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2016 में ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से Sheikh Hasina को बांग्लादेश भेजने को मजबूर हुआ भारत ? जानें दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि का नियम

BY: Divyanshi Singh • LAST UPDATED : December 23, 2024, 8:15 pm IST
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2016 में ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से Sheikh Hasina को बांग्लादेश भेजने को मजबूर हुआ भारत ? जानें दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि का नियम

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India News (इंडिया न्यूज), Bangladesh: बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को हुए तख्तापलट के बाद पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को जान बचाने के लिए भारत का रुख करना पड़ा। तबसे हसीना भारत में ही रह रही हैं। अब बांग्लादेश की अंतरिम यूनुस सरकार ने भारत को डिप्लोमेटिक नोट भेजकर हसीना को वापस लौटाने की मांग की है।

225 से ज्यादा मामले दर्ज

यूनुस सरकार ने शेख हसीना के खिलाफ हत्या, अपहरण और देशद्रोह जैसे गंभीर आरोपों में 225 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं। साथ ही चेतावनी दी है कि हसीना की भारत में मौजूदगी और उनके बयानों से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ सकता है। इस बीच सभी के मन में सवाल उठ रहे हैं कि- क्या भारत शेख हसीना को बांग्लादेश को सौंप देगा? दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण को लेकर क्या नियम हैं? आइए जानते हैं.

प्रत्यर्पण संधि

भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि, जिस पर शुरुआत में 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे और 2016 में संशोधित किया गया था। ये समझौता एक रणनीतिक उपाय था जिसका मकसद दोनों देशों की साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद के मुद्दे से निपटने का था। संधि का पहला मकसद था उन भगोड़ों और अपराधियों के लिए प्रत्यर्पण की प्रक्रिया व्यवस्थित करना जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।

दरअसल ये साल 2013 की बात है। भारत के नॉर्थ ईस्ट उग्रवादी समूह के लोग बांग्लादेश में छिपे रहे थे। सरकार उन्हें बांग्लादेश में पनाह लेने से रोकना चाहती थी। इसी वक्त बांग्लादेश के प्रतिबंधित संगठन जमात उल मुजाहिदीन के लोग भारत में आकर छिप रहे थे। दोनों देशों ने इस समस्या से निपटने के लिए एक प्रत्यर्पण समझौता किया।

हालांकि इसमें एक पेंच ये है कि भारत राजनीति से जुड़े मामलों में किसी व्यक्ति के प्रत्यर्पण से इनकार कर सकता है लेकिन अगर उस व्यक्ति पर हत्या और किडनैपिंग जैसे संगीन मामले दर्ज हो तो उसके प्रत्यर्पण को रोका जा नहीं सकता है।

फिर 3 साल बाद 2016 में इस संधि में एक संशोधन किया गया. जिसके मुताबिक प्रत्यर्पण की मांग करने वाले देश को अपराध के सबूत देने की जरूरत भी नहीं है. इसके लिए कोर्ट से जारी वारंट ही काफी है. ये संशोधन हसीना के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.

तो क्या हसीना को बांग्लादेश भेजगा भारत?

अब जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार औपचारिक रूप से हसीना के प्रत्यर्पण का अनुरोध कर चुकी है तो ये बात साफ है कि भारत प्रत्यर्पण के साथ आगे बढ़ने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, जब तक कि इनकार करने के लिए वैध कारण न हों. हालांकि भारत हसीना के प्रत्यर्पण से इनकार भी कर सकता है. दरअसल भारत-बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौते के अनुच्छेद 8 में प्रत्यर्पण से इनकार के लिए कई आधार दिए गए हैं।

ये आर्टिकल कहता है कि ऐसे मामले जिनमें आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हों या फिर अगर आरोप सैन्य अपराधों से जुड़े हों जो सामान्य आपराधिक कानून के तहत मान्य नहीं हैं, तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है. भारत ये कह कर प्रत्यर्पण से पीछे हट सकता है कि हसीना पर आरोप बेबुनियाद है।

हालाँकि, प्रत्यर्पण से इनकार करने से नई दिल्ली और ढाका की नई सत्तारूढ़ सरकार के बीच राजनयिक संबंधों में तनाव आ सकता है। दूसरी ओर, हसीना के प्रत्यर्पण का बांग्लादेश के भीतर विभिन्न राजनीतिक गुटों के साथ भारत के संबंधों पर भी दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है।

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