इंडिया न्यूज:
आज के दौर में भी कई महिलाएं अनचाहे गर्भ की समस्या से जूझ रही हैं। वह कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स खाती तो हैं (जो काफी खतरनाक है) लेकिन परिवार से छुपकर। जरूरी यह है कि महिलाएं ओरल कॉन्ट्रासेप्टिव, इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स और अबॉर्शन कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स के फर्क को समझें। लेख में जानेंगे क्या गर्भ निरोधक गोलियां लेना सेफ है या नहीं।
कहते हैं कि देश में गर्भनिरोधक गोलियों का चलन 1950 से शुरू हुआ लेकिन भारतीय बाजारों में यह 1930 में ही आ गई थी। लेकिन आज भी हमारे देश की महिलाएं इसके प्रति जागरूक नहीं हो पाई हैं। घरों में इस बारे में खुलकर बात नहीं की जाती। अगर कोई बात करे तो उसके कैरेक्टर को गलत समझा जाता है। इस विषय पर मां और बेटी के बीच भी बात नहीं होती। यही कारण है कि किशोर अवस्था में कई लड़कियां प्रेग्नेंसी झेलती हैं और इस डर के चलते वह बिना डॉक्टर की सलाह के गर्भनिरोधक गोलियां खा लेती हैं। कई बार ओवरडोज जानलेवा साबित होती है।
गायनोकॉलोजिस्ट अनुसार तीन तरह की कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स यानी दवा होती हैं।
सर गंगाराम हॉस्पिटल के गायनोकॉलोजिस्ट का कहना है कि हर गर्भनिरोधक गोली सुरक्षित है अगर वह डॉक्टर की सलाह से ली जाए। अबॉर्शन गोली भी सुरक्षित हैं। लेकिन कई बार महिलाएं इन्हें अपने आप खा लेती हैं जो जानलेवा हो सकता है। अबॉर्शन गोली महिला की मेडिकल कंडीशन को देखते हुए गर्भ धारण के 7 से 9 हफ्ते तक दी जा सकती है।
गर्भ निरोधक गोलियां देने से पहले मरीज की उम्र, वजन, मेडिकल बैकग्राउंड, सेक्शुअल बिहेवियर, फैमिली की मेडिकल हिस्ट्री जैसी चीजों की जांच करना चाहिए। इसके बाद ही उसे इन गोलियों को खाने की सलाह दी जानी चाहिए। लेकिन जिनमें ब्लड क्लॉटिंग, हार्ट समस्या, ब्रेस्ट कैंसर, मेंस्ट्रुअल माइग्रेन, अनियंत्रित डायबिटीज या ब्लड प्रेशर हो या कभी गर्भधारण के दौरान पीलिया या लीवर की बीमारी हो चुकी हो तो उन्हें गर्भनिरोधक गोलियां खाने की सलाह नहीं दी जाती।
गायनोकॉलिजिस्ट मुताबिक अगर किसी लड़की की इकटॉपिक प्रेग्नेंसी हो और वह बिना सलाह के पिल्स ले तो उसके पेट में इंटरनल ब्लीडिंग शुरू हो सकती है जो खतरनाक है। वहीं इसकी ओवरडोज अधिक ब्लीडिंग, उबकाई, उल्टी, सिरदर्द और ब्रेस्ट पेन का कारण बनती है।
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