भर हैं। इसके लगातार सिकुड़ने से बहुत बड़ी आबादी के लिए खतरा पैदा हो सकता है। वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानवीय प्रभाव और इस झील की प्रतिष्ठा को लेकर काफी चिंतित हैं।
इसके किनारे रहने वाले देशों के नागरिक मछली पकड़ने, कृषि, पर्यटन और पीने के पानी के साथ-साथ इसके तेल और गैस भंडार के लिए इस पर निर्भर हैं। साथ ही कैस्पियन सागर इन इलाकों में शुष्क जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके कारण मध्य एशिया में बारिश होती है और जलवायु में बारिश नहीं होती। लेकिन, वैज्ञानिक घटते जलस्तर को लेकर चिंतित हैं।
जहां जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघलने से दुनिया के सभी समुद्रों का जलस्तर बढ़ रहा है। लेकिन, यह जमीन से घिरे समुद्रों और झीलों के लिए खतरा बना हुआ है। ये झीलें बारिश और नदी के पानी पर निर्भर हैं। हालांकि, बांधों, अत्यधिक जल और खनिज निष्कर्षण, प्रदूषण और तेजी से मानव-जनित जलवायु संकट के कारण यह सिकुड़ रही है।
वैज्ञानिकों को डर है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो कैस्पियन सागर ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगा, जहां से वापस लौटना बहुत मुश्किल हो जाएगा, यानी इसका फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटना बहुत मुश्किल हो जाएगा। वे काफी हद तक सही भी हैं। क्योंकि, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के बीच फैला अराल सागर कभी दुनिया की सबसे बड़ी झील थी। लेकिन, बढ़ती मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण यह धीरे-धीरे खत्म हो गई। यही स्थिति कैस्पियन की भी है। इसमें गिरने वाली नदियों पर बांध और तेल रिफाइनरियों से कच्चे तेल की निकासी इसके लिए घातक बन रही है।
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