India News (इंडिया न्यूज), US Election: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड जे ट्रम्प के वरिष्ठ सलाहकार काश पटेल ने भारत के प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच गहरा संबंध बताया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि बिडेन ने मोदी के साथ ट्रम्प के रिश्ते को आगे बढ़ाने का फैसला किया।

उन्होंने राम मंदिर को लेकर कहा कि पीएम मोदी ने राम के मंदिर का उद्घाट जब कि तो वाशिंगटन के सभी अखबारों ने केवल पिछले 50 वर्षों के इतिहास को कवर किया। उन्होंने कहा, “चाहे आप हिंदू हों या मुस्लिम, वहां 1500 में हिंदू देवताओं का सर्वोत्कृष्ट हिंदू मंदिर था जिसे गिरा दिया गया था, और वे 500 वर्षों से इसे वापसी कोशिश कर इसे बनाया गया है। लेकिन वाशिंगटन प्रतिष्ठान इतिहास के उस हिस्से को भूल गया जिसे मैं एक दुष्प्रचार अभियान मानता हूं जो भारत और प्रधान मंत्री की स्थिति के लिए हानिकारक है।

कौन है काश पटेल?

बता दें कि एक भारतीय-अमेरिकी, जिनके माता-पिता की जड़ें गुजरात से जुड़ी हैं और युगांडा में ईदी अमीन के शासन के दौरान पूर्वी अफ्रीका से अमेरिका चले गए थे। पटेल एक विवादास्पद व्यक्ति हैं, जिन्होंने हाउस इंटेलिजेंस कमेटी के लिए कांग्रेस के कर्मचारी के रूप में कुख्याति प्राप्त की जब उन्होंने रिपब्लिकन से नेतृत्व किया। उन आरोपों की जांच जो ट्रम्प को रूस से जोड़ते थे। वह तब से ट्रम्प के प्रति वफादार रहे हैं, अब उनके सबसे करीबी सहयोगियों में से एक हैं और जिसे वह डीप स्टेट कहते हैं, उसके मुखर आलोचक हैं।

अमेरिकी दृष्टिकोण को आकार देने पर क्या कहा?

उन्होंने भारत के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण को आकार देने के सवाल पर कहा, मुझे लगता है कि वे एक राजनीतिक लड़ाई को आकार देने की कोशिश कर रहे हैं और वाशिंगटन इसी में माहिर है। वाशिंगटन के लोग ही इतने मूर्ख होंगे कि वे पीएम मोदी को अमेरिका के लिए बढ़ता खतरा कहें। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस प्रशासन ने पीएम मोदी और भारतीय शासन के साथ ट्रंप जैसा सम्मान नहीं किया है। बिडेन ने मोदी के साथ ट्रम्प के रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया।

भारतीय-अमेरिकी होना और इसे देखना अद्भुत था

उन्होंने भारत और अमेरिका के बारे में आगे कहा कि एक भारतीय-अमेरिकी होना और इसे देखना अद्भुत था। उन्होंने कहा, यह अत्यंत विस्तृत स्तर पर गहरे आपसी सम्मान और जुड़ाव का रिश्ता था। विश्व के दो नेता सिर्फ धोखा-धड़ी नहीं पढ़ रहे थे, वे लगे हुए थे, उन्हें नोट्स की जरूरत नहीं थी, उन्हें घेरने के लिए टीमों की जरूरत नहीं थी। उन्होंने अपने देशों की भलाई के लिए मिलकर काम किया।

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