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इंडिया न्यूज (What to Keep In Mind To Get Peace in Hostel)
आज के समय में करीब-करीब हर बच्चा पढ़ाई के सिलसिले में अपने घर से बाहर दूसरे देश या अपने ही देश में कोई और जगह पर जाता ही है। उन जगहों पर रहने के लिए ज्यादातर बच्चे हॉस्टल में ही रहते हैं। हालांकि यह बात बिल्कुल सच है कि घर का अहसास हॉस्टल में नहीं मिल सकता। लेकिन बच्चों को हॉस्टल में डालने से पहले कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में।
माता पिता को बच्चों को हॉस्टल में डालने से पहले हॉस्टल का वातावरण कैसा है। इसकी पड़ताल करनी चाहिए। साथ ही इन बातों का भी ध्यान रखें कि हॉस्टल में कहां-कहां के बच्चे रहे रहे हैं। कहीं कोई ऐसा बच्चा या स्टूडेंट तो नहीं जो गलत संगत के शिकार में है। क्योंकि संगति का असर बहुत जल्द पड़ता है।
जब बात सुविधाओं की आती है तो बात शुरू होती है घर में सहजता से मिली सुविधाओं की जिसे अमूमन बच्चे बेिसक्स का नाम देते हैं। लेिकन यही बेिसक्स घर से बाहर निकलते ही एसेंशियल्स यानी जरूरत के दायरे में आ जाते हैं। इसमें वाय-फाय, हाउसकीपिंग, लॉन्ड्री सर्विस, नहाने का गर्म पानी, चार्जिंग पॉइंट्स, िवंडो नेट्स, एसी, एक अदद अलमारी और सबसे अहम चीज स्टडी टेबल शामिल है। लब्बो-लुबाब यह है कि ये वो चीजें हैं जिनके िबना पढ़ाई, टाइम व खर्चों का प्रबंधन और सोशल लाइफ आसान नहीं होगी।
ये शुरूआत बच्चों और माता पिता दोनों के लिए नई होती है। मन में दुविधाएं होती हैं सुरक्षा को लेकर, यह अहम भी है। इस मामले में कोविड प्रोटोकॉल फॉलो करने की। वैसे तो इंस्टीट्यूशंस इस मामले में खुद ही निर्देश जारी करते हैं, लेिकन पूछने का पूरा हक है, झिझकें नहीं। बायोमेट्रिक अटेंडेंस, खाने की विविधताएं (वेज-नॉनवेज), कैंपस का प्रबंधन और सफाई, गार्ड्स की व्यवस्था जान लेना जरूरी है।
अधिकतर हॉस्टल्स में एक सैंपल रूम तैयार कर लिया जाता है, तािक माता पिता इसे देखकर बच्चे की होने वाली रिहाइश का अंदाज लगा सकें और माता पिता को हॉस्टल दिखाए जाने की जहमत से बचा जा सके। हॉस्टल ज्वॉइन करने से पहले बच्चे के साथ यह तय कर लें कि वह सिंगल, डबल या ट्रिपल शेयरिंग रूम में से क्या पसंद करेगा। एसी या नॉन एसी रूम के बारे में भी बात करें। रूम की पसंद काफी हद तक बच्चे की घुलनेमिलने और शेयरिंग की आदतों पर भी निर्भर करती है। अगर बच्चा प्राइवेसी पसंद करता है, तो मुमकिन है शेयरिंग पसंद न करे। हालांकि रूममेट के साथ रहने का अलग ही आनंद है। कौन जाने कि भविष्य में इन्हीं में से कोई आपके बच्चे का जिगरी दोस्त बन जाए।
पहली बार घर से बाहर जाने से पहले बच्चे का बैंक एकाउंट जरूर खुलवा दें और बेिसक बैंक ट्रांजैक्शंस से उसको अवगत करवाएं। चूंकि यूपीआई माता पिता का चलन बढ़ चुका है, तो उसे एक ऐसे माध्यम से जरूर जोड़ें। लेिकन यह जरूर बताएं कि पॉकेट में कुछ कैश हमेशा रखा होना चाहिए। वरना मुमकिन है कि कुछ वक़्त के लिए कोई अहम काम अटक जाए।
नई जगह पर नए दोस्त बनाते समय नो इमीजिएट कनेक्शंस, नो इमीजिएट िरएक्शंस का बेिसक रूल बतलाइए। यानी न फौरन किसी को बेहतरीन दोस्त समझ लीजिए, न ही फौरन उसको बुरा समझकर दोस्ती खत्म कर दीिजए।
किसी भी शख्स के तन और मन से खुश रहने में सबसे महती भूिमका निभाता है खान-पान। वैसे तो खाने की गुणवत्ता जांचना हमारे दायरे में नहीं आता। फिर भी सिनियर स्टूडेंट्स, पहचान के पढ़ने वालों और कैंटीन मैनेजमेंट से जुड़े लोगों से बात करके मोटा-मोटा अंदाजा लगा सकते हैं। अमूमन जगहों पर नाश्ता, दोपहर का भोजन, रात का खाना मिलने का वक़्त दो से ढाई घंटे के बीच रखा जाता है। वक़्त रहते भरपेट भोजन करने के लिए आपको ये पता होना बेहद जरूरी है।
बच्चे को बताएं कि उसका शौक चाहे पेंटिंग, फिटनेस, पढ़ना, वाद्य यंत्र बजाना या कुछ भी हो, वह उसे हॉस्टल में भी जारी रखे। बेसिक फर्स्ट एड किट जरूर साथ में दें, बेहतर हो कि इस बॉक्स में एक कागज पर लिख दें कि किस बीमारी में क्या बेिसक दवा ली जाए। हालांकि डॉक्टर को जरूर दिखाया जाए। बच्चों को उनके नए माहौल में अकेला न छोड़ें, रोज बातचीत जारी रखें।
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